पीके ठोंकूं
हां भइय्या राम-राम
हम फिर से हाजिर हूं। अरे भूल गए का। अरे हम हूं आपका पीके। मतलब ई बा कि पेके ठोंकू। चलिए पहले तनिक पनवा चबाई लूं। हम्ममम अब ठीक बा। अरे बिल्कुल भी चिंता न करिएगा भाई। हे अबस्थी बा, सुधीरवा डरने की काहे जरुरत न। दरअसल मीडिया का गोलबा देखन के बाद हमरा जी कबीता लिखने को बहुत ही कुलबुला रहा था। बहुत ही फड़फड़ा रहा था। तो टुकर-टुकर का देखत हो। कबीता का मजा लो।
मीडियापथ
—————–
न ही बढ़ाऊंगा तुझे
न ही गिराऊंगा तुझे
जहां फंसा है, वहीं लटकाऊँगा तुझे
ली शपथ…ली शपथ….मीडियापथ
जब भी तू दीप्तियमान होगा
सर पर जूनियर सवार होगा
कभी कोमा, कभी हलंत में
कभी क्रोमा, कभी प्रोमो में
सरे आम तू रूसवा होगा
अगर मिट गईं कई बाला तुझ पर
टारगेट कई गुना पार होगा
पैकेज पे पैकेज कटाएगा तू
कटंतू बनकर रह जाएगा तू
कोई ‘काला’, कोई ‘मंदबुद्धि’ बाला’ स्क्रीन पर होगा
सर-सर कर सालों गिड़गिड़ाता रहेगा
मलाई कमजोर-चमचा खाता रहेगा
अगर की सच बोलने की हिमाकत
तो कई गुना बढ़ जाएगी आफत
कितनी भी इज्जत तू क्यों न दे ले
विश्वास का कोई मोल नहीं यहां
समकक्ष-‘चेले’ का तोल नहीं यहां
‘अनजाना’ आगे बढ़ता जाएगा
तू देखता का देखता रह जाएगा
दोहरा चरित्र ही प्रसाद खाएगा
सालों सर-सर-सर करता जाएगा
अपना आदमी-क्षेत्र-जाति ही इनाम पाएगा
कुलबुलाता, बुलबुलाता रह जाएगा तू
न ढंग से हंस, न ही रो पाएगा तू
‘योनि’ का यूं ही इस्तेमाल-राज रहेगा
‘लिंग’ यूं ही मोहताज-बेजार रहेगा
ली शपथ…ली शपथ….मीडियापथ
हे ‘मालिक’ क्यों तू अपनी धुन में है
पैसे के सिवाय क्यों नहीं दिखता कुछ है
एचआर की आंखों पर क्यों पट्टी बंधी है
टैलेंट की भीड़ दरवाजे पर बढ़ी चली है
क्यों यहां एक ही क्षेत्र की भीड़ बढ़ी है
क्यों सभी ने ओढ़ा हुआ है एक चोला
इससे पहले कि फट जाए भीड़ का गोला!!
हे ‘मालिक’! हे एचआर
खोलो आंखें..दूर करो गड़बड़झाला
ताकि बना रहे विश्वास..होता रहे इंसाफ
न हो अभिवावकों का साल का लाखों का नुकसान
बाकी क्षेत्रों में भी है प्रतिभा का वास
युवाओं को होता रहे ये विश्वास
ये है सच्चाई का पथ…सच्चाई का पथ…मीडियापथ