इंडिया अनलिमिटेड पत्रिका के तीन साल पूरे होने के अवसर पर संगोष्ठी

अवधेश कुमार मिश्र

india unlimited magazine seminarइंडिया अनलिमिटेड पत्रिका के तीन साल पूरे होने के अवसर पर बीते रविवार को दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में ‘वैश्विक हिंसा का दौर और गांधीवाद’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय की अध्यक्षता में कई वरिष्ठ पत्रकारों ने इस विषय पर अपने-अपने विचार व्यक्त किए। गोष्ठी का संचालन इंडिया अनलिमिटेड पत्रिका के पत्रकार शिवानंद द्विवेदी ने किया।

गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने अपने संबोधन में गांधी को एक बहती नदी बताया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार कोई नदी पहाड़ से लेकर समतल जमीन तक में अपना रास्ता खुद चुनती है उसी प्रकार गांधी ने अपना रास्ता खुद चुना। साथ ही उन्होंने कहा कि ऐसा भी नहीं है कि गांधी को विफलता नहीं मिली हो। उन्होंने कहा कि मधु लिमये ने सबसे पहले सवाल उठाया था कि आखिर गांधी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में पंडित जवाहरलाल नेहरू को क्यों चुना? लिमये ने प्रश्न उठाया था कि गांधी अपना वारिश चुनने में विफल क्यों हुए? राय ने आगे कहा कि दुनिया के लोगों ने गांधी को प्रयोग के रूप में कभी नहीं अपनाया। उन्होंने कहा कि अपने देश में आज भी गांधी पर कोई प्रयोग नहीं हो रहा है।

वहीं गोष्ठी में वैश्विक हिंसा का दौर और गांधीवाद विषय पर अपने संबोधन के शुरू में ही वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने कहा कि गांधी बोलने की नहीं बल्कि जीने की चीज हैं। उन्होंने बेबाकी से बोलते हुए कहा कि वह स्वयं हर दिन गांधी को जीने का संकल्प लेते हैं और हर दिन उनसे यह संकल्प टूटता है, उन्होंने इससे भी आगे बढ़ते हुए कहा कि वे आज तक गांधी को नहीं जी पाए हैं। जबकि हर किसी को गांधी को जीने का प्रयास करना चाहिए और जिस दिन ऐसा होगा हिंसा स्वयं खत्म हो जाएगी। अपने संबोधन के दौरान एनके सिंह ने गीता के दो श्लोकों के माध्यम से हिंसा के मूल के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि गांधी गीता के सबसे बड़े प्रैक्टिश्नर थे। कहने का मतलब गीता को अपने जीवन में किसी ने सबसे ज्यादा उतारा है तो वो हैं गांधी। सिंह ने गीता के श्लोकों के माध्यम से हिंसा के बारे में बताते हुए कहा कि हिंसा मानव की प्रकृति नहीं है। बल्कि हम सब बाजारवाद के वहाव में भटक गए हैं। उन्होंने कहा कि क्वॉलिटी ऑफ ह्यूमनबीइंग खत्म हो चुका है। विकास तो हमारे देश में भी दिख रहा है लेकिन उन्होंने सवाल पूछते हुए कहा कि क्या ह्यूमन डेवलपमेंट के पैमाने पर देश का विकास हुआ है? उन्होंने अपनी आदत के अनुरूप तथ्यात्मक आंकड़े बताते हुए कहा कि मानवीय विकास के पैमाने पर हम 34 सालों से एक ही स्थान पर कायम हैं। अंत में उन्होंने कहा कि गांधी को जी कर ही हम अपने मूल प्रकृति यानी अहिंसा पर कायम रह सकते हैं।

गोष्ठी की औपचारिक शुरुआत करते हुए वैश्विक हिंसा का दौर और गांधीवाद विषय पर रोशनी डालते हुए वरिष्ठ पत्रकार रविशंकर ने गांधी और गांधीवाद से आगे बढ़ने की बात कही। गोष्ठी में आमंत्रित अतिथियों में सबसे पहले बोलते हुए लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने अपने संबोधन के दौरान गोष्ठी के निर्धारित विषय पर तो कुछ नहीं कहा लेकिन गांधी के बारे में बहुत कुछ बोला उन्होंने कहा कि गांधी कालातीत हैं क्योंकि गांधी ऐसे शख्स हैं जिन्हें हमारे पोते के पोते भी इसी तरह याद करेंगे जिस प्रकार हम लोग याद कर रहे हैं।

