अज्ञात कुमार
जनसंदेश टाइम्स में अब नई कहानी ने मोड़ ले लिया है। करीब एक साल पहले कंपनी के सीएमडी अनुज पोद्दार को हटा कर मौर्या बंधुओं रवीन्द्र मौर्या व विनीत मौर्या को अखबार संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसके साथ ही संपादक सुभाष राय भी प्रधान संपादक बनकर लौट आये, जिन्होंने पोद्दार से विवाद के बाद इस्तीफा दे दिया था। सुभाष राय ने ही 2010 में अखबार को लांच कराया था। इसके बाद आरपी सिंह सीईओ बनकर आये। इन सबके संयुक्त प्रयास से ही अखबार के बुरे दिनों की शुरुआत हुई। अब अखबार अंतिम सांसे गिन रहा है।
बनारस से जुड़े सूत्रों के अनुसार बनारस और इलाहाबाद की यूनिट लगभग खत्म करने के बाद अब अनुज पोद्दार को फिर से लखनऊ बैठाने की तैयारी चल रही है। विनीत मौर्या को नमस्ते बोल दिया गया है और सुभाष राय का जाना भी तय माना जा रहा है। इस बदले हालात में बाकी बचे पीडि़त कर्मचारियों को बड़ी राहत मिली है, जबकि जनसंदेश को डुबाने के जिम्मेदारों को कहीं नौकरी नहीं मिल रही है।
लखनऊ के मार्केटिंग हेड विनोद वर्मा अपना जाना तय मान कर इन दिनों नौकरी खोज रहे हैं, जबकि इलाहाबाद में बदनाम हो चुके प्रमोद यादव को भी कोई नौकरी देने को तैयार नहीं है। ये वो लोग हैं, जिन्होंने अखबार में विनीत मौर्या की शह पर जमकर लूटपाट मचाई। अखबार को डुबाने का मुख्य जिम्मेदार विनीत मौर्या व उनके भाइयों को ही माना जा रहा है, जबकि सीईओ आरपी सिंह व दुबारा लौटे सुभाष राय ने भी अखबार को खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
संस्थान में कार्यरत आधे लोगों को आरपी सिंह ने निकाल दिया, बाकी बचे कर्मचारियों ने विनीत-सुभाष राय की अकर्मण्यता से संस्थान छोड़ दिया। अब संस्थान में गिने-चुने कर्मचारी ही बचे हैं। दरअसल, बाबू सिंह कुशवाहा के बाद अखबार के मालिक कहे जा रहे अनुराग कुशवाहा अखबार को जिंदा ही रखना चाहते थे मगर उन्हें होश तब आया, जब संस्थान पूरी तरह डूब गया है। ऐसी स्थिति में उन्होंने एक बार फिर अनुज पोद्दार को वापस बुलाया है लेकिन अखबार वो इज्जत फिर लौटेगी, कहना मुश्किल है।