विश्वविद्यालयों में विवेकानंद पीठ की स्थापना होना चाहिए : न्यायमूर्ति विष्णु सदाशिव कोकजे

प्रेस विज्ञप्ति

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में राज्य स्तरीय (मध्यप्रदेश) कुलपति सम्मेलन का आयोजन

भोपाल, 12 नवम्बर 2014। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से राज्य स्तरीय (मध्यप्रदेश) कुलपति सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में ‘स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा सम्बन्धी विचार : राष्ट्रीय पुनरुत्थान के लिए एक दृष्टि’ विषय पर विमर्श किया गया। प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए कुलपतियों ने स्वामी विवेकानन्द के विचार और चिंतन को ध्यान में रखते हुए मूल्यपरक शिक्षा, व्यक्ति निर्माण की शिक्षा और नैतिक शिक्षा पर अपने विचार साझा किए। इस मौके पर स्वामी विवेकानन्द के व्यक्तित्व, कृतित्व और चिंतन को केन्द्र बनाकर शोधकार्य कराए जाने की सहमति भी बनी। स्वामीजी के विचारों को विद्यार्थियों के बीच ले जाने के लिए संस्थानों में सह-शैक्षणिक गतिविधियों के आयोजन की भी सहमति इस सम्मेलन में बनी है।

सम्मेलन की अध्यक्षता हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल न्यायमूर्ति विष्णु सदाशिव कोकजे ने की। न्यायमूर्ति कोकजे ने कहा कि सभी विश्वविद्यालयों में विवेकानंद पीठ की स्थापना की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम आज के विद्यार्थियों को भौतिकता से बहुत दूर नहीं ले जा सकते। ऐसे में विद्यार्थियों के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर हमें विवेकानन्द के विचारों को उन तक पहुंचाना होगा। हमें विद्यार्थियों को बताना होगा कि मोटे वेतन के साथ जो तनाव मिलेगा, उससे जीतने और पार पाने की कला विवेकानन्द सिखाते हैं। सार्थक जीवन जीने की कला विवेकानंद सिखाते हैं। लक्ष्य को पाने के लिए एकाग्रता और जरूरी योग्यता की सीख विवेकानन्द को पढऩे से मिलेगी। इस तरह विद्यार्थी विवेकानन्द के विचार को पढ़ेंगे भी और आत्मसात भी करेंगे। न्यायमूर्ति कोकजे ने कहा कि भारत में एक धारणा बन गई है कि अध्यात्म बुढ़ापे की चीज है। जबकि वास्तविकता यह नहीं है। अध्यात्म हमें जीवन की कला सिखाता है। उन्होंने कहा कि युवाओं का गुस्सा वर्तमान नेतृत्व के प्रति है। प्राचीन नेतृत्व में युवाओं की आस्था है। इसका लाभ हमें उठाना चाहिए। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में न्यायमूर्ति कोकजे ने स्वामी विवेकानन्द के विचारों को शिक्षा संस्थानों के जरिए समाज के बीच प्रसारित करने के लिए कई छोटे-छोटे प्रयोग भी सुझाए।

सम्मेलन में आए स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती समारोह समिति के राष्ट्रीय सचिव अनिरूद्ध देशपाण्डे ने अपने उद्बोधन में कहा कि 125 वर्ष के बाद आज भी स्वामी विवेकानन्द के विचारों की प्रासंगिकता बनी हुई है। स्वामीजी ने भारत भ्रमण के बाद तीन बड़ी समस्याओं को चिह्नित किया था। भयंकर गरीबी, स्त्री शक्ति की अवमानना और अशिक्षा। शिक्षा के संबंध में उनका स्पष्ट मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य वही होना चाहिए जो हमारे राष्ट्र का उद्देश्य है। हमने आजादी के बाद शिक्षा संस्थान तो बहुत खोल लिए, शिक्षा संस्थानों और साक्षरता में संख्यात्मक विस्तार तो खूब कर लिया लेकिन मूल्यपरक शिक्षा कहीं पीछे छूट गई। ज्ञानवादी की जगह शिक्षा अर्थवादी बन गई। करियर जरूरी है लेकिन आज की समस्या यह है कि करियर ही शिक्षा का एकमात्र केन्द्र बन गया है। जबकि स्वामी विवेकानन्द ‘मैन मैकिंग’ शिक्षा पर जोर देते थे। उन्होंने कहा था कि नैतिक शिक्षा, मूल्यपरक शिक्षा और व्यक्ति निर्माण की शिक्षा पर ध्यान देने की जरूरत है। श्री देशपाण्डे ने कहा कि आज हमारे समक्ष चुनौती है कि अपनी शिक्षा व्यवस्था को हम स्वामी विवेकानन्द के चिंतन की दिशा में आगे बढ़ाएं। इस मौक पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि आज विद्वान, शिक्षक, विद्यार्थी, अभिभावक और समाजसेवी सब चाहते हैं कि शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन होना चाहिए। कुलपति होने के नाते हम सबकी यह सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि समाज की इस अपेक्षा की पूर्ति हम करें। उन्होंने देशज ज्ञान को खोजने और समाज के समक्ष उसके प्रकटीकरण की बात पर भी जोर दिया। देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डीपी सिंह ने कहा कि स्वामी विवेकान्द के विचारों और चिंतन पर शोधकार्य की आवश्यकता है। विश्वविद्यालयों में विवेकानन्द पीठ की स्थापना करने के लिए यूजीसी भी मदद कर रहा है।

शिक्षा उत्थान न्यास, दिल्ली के सचिव अतुल कोठारी ने कहा कि छोटे-छोटे प्रयोगों के माध्यम से हम बड़ा बदलाव ला सकते हैं। उन्होंने बताया कि अंशकालीन पाठ्यक्रम तैयार किए जा सकते हैं। स्वामी जी के विचारों को पाठ्य पुस्तकों में शामिल कराया जा सकता है। संस्थान में सात्विक वातावरण का निर्माण बहुत जरूरी है। वातावरण विद्यार्थी के व्यक्तित्व निर्माण, चरित्र निर्माण और बौद्धिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस मौके पर विद्वान जीतेन्द्र बजाज ने ‘राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन 16-17 नवम्बर, 2013 का कार्य विवरण’ पुस्तक के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए। इस मौके पर इस पुस्तक का विमोचन भी किया गया।

अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय भोपाल के कुलपति प्रो. मोहनलाल छीपा, तकनीकी शिक्षा मध्यप्रदेश शासन के निदेशक आशीष डोंगरे, ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट के कुलपति नरेन्द्र गौतम, राजीव गाँधी प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पियूष त्रिवेदी के अतिरिक्त प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सम्मेलन का संचालन सम्बद्ध संस्थाओं के निदेशक दीपक शर्मा और आभार प्रदर्शन कुलाधिसचिव प्रो. रामदेव भारद्वाज ने किया।

इन बिन्दुओं पर बनी सहमति :
– स्वामी विवेकानन्द के संदेश के साथ उनकी प्रतिमाएं विश्वविद्यालयों में स्थापित कराई जाएंगी।
– किसी एक भवन का नामकरण स्वामी के नाम पर किया जाए।
– स्वामी विवेकानन्द शोध पीठ की स्थापना की जाए।
– मूल्यपरक शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए।
– शिकागो दिवस और विवेकानंद जयंती पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए।
– विवेकानन्द के संदेशों को संस्थान में जगह-जगह प्रदर्शित किया जाए।

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