सैयद एस.तौहीद @ passion4pearl@gmail.com
राजा रवि वर्मा पर केतन मेहता की रंगरसिया आखिरकार सिनेमाघरों में रिलीज हुई । मुख्यधारा से व्यस्क कहानियां आने का चलन सतही बातों से बच कर ही विमर्श का विषय बन सकता है । केतन की फिल्म सतही व कला में फर्क कर सकी ? सिनेमाघर में जाकर महसूस हुआ कि फिल्मकार ने अधिक बेहतर लक्ष्य का अवसर खो दिया। केतन की यह परियोजना आरंभ से विवाद का विषय बनी…फ्लोर पर जाने व अंतत: पूरा बनने दरम्यान सेंसरशिप सहन करना पडा। कभी कभार moral policing अधिक रिएक्ट कर विवाद खडा कर देती है ? कंटेंट के हिसाब से केतन ने आजादी जरुर ली है। लेकिन कहना होगा कि महिला व कला दोनों समाज के सताए लोग हैं । रंगरसिया के साथ हुआ बर्ताव सही था? सवाल का जवाब फिल्म बेहतर दे सकेगी । राजा रवि वर्मा पर रंजीत देसाई की लिखी किताब फिल्म का आधार बनी। आधुनिक कला के पितामह कहे जाने वाले राजा रवि वर्मा की यह कहानी अतीत-वर्त्तमान के सर्कल से गुजरती है। एक जीवन यात्रा किस्म की…लेकिन बाजार की ओर झुकी प्रस्तुति। सत्यजित राय व श्याम बेनेगल राजा रवि वर्मा पर इस तरह फिल्म नहीं बनाते। कोशिशों के बावजूद रंगरसिया रणदीप व नंदना की होकर रही…राजा रवि की वर्मा कम ।
केतन की फिल्म को नजर चाहिए क्योंकि नजरिया ही वस्तु का मूल्यांकन कर सकता है। रंगरसिया में अभिवयक्ति के एक से अधिक नजरिए नजर हैं। रणदीप का राजा रवि वर्मा की शक्ल में कला की खातिर संघर्ष एवं सामाजिक बदलाव का नजरिया। कला की खातिर संघर्ष का नजरिया। किसी कलाकार की जीवनी का अनुभव रवि वर्मा की जीवन यात्रा में महसूस होगा। कहानी में इस पहलू को नजरअंदाज नहीं किया गया है। राजाओं के दरबार में कलाकार का ऊंचा मुकाम हुआ करता था। दक्ष कलाकारों की पहचान की एक नजर हुआ करती थी। चित्रकला को आवरण बना लेने वाले बालक रवि वर्मा की काबलियत को राजा ने पहचाना था। रवि वर्मा को राजा की उपाधि से नवाजा गया। राजा ने रवि वर्मा को पुत्री का हांथ देकर घर का सदस्य बना लिया। महाराज के निधन उपरांत राजपाठ का अधिकारी राजकुमार हुआ… नए राजा के आ जाने से रवि वर्मा को पुराना तोहफा भूल जाना पडा। राजकुमारी को पति के चित्रकार किरदार से लगाव नहीं था। रवि वर्मा कलात्मक अभिवयक्ति के लिए मानव व समाज द्वारा निर्धारित बातों की परवाह नहीं किया करते थे। पत्नी की नाराजगी की वजह से उनमें बसा कलाकार कला की खोज के लिए बंबई चला आया। नंदना सेन की सुगंधा से चित्रकार की यहीं मुलाकात हुई। फिल्म राजा रवि वर्मा के सामानांतर उनकी कला प्रेरणा स्त्रियों की कहानी है । राजा रवि वर्मा ने कला को अभिव्यक्ति की बंदिशों से मुक्त करने की पहल ली थी । कला की साधना में कलाकार खुद को फना करने का फन जानता है। अनावश्यक अथवा अनचाही moral policing कलाकार की प्रतिभा को हताश कर दिया करती है। राजा रवि वर्मा पर फिल्म बनाने का निर्णय केतन को हताश कर गया ? काफी हद तक। लेकिन निराश नहीं हुए व संघर्ष जारी रखा। काफी अरसे से रूकी रंगरसिया के रिलीज में वो संघर्ष विजयी हुआ।
