भारत में चीन के सामान के बहिष्कार की मुहिम तेजी से फैलती जा रही है. सामान खरीदते समय अब लोग पूछने लगे हैं कि सामान चाइनीज तो नहीं. इसके पहले ऐसा कभी नहीं हुआ. लेकिन इस मुहिम के पक्ष में जहाँ लोग खड़े हैं तो विपक्ष में भी कम लोग नहीं कहदे हैं. पत्रकार भी इसके अपवाद नहीं. एनडीटीवी इंडिया के रवीश कुमार ने लेख लिख बाकायदा अपील भी जारी कर दी कि इस हफ्ते चीन का सामान जरूर खरीदना. बहरहाल उन्हीं विरोधियों पर बीबीसी हिंदी के पूर्व पत्रकार मणिकांत ठाकुर ने सोशल मीडिया पर निशाना साधा है. वे लिखते हैं –
1- चीन में बने और भारत में बिक रहे सामानों के बहिष्कार की स्वत:स्फूर्त मुहिम बिहार में भी तेज़ी से ज़ोर पकड़ने लगी है. अब यहां ग्रामीण बाज़ारों में भी ख़रीदार पूछने लगे हैं कि ‘ यह चाइनीज़ तो नहीं है ? ‘ लोग अपने घरों के सामान उलट-पुलट कर देखते हैं कि उन पर कहीं ‘मेड इन चाइना’ तो लिखा नहीं है. लोग मानते हैं कि किसी मुद्दे पर उभर रहा ऐसा जन विरोध बहुत दिनों के बाद दिखा है. इस कारण उन लोगों की बोलती बंद हो रही है, जो इस मुहिम का मज़ाक उड़ाते नज़र आये थे.
2-चेंग चांग चिंग चुंग के उन चमचों (एजेंटों) को चीनी माल के बहिष्कार का हिंदुस्तानी अभियान पच नहीं रहा, क्योंकि ये तो राष्ट्रघात की ही कमाई खाते हैं और अपने ही देश के ख़िलाफ़ नारे लगाते रहने के लिये नियुक्त हैं. इनकी बात ही छोड़ दीजिये. हमें भरोसा है कि अपनी मांटी से बने दीये और खिलौने अगर अपने बाज़ार में सजेंगे तो इस से हमारे ग़रीबों/श्रमिकों की रोज़ी-रोटी के दिन फिर से जगमगा उठेंगे.
3-वैचारिक पक्षाघात से ग्रसित बौद्धिक हवाबाज़ों के साथ मिलकर मीडिया-मैदान में ताल ठोंक रहे सियासी बहसबाज़ सचमुच कमाल के कठजीव होते हैं. अंदर से एक और ऊपर से अनेक रंगों वाली इस भ्रष्टाचारी जमात को सवालों से नंगा कर दो, फिर भी यह शर्मिंदा नहीं होती. यही राजभोगी जमात यहाँ जाति और मज़हब के गोलंबर बना-बना कर उनमें लोगों को चक्कर कटवाती रही है ? जनहित के बुनियादी मुद्दों को छोड़ कुछ भड़काऊ भावनात्मक मुद्दे उछालते रहने वाले इन अखाड़ेबाजों को पकड़ के रगड़ देने जैसा जन-ताण्डव कभी होगा क्या ?