यह बड़ा दिलचस्प मामला है कि देश भर में मशहूर हो जाने के बावजूद कन्हैया अपनी पार्टी को जेएनयू छात्र संघ चुनाव में अकेले लड़ने के काबिल नहीं पा रहे. साल भर चले छात्र आंदोलन का नतीजा यह निकला कि वामपंथ अपने सबसे मजबूत किले जेएनयू में ही कमजोर हो गया…
कभी जेएनयू में छात्र संघ के चुनाव में मुख्य मुकाबला लेफ्ट के दो अलग-अलग धड़ों के बीच होता था. इस बार वहां सभी वाम दल एकजुट होकर एबीवीपी को रोकने की कोशिश कर रहे हैं. नेशनल फेम कन्हैया की पार्टी ने तो अपना कोई कैंडिडेट तक नहीं दिया है.
हवाई क्रांतियों का यही हश्र होता है. ये मीडिया में छायी रहती हैं, जमीन पर खोखली रह जाती हैं.
(पुष्य मित्र के एफबी वॉल से)