निरंजन परिहार
कांग्रेस का केजरी खेल और मीडिया की माया
पीएम के लिए नरेंद्र मोदी नंबर वन। देश के 58 फीसदी लोग मोदी के साथ। दूसरे नंबर पर अरविंद केजरीवाल। और राहुल गांधी बहुत पिछड़कर तीसरे नंबर पर। टाइम्स ऑफ इंडिया ने पीएम पद को लेकर देश के आठ बड़े शहरों में जो सर्वे किया है, उसमें देश की 58 फीसदी जनता मोदी को देश के पीएम पद पर देखना चाहती हैं। जबकि केजरीवाल को 25 प्रतिशत और राहुल गांधी को सिर्फ 14 फीसदी लोग लोग ही पीएम के रुप में चाहते हैं। साल भर पुरानी पार्टी का राजनीतिक अनुभवहीन आदमी 130 साल पुरानी पार्टी के खानदानी राजनीतिक अमुभवी राहुल गांधी पर दुगना भारी। वाह क्या सीन है।
मीडिया महान है या कांग्रेस। इस उलझन को नए सिरे से समझने का यह सही वक्त है। कांग्रेस से उधार का सिंदूर लेकर अपनी मांग सजाकर सुहागिन होने का स्वांग कर रहे केजरीवाल के लिए मायावी मीडिया इन दिनों मस्त मस्त खबरें दिखा रहा है। दृश्य यह है कि मीडिया ने केजरीवाल को देश के पीएम पद की बराबरी में बिठाना शुरू कर दिया है। ये वही केजरीवाल हैं, जिन्होंने कांग्रेस को दुनिया की सबसे भ्रष्ट पार्टी और दो मुंहे सांप जैसी गालियां खुलकर दीं। फिर चुनाव जीता. बाद में उसी कांग्रेस के समर्थन से बीजेपी को रोकने के लिए के लिए अपने बच्चों की कसमें तक तोड़ डाली। नैतिकता के मसीहा का नया स्वरूप है। देखिये तो सही, किस तरह से, कितनी कलाबाजियां दिखाकर ‘आप’ के अरविंद को मीडिया मोदी से भिड़ा रहा है। राहुल गांधी तो पूरी पिक्चर से ही आउट हैं। मगर, असल में ऐसा नहीं है। सब कुछ बहुत समझदारी से हो रहा है। यह राहुल गांधी से फोकस हटाने की कोशिश है। फोकस होगा, तो कमजोरियां और गलतियां दोनों ज्यादा दिखेंगी। हाल के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस हार गई। तो अपने युवराज की कमजोरियों के दाग धोने के लिए केजरीवाल को साधन बना लिया। राजनीति रंग है, तो केजरीवाल साबुन। यह भी एक गजब सीन है।
जो लोग राजनीति थोड़ी कम जानते हैं, उनको सबसे पहले यह समझना होगा कि केजरीवाल जिस दिल्ली प्रदेश की सरकार के सीएम हैं, उसकी औकात देश के किसी भी बड़े शहर की नगर पालिका से ज्यादा नहीं है। ऐसे आधे अधूरे प्रदेश में अल्पमत का सीएम बन जाना भर ही अगर देश के पीएम की दावेदारी की सीढ़ी होता, तो शीला दीक्षित तो धमाकेदार बहुमत के साथ तीन बार सीएम रहीं। मगर, मीडिया मेहरबान, तो केजरीवाल भी पहलवान। देश भर के अनेक नायकों और मुख्यमंत्रियों को चुटकी में खलनायक या ना-लायक बनाने की क्षमतावाले राहुल गांधी को दरकिनार करके केजरीवाल को देश के परिदृश्य को प्रभावित करनेवाले महानायक के रूप में उभारा जा रहा है। सीन को समझने की जरूरत है। दरअसल, खेल कुछ और है। परदे पर जो दिखाया जा रहा है, वह सब कुछ किसी खास खेल का हिस्सा है। यह खेल, असली खिलाड़ी को अंत तक बचाए रखने का है। इस खेल में खिलाड़ी कोई और है। हो कुछ और रहा है, दिखाया कुछ और जा रहा है और दिख कुछ और रहा है। असल खेल परदे के पीछे हो रहा है। दृश्य में जो खिलाड़ी हैं, उनके साथ खेल करनेवाले खिलाड़ी पर्दे के पार से पल पल पतवार चला रहे हैं। खिलाड़ी गजब हैं, खेल अजब और मीडिया मोहरा।
