ताकि मीडिया की फसल चौपट होने से बच जाए

ताकि मीडिया की फसल चौपट होने से बच जाए
ताकि मीडिया की फसल चौपट होने से बच जाए

ताकि मीडिया की फसल चौपट होने से बच जाए
ताकि मीडिया की फसल चौपट होने से बच जाए

Bonnie M Anderson की किताब न्यूज फ्लैश जब मैंने पढ़ी, उसके बाद जब भी किसी टॉक शो में जाता, मीडिया सेमिनारों में टेलीविजन दिग्गजों से मुलाकात होती,अपील करता..प्लीज आपलोग भी लिखिए न ऐसी किताब..किसी और के लिए नहीं तो कम से कम हर साल ग्रेजुएट हो रहे उन हजारों मीडिया स्टूडेंट के लिए जिन्हें मीडिया की पूरी ट्रेनिंग क्लासरूम को यज्ञशाला बनाकर दी जाती है..मैं इन बच्चों से सीधे संपर्क में हूं. मैं जानता हूं कि मीडिया की पूरी की पूरी फसल कैसे चौपट हो रही है. ये ज्ञान वो लेकर न्यूजरूम में हवन कर सकते हैं, न्यूज के साथ, तकनीक, व्यावसायिक दवाब को झेलते हुए भी संवेदनशील होकर खबर नहीं कर पाते.

एन्डरसन ने जिस अंदाज में किताब लिखी है, अपने सालों के सीएनएन के अनुभव और छोड़ने की पूरी घटना के साथ जिस तरह टेलीविजन को डिफाइन किया है, अद्मभुत है. आप जब खुद इस किताब को पढ़ेंगे तो लगेगा कि कई शख्स तमाम तरह के दवाब को झेलते हुए भी कैसे उसी पैशन से सालों तक काम करता रह गया और जब वही सारी बातें किताब में आती हैं तो फ्रस्ट्रेशन में नहीं बल्कि उस खुरदरे यथार्थ की शक्ल में जिससे गुजरकर हर न्यूकमर अपने को मानसिक रूप से बेहतर तैयार कर सकता है.

खैर मुझे कुछ लोगों ने आश्वस्त किया है कि वो जरूर किताब लिखेंगे..वैसी नहीं जो मीडिया में नौकरी करते हुए, आनन-फानन में इसलिए किताब लिख रहे हैं कि मौका मिलते ही वो किताबें लेक्चरशिप के लिए जुगाड़ फिट करने के काम आ सके..ऐसी किताब जिसके लिखने के पीछे ध्येय हो कि हमने काम करते हुए मीडिया को किस रूप में देखा, सत्ता-राजनीति और उसके चरित्र मीडिया की शक्ल कैसे बदलते हैं औऱ वो खुद को भी.

राजदीप ने आज से चार साल पहले जब एक सेमिनार में कहा कि हम मालिकों के हाथों मजबूर हैं. आप यहां रानीतिक खबरों की पेड न्यूज की बात करते हों, बिजनेस और एन्टरटेन्मेंट की खबरों पर बात करें, आपको ये पैटर्न का हिस्सा लगेगा..उस वक्त हमने इसे लेकर सोशल मीडिया पर लिखा और बाद में अपनी किताब मंडी में मीडिया में भी शामिल किया..अंदाज थोड़ा तंज ही था..लेकिन एक बात पर अटक भी जा रहा था कि राजदीप जैसे लोग किताब लिखेंगे तो कितनी दिलचस्प, मौलिक और विश्लेषणपरक होगी. आज सुबह उनकी किताब हाथ में है..चुनाव के दौरान, बीजेपी स्ट्रैटजी के हवाले से जो बातें उन्होंने मीडिया को लेकर की है, टुकड़ों-टुकड़ों में वो सारी बातें सोशल मीडिया में किसी न किसी रूप में आती रही है…लेकिन राजदीप ने जिस अंदाज में और जिन तथ्यों के साथ कहीं है, उन सबको और विश्वसनीय बनाता है. खासकर multimedia is the message चैप्टर तो ऐसा है कि जिस पर अलग से पूरी किताब लिखी जा सकती है.

