रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की ताजा सूची में भारतीय मीडिया की भद पिटी

सोशल मीडिया पर रोक और वेबसाइटों पर पाबंदी लगाने की भारत की धमकी के बाद अंतरराष्ट्रीय मीडिया रैंकिंग में यह 140वें नंबर पर गिर गया है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की ताजा सूची में पाकिस्तान 159वें नंबर पर है.

भारत में आम तौर पर मीडिया को आजाद कहा जाता है लेकिन अंतरराष्ट्रीय संस्था का मानना है कि यह आजादी सिर्फ कहने के लिए है. उसने भारत को अफ्रीकी और अरब के देशों से भी नीचे रखा है. यहां तक कि अफगानिस्तान का नंबर भी भारत से ऊपर है.

सूची जारी करते हुए रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के महासचिव क्रिस्टॉफ डेलोयर ने कहा, “प्रेस फ्रीडम इंडेक्स जारी करते हुए राजनीतिक व्यवस्था को ध्यान में नहीं रखा जाता है, लेकिन यह साफ है कि लोकतंत्र में प्रेस की आजादी की ज्यादा सुरक्षा होती है. वे ज्यादा सटीक खबरें दे पाते हैं और उन मुद्दों को भी उठा पाते हैं, जहां मानवाधिकार का उल्लंघन हो रहा हो.”


हालांकि भारतीय मीडिया इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है. इंडियन एडिटर्स गिल्ड के पूर्व अध्यक्ष आलोक मेहता ने कहा, “यह बड़ी हैरानी की बात है की प्रेस आजादी में भारत को इतना नीचे रखा गया है. समझ में नहीं आता है कि उनका पैमाना क्या है क्योंकि यहां तो मीडिया को इस कदर आजादी है कि कई बार वह अपनी हदें भी पार कर जाता है.”

हालांकि उनका मानना है कि प्रेस में कई नियमों का पालन नहीं किया जाना बड़ी चिंता की बात है, “प्रेस काउंसिल ने कई तरह के नियम कायदे बनाए हैं लेकिन इस संस्था के पास शक्ति ही नहीं है और ऐसे में इन कायदों का कोई मतलब नहीं रह जाता.”

मीडिया फ्री़डम इंडेक्स में पहले नंबर पर यूरोपीय देश फिनलैंड है, जबकि नीदरलैंड्स दूसरे और नॉर्वे तीसरे नंबर पर है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने साफ नहीं किया है कि किस आधार पर यह सूची तैयार की गई है. ब्रिटेन को 29वें और अमेरिका को 32वें स्थान पर रखा गया है, जबकि चीन आखिरी से सातवें यानी 173वें नंबर पर है.

इस सूची के साथ ही रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने विश्वव्यापी मीडिया स्वतंत्रता का एक सूचक भी जारी किया है. इसकी मदद से दुनिया भर में सूचनाओं की स्वतंत्रता को मापा जा सकता है. फिलहाल इस सूचक को 3395 अंक पर रखा गया है. यह आने वाले समय में मीडिया की आजादी का पैमाना होगा.

भारत में पिछले साल सोशल मीडिया पर नकेल कसने की सरकार की कोशिशों का भारी विरोध हुआ था और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सवाल उठाए गए थे. खास तौर पर मुंबई की उस घटना पर भारत की काफी फजीहत हुई थी, जिसमें बाल ठाकरे की मौत के एक बाद एक लड़की के फेसबुक कमेंट की वजह से उसे गिरफ्तार कर लिया गया. मेहता का कहना है कि भारतीय समाज भी मीडिया के लिए बंधन का काम करता है, “भारत में कई धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं और सरकार के सामने इस बात की चुनौती रहती है कि किसी घटना से या मीडिया की किसी खबर से अप्रिय घटना न हो जाए. लिहाजा उसे कई जगहों पर कड़ा रुख अपनाना पड़ता है.” भारत पिछले साल 131वें नंबर पर था और इस साल वह नौ अंक नीचे गिर गया है.

भारत में अब भी मीडिया पर कई तरह की अनदेखी बंदिशें हैं, जिनमें एफएम रेडियो चैनल पर समाचार न प्रसारित करना भी एक बड़ा मुद्दा है. इसके अलावा कई मुद्दों को तो राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में भी डाल दिया जाता है. पिछले साल भारत के एक फोटोग्राफर असीम चतुर्वेदी पर एक कार्टून की वजह से राष्ट्रदोह का मुकदमा लग गया और बाद में हो हंगामे के बाद इसे हटाया गया. मेहता इसे सरकार की मजबूरी बताते हैं, “गठबंधन सरकार की राजनीतिक मजबूरियां होती हैं. इसके अलावा भारत में न्याय तंत्र बहुत धीमा है और इन सबका असर मीडिया पर भी दिखता है.”

(डायचे वेले से साभार)

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