भाषा, नेता और मीडिया

अमरेन्द्र कुमार

अमरेन्द्र कुमार
अमरेन्द्र कुमार
भाषा का सम्बन्ध सीधे संस्कृति से है। भाषा हमारे मनोभावों और विचारों को अभिव्यक्त करनें का एक नजरिया है। संयत भाषा से किसी व्यक्ति के आचरण और संस्कार का परिचय मिलता है। किसी भी पार्टी का नेता हो , उसे संयत , शालीन और भदरोचित भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए।

अभी हाल में नरेंद्र मोदी ने “खुनी पंजे” शब्द का प्रयोग कांग्रेस के लिए किया। यह भाषा निश्चय ही अमर्यादित,अशोभनीय और विकृत मानसिकता का परिचय है। यह भाषा भाजपा की सांस्कृतिक चेतना को मटमैला बनाने वाली है। मीडिया का भी यह कर्त्तव्य हो जाता है कि ऐसी भाषा का वह विरोध करे।

विडम्बना तो यह है कि मीडियाकर्मी स्वयं ही अशोभनीय भाषा का प्रयोग करते है। ऐसी स्थिति में यह विश्वास नहीं हो पाता कि मीडियाकर्मी अभद्र भाषा को रोकने में कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभा पाएंगे।

इस सम्बन्ध में मैं एक कसबे की घटना के बारे में ज़िक्र करना चाहूंगा। एक अपराधी महिला को पुलिस छड़ी से पीट रही थी। वही किसी चैनल के एक पत्रकार महोदय वह मौजूद थे। उन्होंने पुलिस से कहा — “ज़रा लूगा (साड़ी) हटाकर मारिये।” उन्होंने इस घटना को महत्वपूर्ण समाचार बनाने के लिए यह बात कही थी। लेकिन यह बात अशिष्ट थी और एक महिला के लिए यह वाक्य कहना निश्चय ही अमर्यादित था –भले ही वह महिला अपराधी रही हो

ये नेता जिस अंदाज़ में अपनी बात कहते हैं, उससे उनकी स्तरहीन मानसिकता का परिचय मिलता है। भाजपा के किसी नेता को तो कभी भी इस तरह की अमर्यादित ,अशोभनीय और मटमैली भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। नरेंद्र मोदी को कांग्रेस के निशान को खूनी पंजा नहीं कहना चाहिए था। भाजपा इस बात का दवा करती है कि वह एक सांस्कृतिक चेतना संपन्न राजनीतिक पार्टी है। उसे अपने प्रत्येक आचरण और अपने क्रिया-कलाप में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह अपनी किसी बात से सांस्कृतिक मूल्य का क्षरण नहीं दे। अपने प्रतिद्वंद्वी ही नहीं, बल्कि अपने शत्रु पर भीअमर्यादित भाषा से प्रहार नहीं करना चाहिए।

यह केवल भाजपा के लिए हम नहीं कह रहे हैं,बल्कि अन्य पार्टियों के लिए भी हमारा यह सुझाव है। कांग्रेस के राहुल गांधी ने भी कई बार अमर्यादित भाषा प्रयोग किया है। एक राजनीतिक विचार को खरिज करने के लिए किसी दूसरी पार्टी के नेता को अश्लील, अमर्यादित और तेज़ाबी भाषा से सम्बोधित नहीं करना चाहिए।

मीडियाकर्मियों को ऐसी तेज़बी और राजनीतिक उफान वाली भाषा बोलने वाले नेताओं की कड़ी आलोचना करनी चाहिए। आज के नेताओं को पचास-साथ के दशक के नेताओं से सबक लेनी चाहिए। लोगों कोयाद होगा कि लोहिया जवाहरलाल नेहरू की आक्रामक आलोचना करते थे, लेकिन कभी अपशब्दों का प्रयोग नहीं करते थे। मनमोहन सिंह ने भी मोदी पर प्रहार किया, लेकिन बहुत ही संयत और शालीन भाषा में किया। सभी पार्टी के नेताओं को उनसे सीख लेनी चाहिए।

भाषा हमारी खुशबू है। वह हमारे स्वभाव और आचरण को रौशन करती है। नीतिशास्त्र में भी कहा गया है कि सत्य बोले, लेकिन अप्रिय नहीं बोलें। नेताओं को नीतिशास्त्र के निर्देश को नहीं भूलना चाहिए। … मीडिया को उनपर अंकुश रखते हुए सही रास्ता दिखाना चाहिए।

अमरेन्द्र कुमार,वरिष्ठ पत्रकार

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