निमिष कुमार
एक छोटी-सी ज़िंदगी
देश की जानी-मानी इमारत। एक फ्लोर पर बना जगमगाता ऑफिस। अति-विशाल बोर्ड रुम, क्योंकि ग्रुप बहुत पुराना था, और मालिकों की नेहरुकालीन पीढ़ी उसी तरीके से रहती थी। ग्रीन टी की चुसकियों के बीच मैं एक ‘न्यूज़ प्रोडक्ट’ (जी हां, अब हम इसी तरह से बात करते हैं) को ‘स्केन’ कर रहा था। मालिक का आना हुआ। एक-दूसरे को हम पिछले एक दशक से जानते थे। औऱ फिर हुई बातें। बेतकल्लुफ अंदाज़ में। हम ‘न्यूज़ मार्केट’ के बारे में बात करते रहे। हम न्यूज़ के ‘कॉम्पिटिटर्स की स्ट्रेटेज़ीस डिस्कस’ करते रहे। हम ये बात करते रहे कि कैसे हम एक न्यूज़ प्रोडक्ट को आगे लेकर जाएंगें। हम ‘पॉलिटिक्स, पॉलिसी और ब्यूरोकेटिक बैलेंस’ पर बतियाते रहे। हमारी बातें ‘कॉस्ट मैनेज़मेंट’ को लेकर हुई। ‘तेरे बारे में सही सुना था, तू प्राफिट मॉर्जिन बढ़ा ही देता है, लो कास्ट करके।’..हम ‘इर्मजिंग मार्केट’ को लेकर सोच रहे थे। हमें अपने न्यूज़ प्रोडक्ट के ‘टीजी याने टारगेट ग्रुप्स’ भी डिसाइड करने थे। दोनो ही ‘क्लॉस के साथ मॉस ऑडियंस को कैच’ करने की स्ट्रेटेजी चाहते थे। हम दोनों इस बात पर एग्री थे कि कैसे न्यूज़ मार्केट में कुछ ‘इनोवेटिव’ लाना जरुरी है। ‘हाउ यू क्रियेट देट बज’..कुछ नहीं सर, जो अब तक मार्केट में नहीं था, मैनें वही परोसा, और मार्केट लीडर्स को हमें फॉलो करना पड़ा। और हम दोनों हंसे।..हम दोनों की लाइन एक ही थी, ‘ग्लोबल मार्केट टैप’ किए बिना ‘ह्यूज़ मार्केट पेनेट्रेशन पॉसिबल नहीं’ होगा। वैसे भी ‘डिजीटल वर्ल्ड’ में हमारी ‘ऑडियंस’ तो ग्लोबल ही है।..लेकिन हम इंडिया के एक करोड़ 33 लाख की ओर बढ़ते स्मार्टफोन यूज़र्स को भी अपना ‘न्यूज़ कस्टमर’ बनना चाहते हैं।…रात हो रही है..अब हम सपने नहीं देखते..क्योंकि दिल कहीं चुपचाप है, और दिमाग चिल्ला रहा है- न्यूज़ प्रो़डक्ट, इमरर्जिंग मॉर्केट, लो कॉस्ट, प्रॉफिट मार्जिन, मर्जरर्स एंड पैक्ट, कॉम्पिटिटर, न्यूज़ कन्ज़यूमर, डिजिटल प्रसेंस, ग्लोबल आउटलुक…जाने क्या क्या…दिमाग चिल्ला रहा है..हम पत्रकार नहीं, अब न्यूज़ प्रोफेशनल्स बनते जा रहे हैं।
(लेखक पत्रकार हैं )