गोष्ठी में समाचार प्लस के मैनेजिंग एडिटर अमिताभ अग्निहोत्री ने भी विषय से अधिक पारंपरिक तरीके से गांधी पर ज्यादा जोर दिया, उन्होंने कहा कि गांधी न भूतो न भविष्यति हैं। वहीं अपने संबोधन में गांधी शांति प्रतिष्ठान के वरिष्ठ पदाधिकारी उत्तम सिन्हा ने गांधी को लेकर कुछ मौलिक बाते कहीं। उन्होंने कहा कि जैसा कि सब जानते हैं कि गांधी एक राजनेता या एक आंदोलकारी के साथ ही एक उम्दा पत्रकार भी थे। लेकिन जब वो इंग्लैंड गए थे तब तक गांधी अखबार तक नहीं पढ़ा करते थे। इंग्लैंड जाने के बाद ही उन्होंने अखबार पढ़ना शुरू किया था। गांधी की पत्रकारिता के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि गांधी का पहला लेख शाकाहार पर छपा था, उसके बाद वे भारतीय संस्कृति और धर्म के बारे में लिखना शुरू किया। राजनीतिक लेख तो उन्होंने बहुत बाद में लिखना शुरू किया।

गोष्ठी के आखिर में पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर ने गांधी और गांधीवाद की प्रासंगिकता पर बोलते हुए शुरू के वक्ता के कुछ विचारों से सहमति जताई तो कुछ पर आपत्ति। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि गांधी न भूतो न भविष्यति रहे हैं। उन्होंने जॉर्ज डब्ल्यू कार्बर का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे उन्होंने विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने हित का बलिदान कर वैश्विक हित की चिंता में लगे रहे वो भी वैज्ञानिक प्रामाणिकता के साथ। उन्होंने कहा कि गांधी प्रासंगिक हैं और रहेंगे भी लेकिन गांधीवाद से अटककर नहीं बल्कि गांधीवाद से आगे बढ़कर।

गोष्ठी में आमंत्रित मुख्य वक्ता अतिथि के रूप में वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह, अमिताभ अग्निहोत्री, पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर, उत्तम सिन्हा और लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने गांधी और आज के दौर में विश्व स्तर पर हो रही हिंसा के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। गोष्ठी की औपचारिक शुरुआत होने से पहले पत्रिका की संपादक ज्योत्सना भट्ट ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए उन्हें प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया। बाद में वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी और रविशंकर को पत्रिका में अपनी लेखनी से सहयोग करने के लिए वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने उन्हें प्रतीक चिन्ह और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया।

इसी दौरान सभी आमंत्रित अतिथियों ने पत्रिका के नए अंक का लोकर्पण किया।

इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार, पंकज चतुर्वेदी, उमेश चतुर्वेदी, अनिल पांडे, अरविंद कुमार सिंह, टीवी पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी, व्यंग्यकार संतोष त्रिवेदी, रविशंकर, प्रेम प्रकाश उपस्थित थे। इसके अतिरिक्त लोकसभा टीवी की एंकर अर्चना शर्मा, प्रकाश नारायण सिंह (एबीपी न्यूज), रविकांत द्विवेदी (एनडीटीवी), मनीष शुक्ल (जी न्यूज), आशीष अंशु, पृथक, सिद्धार्थ झा (लोकसभा टीवी), पश्यंती शुक्ल, सीत मिश्र, प्रज्ञा तिवारी, पारुल जैन, नवनीत, अनूप, धीरेंद्र मिश्र, अरुण तिवारी (चौथी दुनिया), मनोज, प्रभांशु, सरिता भट्ट, सतीश, दीपक, रवि तिवारी ने भी उपस्थिति दर्ज कराई।

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