आलोक कुमार
अब बड़े और ज्यादा असरदार ‘टॉनिक-नोबेल’ को आजमाया जा रहा है …..!!
नोबेल – पुरस्कारों में ‘घाल-मेल’ की कहानी कोई नई बात नहीं है ….. पूर्व में भी अनेक अवसरों पर इस पुरस्कार और इसके जैसे दूसरे पुरस्कारों (जैसे मैग्ससे) की विश्वसनीयता पर प्रश्न-चिह्न खड़े हुए हैं ….. ये सर्वविदित है कि इस पुरस्कार की शुरुआत से लेकर आज तक पश्चिम के ताकतवर देश इसका इस्तेमाल अपने फायदे व घुसपैठ के तौर पर काम करने वाले लोगों को ‘अलंकृत’ करने के लिए ही करते आए हैं ….. एक ही उदाहरण इसे समझने के लिए पर्याप्त है ….. एकीकृत रूस को गोर्वाशोव के माध्यम से कैसे विखंडित किया गया ये किसी से छुपा नहीं है , ये बताने की जरूरत नहीं है कि गोर्वाशोव को भी शान्ति के लिए नोबल –पुरस्कार से नवाजा गया था …..
आइए एक दूसरे ही नजरिए से देखते हैं कि नोबेल –पुरस्कार कितने विश्वसनीय हैं ?….. जब से नोबेल – पुरस्कारों की शुरुआत ( १८९५ से ) हुई है अगर उस समय से आज तक की बात करें तो भारत में ऐसे एक नहीं अनेकों शान्ति- दूतों का अवतरण हुआ जिन्होंने सम्पूर्ण मानवता को शान्ति का पाठ पढ़ाया और जिनके बताए गए मार्ग पर चलकर, जिनके आदर्शों का अनुकरण कर विश्व में अनेकों शान्ति-दूतों का उदय व अवतरण हुआ l लेकिन नोबेल पुरस्कार ‘बाँटने वालों’ को भारत में कैलाश सत्यार्थी से बड़ा शान्ति – दूत अब तक नहीं दिखा ….!!
चंद दिनों पहले शान्ति के लिए इसी पुरस्कार से एक भारतीय कैलाश सत्यार्थी को ‘सुशोभित’ किया गया … इनके क्रिया – कलाप हमेशा से ही विवादास्पद रहे हैं ….. यहाँ तक कि इन पर हिन्दु-धर्म के खिलाफ चलायी जा रही गतिविधियों में संलिप्त रहने के आरोप भी लगे हैं ….. इनके द्वारा संचालित एनजीओ को मिल रहे विदेशी अनुदानों की जाँच की माँग भी पूर्व में उठी है…. वैसे भी भारत में विदेशी पैसों के दम पर चलाया जा रहा एनजीओ (एनजीओ) का गोरख-धंधा अब अपने पाँव काफी पसार चुका है और ऐसे सारे एनजीओज (NGO’s) विदेशी – एजेंसीज व सरकारों के एजेन्टों के रूप में ही काम रहे हैं …..बिना लाग-लपेट के कहूँ तो आज की तारीख में ऐसे एनजीओज (NGO’s) देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं ….
कैलाश सत्यार्थी और स्वामी अग्निवेश पहले एक साथ मिलकर काम करते थे लेकिन विदेशी से मिलने वाले चंदे की ‘बंदर-बाँट’ ने ही दोनों की राहें जुदा कर दीं…… और ये किसी से छुपा नहीं है कि स्वामी का चोला ओढ़ कर अग्निवेश कैसे भारत के मूल –धर्म के खिलाफ विष-वमन करते आए हैं ….
सत्यार्थी ने बाल मजदूरी के खिलाफ कैसा और कितना गज़ब का काम किया है …!! इस पर भी नजर डालने की जरूरत है ……. जिस कैलाश सत्यार्थी को बाल मजदूरी के खिलाफ अपनी मुहिम चलाने के लिए शांति-दूत मानकर पश्चिमी ताकतों ने नोबेल-पुरस्कार के रूप एक ‘बड़े तोहफे’ से नवाजा है , वो कैलाश सत्यार्थी बचपन बचाओ एनजीओ (NGO) का अपना पूरा गोरखधंधा पिछले ३५ वर्षों से उसी दिल्ली में करते आ रहे हैं जिस दिल्ली की कोई सड़क , कोई गली, कोई बाजार आज भी ऐसी नहीं है जहाँ कूड़ा – बिनने से लेकर जूता पॉलिश करने, होटलों में जूठे बर्तन मांजने से लेकर ठेला चलाने समेत अनेकानेक प्रकार से बाल मजदूरी करते हज़ारों बच्चे सहज ही ना दिख जाएँ …..ऐसे में ये सवाल सहज ही उठता है कि “फिर आखिर ये नोबेल क्यों…?”
इस सवाल के जवाब में फ़िलहाल बस इतना ही कहना चाहूँगा कि मैग्ससे पुरस्कार जैसे ‘टॉनिक’ से तैयार केजरीवाल सरीखा ‘टट्टू’ जब कुंद व सुस्त पड़ गया तो अब उससे बड़े और ज्यादा असरदार ‘टॉनिक-नोबेल’ को आजमाया जा रहा है …..!!
(आलोक कुमार )
(वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक ),
पटना .
Hello Mr. Alok Kumar,
Sir we would like to share a feedback regarding hate word “गोरखधंधा”. Guru Gorakh is Yogic menifestation of Lord Shiva. When Lord Shiva is worshipped in EkShivlinga form is called as Guru GorakhNath. This is the master form of Lord Shiva. We immensely believe Guru Gorakh is Supreme form of Lord Shiva in Guru Swaroop.
Associating Guru Gorakh with any Immoral activity is disrespect of Lord Shiva only. Using hate word “गोरखधंधा” hurts the sentiments of devotees of Guru Gorakh.
We request you to please Not to use Word again keeping the religious sentiments of devotees of Guru Guru GorakshNathJi. keeping this aspect will strengthen the better connect with viewers only.
Om Namah Shivay…!!!