प्रभात शुंगलू
जब अंतरात्मा टॉमी हो
जब देश के कुछ नामी-गिरामी पत्रकार सही और गलत का मायने समझाते हैं तो कुछ अटपटा सा लगता है। खासकर वो पत्रकार जिन्होने टीआरपी की खातिर अपने मालिकों के सामने घुटने टेक दिये और न्यूज़ के नाम पर कुछ ऐसा ऐजेंडा चलाया जिससे उसके एटीएम से झर-झर नोट गिरते रहे मगर जिससे पत्रकारिता शर्मसार हुई। इनकी नज़रों में तो इन्होने बेहद क्रांतिकारी काम किया। आज यही लोग सेक्यूलरिज़्म से लेकर भ्रष्टाचार तक, शिष्टता से लेकर नैतिकता तक सब का ज्ञान बाकायदा बिखेरते हैं। कुछ तमाम अखबारों के ज़रिये तो कुछ यहीं फेसबुक पर। इसलिए अगर अच्छे दिन आते हैं और प्रेस पर कुठाराघात होता तो नई क्रांति आएगी ये तय है। बिछ जाएंगे ये लोग क्रांति की राह में। नहीं नहीं, मिटेंगे नहीं। बिछ जाएंगे। आइ रिपीट – बिछ जाएंगे। समर्पित प्रचारक बनेंगे उस क्रांतिकारी के। इसमें मुझे कोई शक नहीं। जैसे उसने अपने गिरेबान में झांक कर कभी नहीं देखा और सच के श्मशान में झूठ की इमारत बुलंद की उसी तर्ज पर ये पत्रकार भी हैं। इनके लिए भी अंतरात्मा कुत्ते के बच्चे जैसी ही है। उसे गाड़ी के नीचे आना ही था। टॉमी की नियती यही थी। क्रांति ऐंवेई थोड़ी न आती है। वो भी आहुती मांगती है। प्रेस टॉमी की आहुती देने के लिये सदैव तत्पर है।
(स्रोत-एफबी)