मीडियाकर्मियों की बेहतरी के लिए झारखंड सरकार की अनूठी पहल

सलाहकार की सलाह, सरकार ने योजना को दिया मूर्तरूप,पत्रकारों की पीड़ा को मिली आवाज

सुभाष चंद्र

hemant soren1सही मायने में लोकतांत्रिक सरकार वही होती है, जो सबका हित चाहती है। राज्य का सर्वांगीण विकास भी उसी स्थिति में होता है, जब उसमें सबकी भागीदारी हो। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ तो कह दिया जाता है, लेकिन मीडियाकर्मियों की सुध अमूमन किसी भी सरकार द्वारा नहीं ली जाती है। कुछेक राज्य सरकार ने फौरी तौर पर पहल किया है, लेकिन जमीनी स्तर पर मीडियाकर्मियों की बेहतरी के लिए झारखंड सरकार ने अनूठी पहल की है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पहले मीडियाकर्मियों की दुर्घटना बीमा कराने का मार्ग प्रशस्त किया और उसके चंद रोज बाद ही स्वास्थ्य बीमा कराने की घोषणा कर दी। यह बीमा मीडियाकर्मी का है, न कि मीडिया संस्थान का। मीडियाकर्मी की दुर्घटना बीमा की सीमा 5 लाख रुपये है और स्वास्थ्य बीमा की राशि 2 लाख रुपये रखी गई है। पत्रकार बीमा योजना के लिए निदेशक सूचना एवं जन-सम्पर्क विभाग एवं नेशनल इन्श्योरेंस कम्पनी के बीच समझौता पत्र पर हस्ताक्षरित किया गया है। इस योजना के तहत 75 प्रतिशत राशि सरकार द्वारा एवं 25 प्रतिशत की राशि बीमा धारी द्वारा दिया जाएगा। इस योजना में राज्य में गैर मान्यता प्राप्त एवं मान्यता प्राप्त दोनों ही तरह के पत्रकार सम्मिलित हो सकते हैं। तीन साल के अधिक समय से सक्रिय पत्रकारिता में योगदान देने वाले हर मीडियाकर्मियों को इसका लाभ मिलेगा।

स्थायीत्व के लिए तरस रहे झारखंड में अचानक ऐसा ठोस निर्णय कैसे लिया गया ? आखिर इस सोच के पीछे कौन है ? मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को किसने समझाया किया कि अब समय आ गया है कि राज्य के मीडियाकर्मियों की सुध ली जाए ? जो निर्भिकता और जीवटता के संग अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता जा रहा है, उसकी सुध अब तक किसी ने नहीं ली… इस तत्थ से सरकार को किसने अवगत कराया ? ऐसे ही कई दूसरे सवाल मन में कौंध रहे हैं। प्रमंडलों में आयोजित मीडिया संवाद कार्यक्रम को देखते ही जवाब मिल गया। वह शख्स कोई और नहीं है। स्वयं मीडियाकर्मी रह चुके हैं। मीडिया के हर रंग और खेल से वाकिफ हैं। वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सलाहकार हैं। कहते हैं न कि जब सलाहकार सही हों, तो सरकार के निर्णय भी मील के पत्थर साबित होते हैं। जी हां, वह हैं – हिमांशु शेखर चैधरी। करीब दो दशकों तक मीडिया के पुरबा-पछुआ को देख चुकने के बाद जब झारखंड में मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार बने, तो मीडियाकर्मियों के लिए कुछ करने की अपनी सदईच्छा को मन में संजो कर रखा। सरकार बनीं, निर्णय लेने का मौका आया, तो मीडियाकर्मियों की पीड़ाओं से मुख्यमंत्री को अवगत कराया।

जब भी मौका मिलता, मीडियाकर्मियों से बात करते। बराबार मीडियाकर्मियों से संवाद स्थापित किया। यूं तो झारखंड में जब शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने थे, तब भी हिमांशु शेखर चैधरी ने बतौर मीडिया एवं राजनीतिक सलाहकार उनके साथ अपना योगदान दिया था। चूंकि, वह सरकार चल नहीं पाई, लिहाजा मन में कसक रह गई। वर्षों तक उस पीड़ा को दबाए रखा। जैसे ही एक साल पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के राजनीतिक सलाहकार बनने का मौका मिला, उस पीड़ा को आवाज देने को तत्पर हो गए। कहते हैं न कि सलाहकार सही हो, राज्य में सबका भला होगा। इतिहास बताता है कि सम्राट चंद्र्रगुप्त इसलिए प्रसिद्ध हुए, क्योंकि उनके सलाहकार के रूप में चाणक्य जैसे सलाहकार और मार्गदर्शक थे। झारखंड की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले बखूबी इस सच से वाकिफ हैं कि हेमंत सरकार को कई मौके पर मुसीबतों से किस कदर हिमांशु शेखर चैधरी ने किस कदर बाहर निकाला। लोकसभा चुनाव में झारखंड में दूसरे दलों ने किस कदर पानी मांगा और झारखंड मुक्ति मोर्चा कैसे अपना किला बचाने में कामयाब रहा, वह हिमांशु चैधरी के हिम्मत और कूटनीतिक क्षमता का ही परिचायक है।

