भोपाल, 12 जनवरी। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में अमरीका से आए वैज्ञानिक डॉ. सुदेश अग्रवाल ने युवा दिवस के मौके पर ‘स्वामी विवेकानन्द के अध्यात्म की वैज्ञानिक दृष्टि’ पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि कन्याकुमारी में समुद्र के बीच चट्टान पर तीन दिन तक ध्यान लगाने के बाद स्वामी विवेकानन्द ने तय किया कि भारत के अध्यात्म को वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध करना है तो भारत के बाहर जाना होगा। वैज्ञानिकों को उनकी ही भाषा में अध्यात्म सिखाना होगा। इसके बाद स्वामी अमरीका गए और वहां प्रसिद्ध वैज्ञानिक निकोल टेसला और थॉमस एल्वा एडिसन सहित अन्य वैज्ञानिकों से संवाद किया। उनसे संवाद के बाद वैज्ञानिक भी इस बात पर सहमत हुए कि अध्यात्म के सूत्र वेदांत में हैं।
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि मैं अमरीका से आया हूं। मैं अच्छे से जानता हूं कि अमरीका में भारतीयता का क्या प्रभाव है? यह प्रभाव एक युवा संन्यासी स्वामी विवेकानन्द के कारण से हैं। जिन्होंने वहां सबसे पहले भारतीयता का ध्वज फहराया। वे कहते हैं कि रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात के बाद स्वामी विवेकानन्द की वैज्ञानिक अध्यात्म की यात्रा प्रारंभ होती है। आज दुनिया के कई वैज्ञानिकों के प्रेरणास्रोत स्वामीजी हैं। अमरीका का सबसे धनी व्यक्ति था रॉकर फेलर, वह सामाजिक कार्यों में रूचि नहीं लेता था। लेकिन, स्वामी विवेकानन्द ने उसे कहा कि तुम्हारे पास जितनी भी सम्पत्ति है वह समाज का ऋण है। रॉकर फेलर तीन दिन बाद लौटा और उनकी प्रेरणा से कर्इ सामाजिक सेवा और शिक्षा के प्रकल्पों की स्थापना की। मार्थिन लूथर किंग जैसे नेता भी स्वामी विवेकानन्द को अपनी प्रेरणा का स्रोत बताते हैं। डॉ. गर्ग ने बताया कि अमरीका से अभी कुछ विद्यार्थियों की टोली अध्ययन यात्रा पर भारत आई थी। इस अध्ययन यात्रा का नाम भी स्वामी विवेकानन्द के नाम पर है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने विज्ञान विषय से ग्रेजुएशन किया था। विज्ञान और अध्यात्म को वे अच्छे से समझते थे। इसीलिए स्वामीजी कहते थे कि विज्ञान का अगला चरण अध्यात्म है। स्वामी विवेकानन्द ने लंदन के साइंस कांग्रेस में कहा था कि हम कहते हैं कि एक ही चेतना सबमें है, जो सबको जोड़ती है। जिसके कारण सब एक-दूसरे पर निर्भर हैं। यह वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध है। दिल्ली में हाल ही में हुई साइंस कांग्रेस कॉन्फ्रेंस से एक बहस निकली है कि भारत का प्राचीन विज्ञान सत्य था या फिर मिथक है? हम सबके सामने यह प्रश्र है कि प्राचीन ज्ञान को नकारना है या स्वीकार करना है? कई पुस्तकों में इस विज्ञान की पुष्टि होती है। हमें इस दिशा में और शोध करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया।
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