संजय कुमार डायरेक्टर, सीएसडीएस
दिल्ली के बाहर रहने वाले लोगों को लगता होगा कि दिल्ली धनी लोगों का शहर है, लेकिन हकीकत यह है कि दिल्ली की 30 फीसदी आबादी या इससे थोड़े अधिक लोग इन्हीं निम्न और निम्न आय वर्गों वाले इलाकों में रहते हैं। दिल्ली के मतदाताओं का यह बड़ा हिस्सा है और उनका रुझान किसी पार्टी के लिए थोक में मतदान करने की ओर होता है।
2013 के विधानसभा चुनाव छोड़ दें तो इन मतदाताओं ने कांग्रेस को बड़ी संख्या में वोट दिए हैं, लेकिन 2013 में मतदान को लेकर इनकी प्राथमिकताओं में बड़ा बदलाव देखा गया है। उन्होंने बड़ी संख्या में ‘आप’ को वोट दिए। हालांकि, दिल्ली के मध्यम वर्ग के वोटों ने भी ‘आप’ की चुनावी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब मध्यवर्ग के एक तबके ने सरकार छोड़ने के फैसले से नाराज होकर लगता है ‘आप’ की ओर पीठ कर ली है, लेकिन निम्न आय वर्ग के लोग अब भी याद करते हैं कि कैसे केजरीवाल ने रोज के जीवन में होने वाले छोटे-मोटे भ्रष्टाचार को खत्म कर दिया था।
झुग्गी व तंग बस्तियों के रहवासी, ऑटो रिक्शा ड्राइवर, फुटपाथ पर रहने वाले, छोटी दुकानें चलाने वाले या ऐसे ही छोटे-मोटे काम में लगे लोग याद करते हैं कि केजरीवाल जब 49 दिन मुख्यमंत्री थे तो पुलिस की हिम्मत नहीं हुई उनसे पैसे मांगने की। भाजपा ने भांप लिया कि मध्यवर्ग तो आमतौर पर उसके साथ है, उसे निम्न वर्गों में मौजूद ‘आप’ के वोट बैंक को तोड़ने के लिए कुछ करने की जरूरत है। इसी कोशिश में भाजपा ने लोकलुभावन घोषणाओं का सहारा लिया है।
भाजपा की अनिश्चितताएं यही खत्म नहीं होतीं। उसे अब भी यकीन नहीं है कि ‘आप’ के समर्थन आधार का मुकाबला करने के लिए उपरोक्त दो रणनीतियां पर्याप्त हैं। जब उसने अपने घुटे हुए नेताओं की लंबी सूची पर निगाह डाली तो उसे कोई ऐसा नजर नहीं आया, जो केजरीवाल की लोकप्रियता का मुकाबला कर सके। इसके बाद उसने पार्टी के बाहर खोज शुरू की। अब पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को पार्टी में लाकर उसने अपना तुरूप का पत्ता चल दिया है। पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी तो घोषित नहीं किया है, लेकिन ऐसे व्यक्तित्व के रूप में पेश किया जाएगा, जो मुख्यमंत्री के रूप में केजरीवाल से बेहतर हो सकती हैं।
@संजय कुमार डायरेक्टर, सीएसडीएस