नोटबंदी की आंधी को समझने में नाकाम मीडिया

कुछ महीने पहले वेनेजुएला में नोटबंदी के फैसले को वहाँ की जनता दो दिन भी नहीं सहन कर पायी और भयंकर अराजकता के कारण इस फैसले को वहाँ की सरकार को तत्काल वापस लेना पड़ा ।लेकिन आजादी के बाद नरेंद्र मोदी ने देश का सबसे ताकतवर फैसला लेकर एक झटके में देश के हर जन मानस को झकझोर डाला।

125 करोड़ की आबादी ने इस कठोर फैसले को सर आँखों पर लिया 50 दिन तक भयंकर पीड़ा झेलकर भी मोदी को सराहा क्योकि आज तक भारत के किसी नेता ने इस तरह भ्रष्टाचार के विरुद्ध साहसिक फैसले नहीं लिए।नोटबंदी को जनआंदोलन के रूप में पूर्णतया स्वीकार किया गया।50 दिन तक जनमानस का धैर्य अदभुत रहा ये गहन शोध का विषय रहा।

वर्तमान 5 राज्यो के बिधानसभा चुनावो में मीडिया के कई ओपिनियन मेकर नोटबन्दी की आंधी को समझने में पूरी तरह से नाकाम रहे हैं।जिस तरह वैश्विक मीडिया ट्रम्प की जीत को समझने में पूरी तरह से नाकाम रहा ठीक वही स्थिति भारतीय ओपिनियन मेकर्स की भी है।

अभय सिंह ,राजनैतिक विश्लेषक
अभय सिंह,
राजनैतिक विश्लेषक

पंजाब को छोड़ 4 राज्यों में मोदी की आंधी देखने को मिल सकती है बशर्ते मोदी और बीजेपी नोटबंदी को भुनाने में बेहतरीन रणनीति बनाएं।जिससे गोआ,यूपी, उत्तराखंड, में बीजेपी को बेहतरीन सफलता मिल सकती है।मणिपुर में बीजेपी उभरती हुई ताकत है हिमंत बिश्वशर्मा जैसे कुशल रणनीतिकार पूर्वोत्तर के हर सूबे में कमल खिलाने को आतुर दिख रहे है।

पंजाब में अकालियों की काली करतूतों का खामियाजा बीजेपी को भी भुगतना पड़ सकता है । सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाकर कांग्रेस पंजाब में परचम लहरा सकती ये तय है।नोटबंदी से सर्वाधिक प्रभावित आमआदमी पार्टी को
यहाँ तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ सकता है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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