दरअसल, हमारे हिंदुस्तान का एक वर्ग, जो केजरीवाल के अचानक उत्थान से समूचे देश की व्यवस्था में व्यापक विस्तार वाले परिवर्तन की उम्मीद पाल बैठा है। ताजा सर्वे से यह वर्ग खुश है कि उनके केजरीवाल अब सीधे मोदी से टक्कर में हैं। यह समाज, इस बात पर गौर भी नहीं कर रहा है कि मोदी से केजरीवाल को भिड़ाने का माद्दा रखनेवाले मीडिया में राहुल गांधी आखिर क्यों गायब हैं। मीडिया मासूम नहीं है। इसलिए थोड़ा सा शक करने का मन करता है। बेईमानी भले ही न हो रही हो, लेकिन ईमानदारी के साथ खेल जरूर हो रहा है। अगर नहीं तो, कल तक तो मीडिया में सिर्फ मोदी बनाम राहुल गांधी की बात हो रही थी। लेकिन राहुल गांधी हाल के विधानसभा चुनावों में मोदी से पिछड़ गए तो कमजोर कांग्रेस ने दिल्ली में केजरीवाल को सीएम बनाकर सीधे पीएम की रेस में खड़ा कर दिया। यह कमाल की कारस्तानी है।
केजरीवाल भले ही बढ़िया किस्मत लेकर जन्मे हैं। लेकिन हमारे बाकी प्रदेशों के सीएम से हर मामले में बहुत छोटे हैं। ऊम्र में भी, अनुभव में भी और राजनीतिक तपस्या की ताकत में भी। फिर भी बहुतों के मुकाबले उनको महामायावी मुख्यमंत्री के स्वरूप में गढ़ा जा रहा है। इस बात का खयाल किए बिना कि असल में केजरीवाल, सिर्फ और सिर्फ उस दिल्ली शहर के सीएम हैं, जो रह रहकर केंद्र सरकार से पूर्ण राज्य के पॉवर की भीख मांगता रहता है। दिल्ली भले ही प्रदेश कह लीजिए, लेकिन वहां की अधिकांश व्यवस्था केंद्र के कंधों पर है। उस आधे – अधूरे प्रदेश के सीएम बन गए केजरीवाल ने लोकसभा का चुनाव न लड़ने का ऐलान किया है। फिर भी मीडिया उनकी तुलना देश के किसी अन्य प्रदेश के सीएम से न करके सीधे पीएम पद की दावेदारी की तरफ धकेल रहा है। जरा सोचिये, दिल पर हाथ रखकर अपने अंतर्मन से पूछिये, कि क्या सिर्फ दिल्ली जैसे आधे अधूरे प्रदेश का सीएम हो जाने भर से ही किसी आदमी में राष्ट्र का नायक होने की क्षमता पैदा हो जाती ? या फिर जरा यह सवाल कीजिए कि देश के राजनीतिक परिदृश्य में राजनायक बनने की मुद्रा भर पा लेने से किसी को देश के पीएम की गद्दी का दावेदार प्रचारित किया सकता है ? लेकिन मीडिया यह कर रहा है और हम – आप सारे मजबूर है, उस तमाशे को देखने के लिए, जहां हमारे देश की राजनीति में उमर अब्दुल्ला, नीतिश कुमार, जयललिता, अखिलेश यादव, नवीन पटनायक, ममता बनर्जी जैसे मुख्यमंत्रियों से भी केजरीवाल को बेहतर बताने का प्रयास हो रहा है। मीडिया की किसी मुख्यमंत्री पर मेहरबानी का यह मजबूत दृश्य है।
