मोदी जी देर से ही सही पर दुरुस्त आये

मोदी ने कहा - दो नये दोस्तों से एक पुराना दोस्त बेहतर
मोदी ने कहा - दो नये दोस्तों से एक पुराना दोस्त बेहतर
अभय सिंह ,राजनैतिक विश्लेषक
अभय सिंह,
राजनैतिक विश्लेषक

विगत गोवा में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी ने रुसी भाषा में राष्ट्रपति पुतिन को पुरानी दोस्ती की याद दिलाई। वर्ष 1991में सोवियत संघ के विघटन एवं बदलते आर्थिक परिवेश में कमजोर होते रूस से भारत ने मौकापरस्ती दिखाते हुए दूरी बना ली और अमेरिका से नजदीकी बनाने लगा।

अमेरिका से दोस्ती का लाभ भारत को थोडा जरूर हुआ है लेकिन अमेरिका अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति हेतु न तो पाकिस्तान पर लगाम लगा रहा है और न ही एनएसजी,यूएन में स्थाई सदस्यता के मुद्दे पर भारत के समर्थन में कोई विशेष पहल कर रहा है।

इसके उलट रूस ने सच्चे मित्र की भाति भारत का हमेशा समर्थन किया है। भारत व रूस की दोस्ती तब शुरू हुई थी, जब भारत गरीबी से जूझ रहा था और हथियारों, तकनीक तथा औद्योगिक निवेश के लिए रूस पर पूरी तरह से निर्भर था। पाकिस्तान के साथ हुए 1965 व 1971 के युद्धों के दौरान भारत को रूस से राजनयिक तथा सैन्य सहायता भी प्राप्त हुई। कई बार भारत के हितों की रक्षा के लिए रूस ने यूएन में वीटो का भी प्रयोग किया।

रूस के सहयोग से ही कुडनकुलम में 1000 मेगावाट परमाणु ऊर्जा के दो प्लांट स्थापित हो पाए हैं। करार के मुताबिक, आगामी 20 सालों के दौरान ऐसे ही 12 परमाणु रियक्टर स्थापित होंगे, जो कुडनकुलम तीन और चार का हिस्सा होंगे। परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भी रूस भारत की पैरोकारी करेगा। दोनों देश यूरेनियम और प्रौद्योगिकी को भी साझा करेंगे। इस तरह भारत आणविक अछूतपन दूर होगा और ऊर्जा के संकट भी कम होंगे।

भारत और रूस के बीच 130 अरब रुपए के कच्चे हीरे की खरीद का समझौता हुआ है। हीरे को तराशने और पोलिश करने का सबसे बड़ा बाजार भारत ही है। इसके अलावा, कैंसर और एचआईवी एड्स सरीखे रोगों के मद्देनजर शोध और विकास का वादा भी किया गया है, तो समाचारों के आदान-प्रदान पर भी सहमति बनी है। विभिन्न क्षेत्रों में कुल 20 व्यापक करारों पर दस्तखत किए गए हैं, जो एक शुभ और नए सिरे की अंतरंगता का संकेत है।

वर्ष 2013 में रूस ने भारत अमेरिका की बढ़ती नजदीकियों पर चिंता जाहिर की थी ।आज रूस की आर्थिक कमजोरी का फायदा उठाकर चीन उसका प्रगाढ़ मित्र बन चुका है और पाकिस्तान को भी उसके करीब ला रहा है जो भारत के लिए खतरे की घंटी है।

ब्रिक्स सम्मेलन में साफ़ दिखा की चीन ने पाकिस्तान के मुद्दे पर भारत की एक ना चलने दी और अपने साथ रूस को भी विश्वाश में लिया। अंततः भारत को अपने सच्चे मित्रो को पहचानना होगा अपनी भूल सुधार कर उनसे रिश्तों को प्रगाढ़ता प्रदान करनी होगी।

अभय सिंह
राजनैतिक विश्लेषक

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