कुमार कृष्णन
स्थानीय शिक्षक संघ के सभागार में अशोक आलोक के सद्य प्रकाशित तीसरे गजल संग्रह ‘ जमीं से आसमां’तक के लोकापर्ण समारोह का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम जमालपुर रेल कारखाना के मुख्य कारखाना प्रबंधक अनिमेष कुमार सिन्हा ने दीप प्रज्ज्वलित कर लोकापर्ण समारोह का शुभारंभ किया। तत्पश्चात समकालीन साहित्य मंच के सचिव सह कार्यक्रम के संयोजक अनिरूद्ध सिन्हा ने आगत अतिथियों के स्वागत में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि अशोक आलोक एक सधे हुए गजलकार हैं। इनकी गजलों से गुजरते हुए एक नई दुनिया से गुजरना होता है। इनकी गजलों की सबसे बड़ी विशेषता है कि कोरी कल्पना का निषेध करती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध साहित्यकार ध्रुव गुप्त ने की। तत्पश्चात उनके ही करकमलों द्वारा पुस्तक का लोकापर्ण किया गया। पुस्तक पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि अशोक आलोक की गजलों में एक दुनिया है। उस दुनिया में हमारे जीवन की सारी विविधताएं चलते— फिरते नजर आती हैं। अशोक आलोक ने जीवन के यथार्य को काफी करीब से देखा और भोगा है। वाबजूद इसके उनके कहने का अंदाज तल्ख नहीं हुआ है। उनकी गजलों में गजल की मासूमियत बची हुई है। इस मौके डॉ शब्बीर हसन ने संग्रहित गजलों की चर्चा करते हुए कहा कि अशोक आलोक की गजलों में जीवन का दर्द है। वैसा दर्द जो हमारे दर्द को महसूस करने पर उद्येलित करता है। यह उनकी सफलता है। यही सफलता उन्हें गजल की दुनिया में पहचान दिलाती है।
समारोह के विशिष्ट अतिथि् राजीव रंजन सिंह परिमलेन्दु ने कहा कि अशोक आलोक की गजलों को मैं आरंभ से पढ़ता और सुनता आ रहा हूं। उनकी गजलो की लयात्मकता जीवन के रगों और तंतुओं को एक साथ जोड़ती है। समारोह के मुख्य अतिथि जमालपुर रेल कारखाना के मुख्य कारखाना प्रबंधक अनिमेष कुमार सिन्हा ने कहा कि समकालीन गजलों में जीवन का मिला—जुला स्वर है। वह स्वर अशोक आलोक की गजलों में साफ—साफ सुना जा सकता है। इस मौके पर सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के उपनिदेशक कमलाकांत उपाघ्याय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समकालीन हिन्दी साहित्य में गजल प्रमुख विधा के रुप में उभरकर सामने आयाी है। गजलों का कैनवास पारंपरिकता को तोड़कर आगे बढ़ रहा है। अशोक आलोक की गजलें इस बात का संकेत देती है। कार्यक्रम का संचालन कुमार विजय गुप्त ने किया। समारोह में मुंगेर के साहित्यकारों के अतिरिक्त गण्यमान्य लोगों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया, जिसमें कवियों ने अपनी कविता का पाठ किया।