दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार
इंडिया गेट से कोई 500 मीटर की दूरी पर बीजेपी का मुख्यालय है. आजकल यहाँ पत्रकारों की गहमगहमी कुछ ज्यादा ही होती है. बीते बुधवार की शाम मुझे एक हिंदी न्यूज़ चैनल के पत्रकार मिले. वे 8 -10 साल से बीजेपी की बीट कवर रहे हैं. पार्टी के तकरीबन हर बड़े नेता को वो व्यक्तिगत तौर पर जानते हैं. लेकिन बीजेपी की बढ़ती सफलता को लेकर उनके चेहरे पर मुझे उत्साह नहीं दिखा जो आमतौर पर बीट के रिपोर्टरों में दीखता है. इसलिए मैंने उनसे पूछा, क्या बात है …सब खैरियत तो है ? तब वे बोले..भाईसाहब अब यहाँ हमे पूछता कौन है ? सिर्फ शाम की ब्रीफिंग में चाय समोसा मिल जाता है.
हिंदी न्यूज़ चैनल के एक बड़े नामी गिरामी एंकर की राय भी कुछ ऐसी ही थी. उनकी बातों से ज़ाहिर हुआ कि उन्हें मलाल इस बात का है कि जब मोदी जी सीएम थे तो फ़ोन कॉल रिटर्न करते थे लेकिन अब तो मोदीजी चैनल मालिक तक को नहीं पूछते हैं. आजकल हाल ये है कि चैनल मालिक ही मोदीजी को किसी समारोह में बुलाने के बहाने ढूँढ़ते रहते हैं. यूपी के एक केंद्रीय मंत्री भी मुझसे कुछ दिन पहले कह रहे थे कि मोदीजी से कैबिनेट में ही बड़ी मुश्किल से मुलाकात होती है. उनसे मिलने का टाइम मांगते हैं पर जल्दी बुलावा नहीं आता.
बीजेपी के नेता हों, संपादक हों या दिल्ली के अन्य प्रभावशाली लोग, मोदी से सब के गीले शिकवे कुछ ऐसे ही हैं. उनके बताने का अंदाज़ अलग हो सकता है लेकिन बातों का मतलब यही है कि मोदी के दरबार में अब उनकी पूछ नहीं है.
ये सच है कि जिन्हे सत्ता के नज़दीक रहने की आदत हो, वो मोदी से भला खुश कैसे रह सकते हैं. उन्हें तो गिला सिर्फ ये है कि पीएम के निवास पर होने वाले कार्यक्रमों के न्योते अब नहीं मिलते हैं. कुछ सम्पादकों का कहना है कि महीनो की कोशिशों के बावजूद उन्हें आजतक अपॉइंटमेंट नहीं मिला. और कुछ पुराने दरबारियों को शिकायत है कि मोदीजी ने चाय पर चर्चा के लिए उन्हें तीन वर्षों में एक बार भी नहीं बुलाया.
सवाल मोदी के नज़दीक पहुँचने का नहीं है. सवाल ये है कि अगर आप एमपी हैं या संपादक हैं , तो आपको प्रचंड बहुमत वाला प्रधानमंत्री किस लिए ऑब्लाइज करे? क्यों चाय पर अपने घर बुलाये ? आपकी उपयोगिता क्या है ? आपसे क्या काम लिया जा सकता है ? सरकार तो सचिव और बाबू चलाते हैं. नीति , कानून एक्सपर्ट्स बनाते हैं ? चुनाव की रणनीति संगठन बना रहा है और जनता का फीडबैक सोशल मीडिया से सीधे मिल रही है. तो आपको मोदीजी किस काम के लिए अपना वक़्त दें ?
दरअसल दिल्ली दरबार में गठबंधन की सरकारों में सांसद से लेकर सम्पादकों की बड़ी पूछ रहती थी. वो चाहे अटलजी की सरकार हो या गौड़ा की या फिर मनमोहन सिंह की. समर्थन से चलने वाली सरकार हमेशा सदन में कमज़ोर रहती है और इसलिए मीडिया से लेकर सत्ता के हर दलाल की वहां पूछ होती है. शायद इसीलिए गठबंधन की सरकारों में पीएम के साथ चाय पीना कभी मुश्किल नहीं रहा है.
लेकिन जो पीएम ज़बरदस्त बहुमत के साथ सदन के भीतर और बाहर खड़ा हो उसे सचिव और काम करने वाले कुछ मंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों के अलावा किसकी ज़रुरत हो सकती है. और आज तो एक ऐसा पीएम है जो एक के बाद एक विधान सभा चुनाव जीतकर बीजेपी का मानचित्र बदलता जा रहा है. तो वो हर सांसद, हर संपादक को सलाम क्यों करेगा ?
निसंदेह ,मोदी जिस बहुमत के साथ आज दिल्ली में स्थापित हैं ऐसा बहुमत कभी राजीव गाँधी, मोरारजी देसाई या इंदिरा गाँधी को मिला था. राजीव गाँधी दूसरों पर ज़रुरत से ज्यादा विशवास करने के कारण बोफोर्स में फंस गए , मोराजी देसाई दर्जन भर दलों की खिचड़ी में खप गए और इंदिरा गाँधी को एमर्जेन्सी की अंधेरगर्दी ले डूबी. लेकिन मोदी अपने शुरूआती तीन वर्षों में अभी तक किसी भंवर में नहीं उलझे हैं. जनता के बीच बेहतर परसेप्शन बनाने में वो कामयाब रहे हैं और राजयोग में उन्हें एक बेहद कमज़ोर विपक्ष भाग्य ने भेंट किया है.
आखिर फिर क्यों वो आपको चाय पर घर बुलाएं ?
पीएमओ में की गयी आपकी फोन काल क्यों रिटर्न करें ?
आपको फिर भी अपने बारे में मुगालता है तो ये आपकी प्रॉब्लम है?
आपका चैनल अगर कर्ज़े में डूबा है तो इसमें मोदी क्या करें ?
आप एंकर है तो आज मोदी की प्रशंसा करने के लिए मोदी आपको क्यों ऑब्लाइज करें…गुजरात के पुराने विवादों के वक़्त आपका क्या स्टैंड था ?
अगर यूपी चुनाव के पहले आप अखिलेश यादव को जीता रहे थे तो 325 सीट जीतने के बाद मोदी अब आपके कॉन्क्लेव में क्यों शिरकत करें ?
आकांशा जनक ऐसे कई प्रश्न हैं लेकिन
सार बस इतना है कि …
“मान न मान मैं तेरा मेहमान” वाला फार्मूला
प्रचंड बहुमत की सरकार में नहीं चलता है.
इसलिए मोदी अपवाद क्यों हो ?