नेपाल में भारतीय अखबार काफी पढ़े जाते हैं. लेकिन धीरे – धीरे वहां से भारतीय अखबारों को गायब करने की साजिश रची जा रही है. लेकिन इन सब से भारतीय उच्चायोग और भारत सरकार अनभिज्ञ है. मीडिया खबर के लिए काठ्मांडू से प्रल्हाद गिरी की विशेष रिपोर्ट (मॉडरेटर)
EXCLUSIVE : काठमांडू, 5 मार्च। नेपाल में एक अरसे से मिल रहे हिंदी और अंग्रेजी दैनिक अखबार अचानक बंद हो गए हैं। सूत्रों के हवाले से बताया गया है की मालभाड़े में काफी वृद्धि के चलते दिल्ली से आ रही अखबार बंद होने की नौबत आई है । काठमांडू स्थित हिंदी साहित्य, पत्रिका और अखबार के मुख्य विक्रेता सन्देश गृह के अनुसार सन 2010 से ही एअरलाइन्स कम्पनियां काफी ज्यादा सरचार्ज शुल्क वसूल कर रही थी लिहाजा 2013 के फरवरी आते आते सभी अखबार बंद करना पड़ा।
सन्देश गृह की दलील है की कुछ हद तक अखबार संस्थाओं ने नेपाल भेजने के लिए हवाई शुल्क की ज़िम्मेदारी ले ली थी पर नेपाल के त्रिभुवन हवाई अड्डे से महज़ चार किलोमीटर की दूरी स्थित काठमांडू के न्यू रोड पहुंचाने के लिए पहले से 10 गुना ज्यादा भाड़ा वसूल किया जाता रहा।
‘हम घाटे की सौदा नहीं कर सकते क्योंकि हमारी रोजीरोटी का यही ज़रिया है।’ संदेश गृह के एक संचालक सिरिश प्रधान ने कहा। नेपाल के लिए पीटीआई संवाददाता भी रहे प्रधान का कहना है की हवाई अड्डे पर कुछ मजदूर युनियन के दबाव में भारत से आने वाली अखबार के लिए ही भाडा बढ़ाया गया। दरअसल, यह मजदूर युनियन प्रधानमंत्री बाबुराम भट्टराई की सत्ताधारी पार्टी एकीकृत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का है जो सरकारी निर्णय पर काफी दबदबा बनाती रहती है।
गौरतलब है, नेपाल में हिंदी अखबार नवभारत टाइम्स, पंजाब केसरी, दैनिक जनसत्ता ज्यादा लोकप्रिय थीं, वही अंग्रेजी अखबार में टाइम्स ऑफ़ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स, इकोनोमिक टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस को बड़े चाव से पढ़ा जाता था। नेपाल के ज्यादातर सरकारी दफ्तर, कूटनीतिक नियोग, बैंक, प्राइवेट कम्पनियां इन अखबारों को सब्स्क्राइब करते हैं, जिसका असर इनके काम, योजना और भविष्य पर भी पडेगा। एक सरकारी अधिकारी मीडिया खबर से इस मामले में कहा, ‘हम जानते हैं की भाड़े में बढ़ोत्तरी हुई, लेकिन इसका सीधा असर आम पाठक पर तो पडेगा ही, साथ ही साथ हमारे योजना पर भी असर पडेगा।’ वहीँ एक भारतीय मूल के व्यापारी दिलीप रॉय का कहना था, ‘हम भारत के समाचार हमेशा जानना चाहते हैं। क्योंकि हमारा निवेश उधर से होने वाले बज़ट और राजनीतिक हलचल पर भी काफी निर्भर है।’ हालांकि बंद सिर्फ भारतीय दैनिक अखबार ही होंगे, पर वीकली और मासिक पत्रिकाएँ जैसे कि इंडिया टुडे, आउटलुक, मेरी सहेली, गृहलक्ष्मी, हेल्थ आदि मिलती रहेंगी।
उधर, काठमांडू के भारतीय दूतावास इस बात को लेकर अनभिज्ञता प्रकट करता है। दूतावास के प्रथम सचिव और प्रवक्ता पीयूष श्रीवास्तव काठमांडू में भारतीय अखबार नहीं मिलने की बात को टालते हैं। उनका कहना था, ‘मुझे तो पता ही नहीं था।’ दूतावास के काठमांडू के दिल कहे जानेवाले न्यू रोड में ही एक बड़ी लाइब्रेरी है जहां अधिकतर भारतीय अखबार पाठकों के लिए रखी जाती है। नेपाल में 2006 में राजशाही ख़त्म के बाद मीडिया में यह दूसरी काफी बड़ी हैरान जनक तबदीली है। कुछ मीडिया विश्लेषकों का मानना है की यह घटना वैसे ही प्रेस स्वतन्त्रता हनन करने वाला मसला है जो नेपाल के तत्कालीन राजा ज्ञानेंद्र ने मीडिया सेंशरशिप के तहत लागू किया था।
(काठमांडू से प्रल्हाद गिरी की रिपोर्ट)