(दिलीप मंडल)-
हिंदू शादी और मुस्लिम निकाह में अंतर है।
हिंदू शादी जन्म जन्मांतर का संबंध है। जोड़ियाँ स्वर्ग में बनती है। शादी कर्मफल है। विवाह के समय दूल्हा और दूल्हन की सहमति नहीं ली जाती।
इसलिए रिश्ता सड़ जाए, वफ़ादारी ख़त्म हो जाए, वैवाहिक बलात्कार हो रहा हो, तो भी रिश्ता निभाना होता है। इसलिए आप जनगणना में पाएँगे कि हिंदू सेपरेटेड हो जाते हैं, पर तलाक़ नहीं देते।
मुसलमानों का निकाह कॉन्ट्रैक्ट है। एक क़रार। दोनों पक्ष से एक नहीं, तीन बार पूछा जाता है कि मंज़ूर है या नहीं।
कॉन्ट्रैक्ट है तो उसे तोड़ने की भी व्यवस्था है। इसमें समस्या सिर्फ़ इतनी है कि तलाकशुदा महिलाओं के दोबारा निकाह का आँकड़ा ख़राब है। मुसलमान मर्द अक्सर आसानी से फिर निकाह कर लेते हैं। मुसलमान महिलाओं की कमज़ोर आर्थिक हालत से मामला और बिगड़ जाता है।
लेकिन समस्याओं की वजह से निकाह को विवाह नहीं बना दिया जा सकता।
समाज ज़बरदस्ती नहीं बदलता।
(फेसबुक एक्टिविस्ट और पत्रकार दिलीप मंडल के एफबी वॉल से)