आलोक कुमार,वेब जर्नलिस्ट
लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान आनंद प्रधान ने मोदी की एक रैली में जुटी भीड़ का अंकगणितीय विश्लेषण किया. मैदान के आकर को प्रति व्यक्ति औसत क्षेत्रफल से भाग कर देकर. निष्कर्ष निकला – मोदी बनारस से हारने वाले हैं. आज फिर कुछ लोग रामलीला मैदान में लगी कुर्सियों और नितंब के आकार के हिसाब से दो कुर्सी पर एक के बैठने जैसे तर्कों के आधार पर मोदी को खारिज करने में लगे हैं.
अजीब उल्लास और अट्टहास का आलम है. कुछ लोग पतन की गाथा लिख रहे हैं.. यही है रचनात्मक विपक्ष. इसी हथियार से मोदी का मुक़ाबला करेंगे. न कोई कार्यक्रम न विकल्प. मैदान में खाली पड़ी कुछ कुर्सियों से उम्मीद जगाने की कोशिश.
समर्थकों से ज्यादा मोदी विरोधियों के रोम-रोम में प्रवेश कर गए हैं. खुद पर से विश्वास उठने के बाद मोदी कोई गलती करें इसी उम्मीद में दिन रात टकटकी लगाए विरोधी. लेकिन वक़्त भी कर्मवीरों का ही साथ देता है.
अमिताभ श्रीवास्तव
तो बात दिल्ली के मन की कम, ‘अभिनंदन ‘ की ज्यादा है। वरना दिल्ली की चुनावी जंग के लिए रैली में फड़नवीस, खट्टर और रघुबर दास को बुलाने का क्या मतलब ? मतलब मैं और मेरी ताकत । दिल्ली बीजेपी के पास कोई चेहरा भी नहीं है ये भी सच है। बहरहाल तामझाम तो तगड़ा है। चूंकि अभी चुनाव तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है इसलिए खर्च पर कोई सवाल भी नहीं उठ सकता।