डॉ. वेदप्रताप वैदिक,वरिष्ठ पत्रकार
महाराष्ट्र और हरयाणा में मतदान का प्रतिशत बढि़या रहा। इससे क्या सिद्ध होता है? क्या यह नहीं कि लोगों में संसदीय चुनाव का उत्साह ज्यों का त्यों बना हुआ है। यह अब पांच माह बाद भी क्यों बना हुआ है? प्रायः ऐसा उत्साह ठंडा हो जाता है। अखिल भारतीय चुनावों में प्रचंड विजय पानेवाली पार्टियां उसके बाद होनेवाले प्रांतीय और स्थानीय चुनावों में अक्सर पटकनी खा जाती हैं, जैसे कि भाजपा ने भी बिहार, उ.प्र. ओर ओडिशा के उप-चुनावों में पिछले माह खाई थी लेकिन महाराष्ट्र और हरयाणा में ऐसा नहीं होगा। ज्यादातर सर्वेक्षण कह रहे हैं कि दोनों प्रांतों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी। एक सर्वेक्षण कहता है कि भाजपा को दोनों जगह स्पष्ट बहुमत मिलेगा। ये दोनों प्रांत ऐसे हैं, जहां भाजपा का प्रभाव न्यूनतम रहा है लेकिन लोकसभा-चुनाव में वह सबसे आगे रही है। इसीलिए प्रांतीय दलों के साथ उसके जो गठबंधन थे, वे टूट गए हैं।
दोनों प्रांतों में भाजपा की बढ़त और उत्तम मतदान के कई कारण हैं। एक तो नरेंद्र मोदी द्वारा जमकर अभियान चलाना। दोनों प्रांतों में भाजपा का कोई मुख्यमंत्री का उम्मीदवार नहीं था। इसीलिए मोदी ने ही वह रोल निभाया याने यह प्रांतीय वोट भी मोदी का ही वोट है। दूसरा, दोनों राज्यों की कांग्रेस सरकारों ने भ्रष्टाचार के मामले में अपनी केंद्रीय सरकार को भी मात कर दिया था याने जो कारण सारे देश में कांग्रेस की हार का था, वही कारण यहां भी रहेगा। तीसरा, दोनों राज्यों की जनता ने सोचा कि जिस पार्टी की सरकार केंद्र में है, वही हमारे प्रांत में रहे तो हमें ज्यादा फायदा है। इसीलिए भाजपा सबसे आगे है।
भाजपा की यह सफलता मोद़ी+शाह की जोड़ी को पहले से अधिक ताकतवर बना देगी। अन्य नेताओं का रुतबा और कम हो जाएगा। मोदी सरकार अब अधिक उत्साहपूर्वक कार्य करेगी। कांग्रेस में अराजकता फैलेगी। अंदर ही अंदर नेतृत्व-परिवर्तन की बात उठेगी। अन्य प्रांतीय पार्टियां भी कमजोर होंगी। देश द्विदलीय व्यवस्था की तरफ बढ़ेगा। जो पार्टियां अब तक भाजपा से दूर रहीं, वे उसकी तरफ खिंचेगी। सरकार की जिम्मेदारी पहले से भी ज्यादा हो जाएगी। लोगों की आशाएं आसमान छूने लगेंगी। अब भी केंद्र सरकार का ध्यान सिर्फ प्रचार, जन-संपर्क और छवि-निर्माण पर लगा रहा तो लेने के देने पड़ जाएंगे। प्रचार तो हो लिया, अब काम शुरु हो।