किताब के कुछ ही पन्ने से गुजरा हूं और इसे वायपास की तरह सांय से गुजरना भी नहीं चाहता, ठहरकर, आराम-आराम से बल्लीमारान के जाम से गुजरते हुए पढ़ना चाहता हूं..लेकिन इतना तो जरूर है कि राजदीप जैसे मीडियाकर्मी कुछ नहीं तो ऐसी एक किताब लिख जाते हैं तो हमारी मीडिया की वो फसल चौपट होने से बच जाएगी और काफी हद तक मीडिया की अकादमिक दुनिया भी जिसकी क्लासरूम की दुनिया और न्यूजरूम की दुनिया दो अलग-अलग उपग्रह हैं..इस किताब को ज्यादा से ज्यादा पढ़ा जाना चाहिए और अपनी बात रखी जानी चाहिए..

और चुनाव धूल-धक्कड़ भरे मैंदान से, तकनीक से लैस एयर कंडीशन कमरे में जा पहुंचा..

Buy 2014 : The Election that Changed India

Buy REAL HEORES: ORDINARY PEOPLE EXTRAORDINARY SERVICE

देर रात REAL HEROS: ORDINARY PEOPLE EXTRAORDINARY SERVICE किताब के लिए राजदीप सरदेसाई का लिखा परिचय पढ़ रहा था. किताब की भूमिका रिलाएंस फाउंडेशन की चेयरपर्सन नीता एम.अंबानी ने ऑस्कर वाइल्ड की पंक्तियों को शामिल करते हुए लिखी हैं. ये किताब दरअसल सीएनएन-आइबीएन की ओर से अलग-अलग क्षेत्र के चुने गए उन 24 हीरो पर लिखी गई है जो अपने-अपने क्षेत्र में काम करते हुए समाज के लिए मिसाल कायम की है.

राजदीप की ताजातरीन किताब 2014 THE ELECTION THAT CHANGED INDIA घर तक पहुंचे इसके पहले इस किताब में छोटे से लिखे इस परिचय को पढ़ना बेहद जरूरी लगा. नीता एम अंबानी का साधारण व्यक्ति की परिभाषा भी…तो ये दोनों चीजें पढ़कर जब सोया तो मेरी आंख खुलने के कुछ देर बाद ही राजदीप की ये नई किताब भी आ गयी..मन अभी से ही लुकबुका रहा है कि सब कुछ छोड़-छाड़कर शुरु से आखिर तक के पन्ने पढ़ डालूं..दो दिन तक कमरे में पैक होकर..लेकिन गृहस्थी का जंजाल ऐसा..

खैर,किताब की भूमिका में राजदीप लिखते हैं- मेरे लिए एक और दिलचस्प बात रही कि जब मैं इस किताब के सिलसिले में लोगों से बात कर रहा था तो मुझे कई उन नौजवानों, पुरुष-महिलाओं से मिलने का मौका मिला जो बीजेपी की पूरी रणनीति को तकनीक के स्तर पर अमली जामा पहनाने में जुटे थे. उनमे से कई तो आइआइएम और आइआइटी से पढ़े पुराने लोग भी थे जिन्होंने अपनी मोटी सैलरीवाली नौकरी छोड़कर पूरी तरह इस काम में जुटे थे. उनके लिए ये चुनाव उसी तरह से था कि आप एक बिजनेस स्कूल में हो और आपको एक कॉर्पोरेट मैनेजमेंट प्लान करनी है. और ये मानने में कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि तब बीजेपी का मिशन 272 की पूरी रणनीति एक बिजनेस वेन्चर जैसी हो गई थी..यहां तक कि जातिगत समीकरण भी पूरी तरह प्रोफेशनल एप्रोच से देखे-समझे जाने लगे थे. मैं एक ऐसे नौजवान से मिला जो हर जाति की बाकायदा एक्सेल सीट लेकर घूम रहा था और उसमे ये भी जानकारी शामिल थी कि किसने इसके पहले के चुनाव में किसे वोट दिया..सड़कों,गलियों और धूल-धक्कड़ से भरे मैंदान का चुनाव तकनीक की ताकत और ऐसी स्ट्रैटजी से साफ-सुथरे एयर कंडीशन कमरे से लड़े जा रहे थे..पेज नं.- XV

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.