दरअसल, केजरीवाल को पात्र बनाकर इस नाटक की पटकथा किसी और ने लिखी है। और उसका मंचन मीडिया कर रहा है। यह कोई और जो है, उसके नाम की तलाश के फिलहाल तो सारे रास्ते कांग्रेस की तरफ ही जाते हैं। क्योंकि वह एक तरफ तो उनको सीएम बनाने में बिना शर्त समर्थन देती है, दूसरी तरफ केजरीवाल को कोड़े बरसा कर कोसती है और ‘आप’ के अपराध भी गिनाती है। मीडिया इस पर गौर क्यों नहीं करता कि कांग्रेस द्वारा केजरीवाल के बारे में विधानसभा में वंदना और बाहर बयानों के बम की बरसात, दोनों साथ साथ करने के मायने क्या है ? फिर केजरीवाल भी कांग्रेस को सांप बताते हैं, सबसे भ्रष्ट कहते हैं और उसी भ्रष्ट पार्टी के समर्थन के बूते पर अपने अल्पमत तो
बहुमत में बदलने का जादू दिखाते हैं। इस परस्पर विरोध और समर्थन के साथ साथ चलने के राजनीतिक अर्थशास्त्र को समझने के लिए कोई बहुत ज्यादा समझदार होने की जरूरत नहीं है। राजकुमार की राह आसान करने के लिए कांग्रेस की कसी हुई रणनीति के तहत केजरीवाल और उनकी ‘आप’ को अचानक देश का बाप बनाने की चालाकी देश के सामान्य आदमी को भी समझ में आ रही है। राहुल गांधी को सहेज कर मीडिया में मोदी से केजरीवाल को भिड़ाने की कांग्रेस की कवायद सफल हो रही है। मगर नुकसान देश की राजनीति का हो रहा है। लेकिन क्योंकि यह सब खेल है। इस खेल में नरेंद्र मोदी निशाना है, इसीलिए नंबर वन पर रखा है। केजरीवाल कांग्रेस का साधन हैं, दूसरे नंबर पर खड़ा रखकर भिड़ाए रखो। और राहुल गांधी राजनीतिक संपत्ति है, जिनको बचाकर रखना है। कांग्रेस खिलाड़ी है और यह देश मैदान। खेल अदभुत है। इसीलिए, मीडिया देख भी रहा है और दिखा भी रहा है। और आप – हम सब मजबूर हैं पूरी बेचारगी के साथ यह खेल देखने के लिए। नहीं देखें, तो और क्या देखें। यह अपनी समझ से परे है। आपको समझ मैं आए, तो बताना ?
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
kuch kuch to samajh aa hi raha hai
bilkul yahi ho raha, jo aapne likha hai, kejriwal ye samajh rahe hain ke main CM nahin PM hoon, anubhav koi padh likh kar nahin aata, wo to jhelkar aata hai,
Aap CM nahin hai to bhi dharna kar rahe hain..
AAP CM hain tab bhi dharna kar rahe hain to phir CM aur Janta mein kya farq hai.. Upar Sajjan vyakti ne likha hai ke kuchh kuchh samajh mein aa raha hai, us din samajh mein nahin aaya tha jis din kejriwal ne kaha tha “MERE PAAS KOI JAADU KI CHHADI NAHIN HAI” election se pehle to aisa kyun nahin kaha “HINDUSTAN KE KISI BHI CM NE KABHI KISI SAMASYA KE LIYE AISA NAHIN NAHIN KAHA” Congress ne modi ka prabhav kam karne ke liye hi kejriwal ko mohra banaya hai, kejriwal abhi rajneeti mein bachche hain.. congress inko jo lollypop de deti hai ye choosne lag jaate hain.. agar yahi mahol chalta raha to Vidhan sabha mein congress 2014 mein aaye ya na aaye magar MODI ki lehar bhi thandi ho jaayegi