राजा रवि सरीखे फनकारों को समाज से बहुत अधिक सहयोग नहीं मिल सका। रवि वर्मा ने परवाह नहीं किया कि लोग क्या कहेंगे । सहयोग के रूप में प्रोत्साहन व संरक्षण की आशा फिर भी हर कलाकार रखता है। किसी न किसी वजह से आदमी जिंदगी से ज्यादा की उम्मीद रखता है। समय से आगे की सोंच को नजरिए में कमी वजह से हमेशा उचित स्वीकृति नहीं मिलती । राजा रवि वर्मा कला को अपने समय से आगे ले गए। उस जमाने में चित्रकारी के लिए आयल कलर का इस्तेमाल चलन से जुदा था। आपकी कला में ग्लोबल तत्व समाहित थे। कलाकार कृति का सृजन उसे महान बनाने के उददेश्य से नहीं करता। काम को जुनूं से आगे ले जाने फन लेकिन उसे खूब आता है। महान रचनाएं महान समर्पण की चाह रखती हैं । कलाकार समाज से लिया हुआ हर कीमती लम्हा दूसरे अंदाज में वापस कर देने में सक्षम होता है । राजा रवि वर्मा को समाज से इस मायने में सहयोग नहीं मिला कि धर्म का नुकसान किया था। धर्म व आस्था का दामन पर कूची से चित्र उकेरने लिए आप पर मुकदमा चला। पूज्य देवियों की तस्वीर बनाने के लिए आपने जिसका सहयोग लिया…वो समाज के अछुत तबके की थी । धर्म वालों की नजर में एक नाकाबिले कुबूल अभिव्यक्ति रही होगी । चित्रकार को यदि यह प्रेरणाएं नहीं मिली होती वो औरतों को खोया सम्मान लौटा पाता ? महिलाओं के देवी तस्व्वुर करने की एक उदाहरण यह था । देवदासी प्रथा से दलित महिलाओं का नुकसान हुआ । देवदासियों के हितों की दृष्टि से रवि वर्मा का साहस सराहनीय था। कला समाज द्वारा बनाए गए अस्वीकार्य बातों के विरुध अधिक मुखर बन गयी। रचना की प्रेरणा कलाकार को किसी भी सामान्य अथवा असामान्य बात से मिल सकती है । अभिव्यक्ति कलात्मक नजरिया तलाश लिया करती है। साधना उपरांत कला कलात्मकता का मुकाम पा लेती है। राजा रवि वर्मा ने साधना के माध्यम से सुगंधा में आदर्श देवियों का रूप देख लिया। रंगरसिया की नग्नता फूहडता को स्पर्श कर जाती तो आज की शक्ल नहीं अख्तियार कर पाती। एक चित्रकार रंगों से अधिक प्रेरणाओं से इश्क होना चाहिए। रंगरसिया में कलाकार की रचनात्मक एवं प्राकृतिक स्थिति बयान हुई है । समाज संस्कृति एवं अभिव्यक्ति बीच संवाद की स्थिति हमेशा तालमेल तक ही सीमित नहीं रहती। कला में vulgar की परिभाषा क्या ? प्रकृति व संस्कृति बीच मतभेद अथवा कुछ दूसरा ? राजा रवि वर्मा ने जवाब दिया तस्वीरों में ।
राजा रवि वर्मा ने समय एवं समाज से संघर्ष करते हुए मिथक चरित्रों को चित्र में ढाला। वेद पुराण में उपस्थित प्रेरणाओं को लोगों के सामने लाया। देवियों की गाथाओं ने आपको रचना के लिए प्रोत्साहित किया। सुगंधा के संपर्क में आने उपरांत उन रचनाओं के जीवंत होने का समय था। सुगंधा की सुदरता से गुजर कर चित्रकार सौंदर्यबोध तक पहुंच सका। कला की मंशा वही थी ? राजा रवि वर्मा ने सुगंधा के जरिए समाज के एक तबके को इज्जत भी दी। आपके विरुध चलाया गया मुकदमा तात्कालिक प्रतिक्रिया थी । मुकदमे में कला की स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर जोरदार बहस चली… समाज को ऊंच नीच में बांटने से नुकसान ज्यादा होता है । कला को नुकसान होता है । एक पीरियड फिल्म के रूप में रंगरसिया इतिहास का कोना है। राजा रवि वर्मा ने जिस शिद्दत से चित्रकारी जरिए पुराण व मिथक कहानियों को जिंदा किया…उसी तर्ज पर केतन मेहता ने अतीत को परदे पर उतारा। बढिया पीरियड फिल्म दरअसल इतिहास व संस्कृति का पुनर्सृजन लगनी चाहिए । फील के हिसाब से रंगरसिया इसमें सफल नजर आई ? चित्रकार के जीवन से प्रेरित कर्म रंगों से भरी दुनिया की कामना रखता है । सवाल में घिरा हुआ हूं कि सचमुच रंगरसिया एक ईमानदार प्रयास थी? रंगों के सामयिक इस्तेमाल में फिल्मकार हद तक कामयाब रहे हैं। रंगरसिया वो बहुरंगी पिचकारी… जिसमें कामना रखने वाले को हर रंग मिलेगा। मर्यादा तय आप को करनी है । राजा रवि वर्मा की उत्सुकता अथवा कंटेंट की उत्सुकता में सिनेमाघर जा रहे हैं ?