संजय तिवारी,वरिष्ठ पत्रकार-
पत्रकार की प्राब्लम ये है कि अगर बिना परिवार के रहे तो शायद वैसा पत्रकार रह सकता है जैसा आप उससे उम्मीद करते हैं। लेकिन उसकी भी प्राब्लम वही है जो आपकी है। उसके पास भी एक परिवार होता है जैसे आपके पास होता है जिसे पालने की जिम्मेदारी उसी पर होती है। पुलिसवाले का भी परिवार होता है, वकील का भी, जज का भी, ट्रैफिक पुलिस वाले का भी और आइएएस अधिकारी का भी। ये सब वो कुछ भी बाद में होते हैं जिसकी होने की हम उनसे उम्मीद करते हैं। उनके लिए उनका परिवार पहले होता है जिसके लिए वो काम करते हैं, आपके या हमारे लिए बिल्कुल नहीं।
इसलिए हर आदमी हर दूसरे आदमी के लिए भ्रष्ट है क्योंकि उसे भी परिवार पालना है। इसमें गलत कुछ नहीं है। जब एक गैर सरकारी आदमी या गैर जवाबदेह आदमी के ऊपर यह दबाव रहता है कि वह जैसे तैसे अपने परिवार को बेहतर स्थिति में रखे तो सरकारी या जवाबदेह आदमी अपनी इस जिम्मेदारी से क्योंकर दूर रहे?
भारत में भ्रष्टाचार की बुनियाद में परिवार है। कोई अपने लिए भ्रष्टाचार नहीं करता। जो करता है परिवार की सुख सुविधा के लिए करता है। लिहाजा, इतना समझ लेना चाहिए भारत के लिए या तो हम भारत की परिवार व्यवस्था को खत्म कर दें या फिर उसे व्यवस्था की मूल ईकाई बना दें। व्यक्ति को सभी अधिकार देने की बजाय अगर परिवार को सब अधिकार दे दिये जाएं तो भारत में अपराध और भ्रष्टाचार की समस्या बहुत हद तक समाप्त हो सकती है। हमारी सामाजिक संरचना व्यक्तिगत है ही नहीं, पारिवारिक है जबकि जिस लोकतंत्र को हम लागू किये बैठे हैं वह व्यक्तिगत अधिकारों वाला लोकतंत्र है। लेकिन दुर्भाग्य हमारे यहां दोनों नहीं हैं। यही हमारी सभी समस्याओं की बुनियाद में है। जो भी इस व्यवस्था हिस्सा होगा वह सहज रूप से भ्रष्ट होगा। न तो यह व्यवस्था हमारे लिए है और न ही हम इस व्यवस्था के लिए हैं।
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