कुछेक लोगों के मन में इस बीमा प्रक्रिया को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं ? कई तरह के सवाल पूछे जा रहे हैं। मसलन, यह बीमा किस आधार पर होगा ? क्या मीडिया संस्थान महत्वपूर्ण है या मीडियाकर्मी ? इस बाबत स्वयं हिमांशु शेखर चैधरी कहते हैं कि गोड्डा की जन्मभूमि और साहेबगंज में पलने-पढ़ने के बाद देश की राजधानी दिल्ली में स्नातक एवं पत्रकारिता की शिक्षा हासिल की। दिल्ली से कार्य करने की शुरूआत की। रांची से बराबर संपर्क रहा। राज्य की राजधानी रांची मंे तमाम मीडियाकर्मियों से संवाद करता रहा। हर मीडियाकर्मियों की सिसकी मैंने सुनी। अफसोस पूर्ववर्ती सरकार को यह सुनाई नहीं पड़ीं राज्य में 13 वर्ष यूं ही बीत गए। चैदहवें वर्ष में हमने कई ऐसे क्षेत्रों को चुना, जो आज तक उपेक्षित रहा। ऐसा ही क्षेत्र मीडिया भी था। मीडिया का जरूरत हर राजनीतिक दलों और सरकारों की होती है, लेकिन मीडियाकर्मी की जरूरतांे को हर किसी ने नजरअंदाज किया। बस, यह पीड़ा हमारे मन में टीस मारती रही। मैंने मुख्यमंत्री से बात की। उन्हें समझाया और फिर पत्रकार बीमा योजना शुरू कर दी गई।

दरअसल, झारखंड की हेमंत सरकार ने ऐसे मीडियाकर्मी को इस बीमा के लिए चुना है, जो मीडियाकर्मी के रूप मंे कम से कम तीन साल से काम कर रहे हैं। यहां यह महत्वपूर्ण नहीं है कि आप किस संस्थान में हैं और आपका संस्थान कितना पुराना है। महत्वपूर्ण यह है कि मीडियाकर्मी का कार्य अनुभव कितना है ? यदि वे किसी नए संस्थान में आए हैं और वह संस्थान तीन साल से अधिक पुराना नहीं है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें इस बीमा से वंचित होना होगा। असल में, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कहना है कि सरकार की दो आंखें होती हैं, लेकिन इस समाज में मीडिया एक ऐसी तीसरी आंख है, जिसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मुझे दुःख है कि मीडियारूपी इस आंख की उपेक्षा होती रही है। मीडियाकर्मियों का शोषण होता रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए हमारी सरकार ने मीडियाकर्मियों के लिए बीमा योजना शुरू की है।

सबसे अहम बात यह है कि प्रदेश का एक भी मीडियाकर्मी इस योजना के लाभ से वंचित नहीं रहे, इसके लिए हर प्रमंडल में मुख्यमंत्री मीडिया संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। हजारों पत्रकारों का बीमा करवाया गया। इसी संवाद कार्यक्रम के तहत जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दुमका में थे, तभी मंच से सलाहकार हिमांशु शेखर चैधरी ने मीडियाकर्मियों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना की जरूरत को बताया। मुख्यमंत्री से इस पर विचार करने की मांग की। और अगले ही पल मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन के दौरान स्वास्थ्य बीमा योजना की औपचारिक घोषणा कर दी। हिमांशु कहते हैं कि सामूहिक बीमा के पश्चात् अब शीघ्र ही पत्रकारों को आवास या भूखंड आवंटित किए जाएंगे, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित रह सके।

परिवर्तन जीवन का नियम है। हर क्षेत्र में बदलाव जरूरी है। इसके लिए जो भी करने की जरूरत होगी बतौर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन करने को तैयार हैं। जीवन के संघर्ष में दूसरों के मौलिक अधिकारों के लिए सतत प्रयत्नशील और संघर्षरत रहनेवाले पत्रकार अपनी बात सरकार तक नहीं पहुंचा पाते। दूसरों की समस्याओं की आवाज बननेवाले पत्रकारों की स्थिति अच्छी नहीं है। नई चुनौतियों को स्वीकार कर कार्य योजना को चला सके इसमें मीडिया और अग्रणी नेताओं के मार्ग दर्शन की आवश्यकता है। व्यवस्था की बुराई पर अक्सर चर्चा होती है, परन्तु जब तक जन-जन में जागरुकता नहीं होगी, सिविक्स सेंस नही होगा तब तक परिवर्तन कठिन है।

ये योजनाएं बेशक राज्य सरकार की हों, लेकिन इसके शिल्पकार सलाहकार हैं। कई लोग उन्हें झामुमो का ‘चाणक्य‘ तो कई लोग हेमंत का सारथी तक कहते हैं, जो इस सरकार की गाड़ी को हिचकोलें खाने नहीं देते। अपने संबोधन में हिमांशु शेखर चैधरी बराबर कहते हैं कि राज्य में न तो संसाधन की कमी है और न ही पैसों की कमी है, कमी है तो सोच की एवं दूरदर्शिता की। विकास के प्रयास में टीम भावना के साथ आगे आना होगा। राज्य के विकास के प्रति कोई समझौता स्वीकार नहीं है। यदि सभी मिलकर समवेत प्रयास करें, तो राज्य को पीछे देखने की जरुरत नहीं है। बहरहाल, स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए पत्रकारों को आत्मनिर्भर करना जरूरी है। सबसे बड़ी बात है कि हिमांशु शेचार चैधरी मीडिया संवादा कार्यक्रमों में सभी पत्रकारों को मुख्यमंत्री की उपस्थिति में सार्वजनिक तोर पर कहते हैं कि सरकार को आपका साथ नहीं चाहिए, अपना जीवन सुरक्षित और अपने परिवार को सुरक्षित का भाव चाहिए। हिमांशु कहते हैं कि मीडिया मुख्यमंत्री के खिलाफ खुलकर लिखे। पत्रकारों के लिए सरकार ने योजना शुरू कर कोई एहसान नहीं किया है। ये सरकार का फर्ज है और हम पत्रकारों का अधिकार।

(लेखक पत्रकार हैं।)

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