मीडिया ने क्या कभी गुजरात के मजदूरों की सुध ली?

जगदीश्वर चतुर्वेदी

मीडिया में पत्रकारों में एक ऐसा वर्ग पैदा हुआ है जो आए दिन मजदूरों और उनके नेताओं के खिलाफ घृणा का प्रचार करता रहता है।वे इनदिनों गुजरात मॉडल पर फिदा हैं और मोदी को देश का रक्षक बनाकर पेश कर रहे हैं, मनमोहन सिंह को तारणहार बनाकर पेश कर रहे हैं। मित्रो, कभी गुजरात के मजदूरों की सुध भी ली विगत आठ महिनों में ? कभी पता किया कि गुजरात के मजदूरों की अवस्था क्या है और वे सुखी हैं या दुखी हैं ?

कभी देश की मजदूर बस्तियों में जाकर देखा कि वहां लोग किस तरह की बदहाल अवस्था में कीड़े-मकौड़े की तरह जी रहे हैं। क्या मजदूर बस्तियों में फैला नरक नजर नहीं आता।

मीडिया में मजदूरों की खबर हिंसा और हड़ताल से शुरु होती है और एक बाइटस के बाद खत्म हो जाती है।

मजदूरों की जिंदगी में हड़ताल से ज्यादा उत्पादन के दिन होते हैं। यह उत्पादन वे मजदूर करते हैं जिनके पास न्यूनतम मानवाधिकार नहीं हैं।
हमने ऐसा लोकतंत्र बनाया है जिसमें भाग लेने वाले दलों के चुनाव घोषणापत्र में मजदूरों की समस्याएं कभी न तो दिखती हैं और न नेता के मुँह से कभी भाषण में ही मजदूरों का जिक्र आता है।

क्या मजदूरों के बिना लोकतंत्र बनाया जा सकता है ? मजदूरों के बिना लोकतंत्र संभव नहीं है।मजदूरों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं को सुरक्षित किए वगैर लोकतंत्र को बचाना संभव नहीं है। लोकतंत्र को लंपटतंत्र में तब्दील होने से बचाने में एकमात्र सक्षम वर्ग है मजदूरवर्ग।
मजदूरवर्ग आधुनिक सभ्यता का कोहिनूर है।

(स्रोत-एफबी)

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