संजीव सिन्हा, पत्रकार –
हमारे मार्क्सवादी मित्र बौद्धिक रूप से इतने दिवालिए हो जाएंगे, सोचा न था। आगामी 20 मई को आइआइएमसी में मीडिया स्कैन की ओर से ‘राष्ट्रीय पत्रकारिता’ पर संगोष्ठी का आयोजन हो रहा है। संगोष्ठी का शुभारंभ यज्ञ से होगा। मार्क्सवादी मित्र इससे भड़क उठे हैं। वे यज्ञ का विरोध कर रहे हैं।
हर देश की अपनी विशिष्ट परंपरा होती है। भारत में 90 फीसदी कार्यक्रमों का शुभारंभ दीप-प्रज्वलन से होता है। अधिकांश शैक्षणिक संस्थान के कार्यक्रमों में शुभारंभ की यही परंपरा है। यहां तक कि जेएनयू में भी। मार्क्सवादी वर्चस्व वाले जेएनयू में वर्षों से सार्वजनिक जगहों पर नमाज पढ़ी जाती रही है। वहां वर्षों से होस्टल मेस में केवल मुस्लिम छात्रों के लिए रोजा के समय सुबह 4 बजे विशेष व्यंजन परोसा जाता रहा है। कई बार हिंदू छात्रों ने पूजा की योजना बनाई, ऐसा नहीं होने दिया जाता था। मार्क्सवादी विरोध करते थे। बाद में संघर्षों के बाद पूजा का आयोजन शुरू हुआ। आइआइएमसी के प्रवेश द्वार पर ही मां सरस्वती की मूर्ति है और अब कार्यक्रम का शुभारंभ यज्ञ से हो रहा है तो मार्क्सवादी मित्र क्यों भड़क रहे हैं? ऐसा सिर्फ इसलिए कि केंद्र में राष्ट्रीय विचार की सरकार है और मीडिया में यह मामला उछल जाए कि शैक्षिक संस्थानों का भगवाकरण हो रहा है!
समय बदल गया है कॉमरेड। आपके लिए मुस्लिम सांप्रदायिकता नाम की कोई चीज नहीं होती। खतरनाक है यह। माकपा अपने बैठकों में अजान पढ़ने के लिए छुट्टी दे, यह प्रगतिशीलता है! लेकिन उनका पश्चिम बंगाल का मंत्री यदि मंदिर चला जाता है तो यह सांप्रदायिकता है और उस पर कार्रवाई करो। करते रहो ऐसा, राष्ट्रीय विचार वालों के लिए ठीक ही है। देश की जनता सब समझती है, इसलिए मजदूर क्षेत्र में वामपंथ की हालत खस्ता हो गई, छात्र आंदोलन में हालत पतली हो गई और राजनीति में तो दुर्दशा जगजाहिर है ही क्योंकि देश की आजादी के बाद कम्युनिस्ट पार्टी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी, आज वह सबसे बुरी हालत में है। जनता के बीच जाने का साहस बचा नहीं है उनमें, अब वे मीडिया में ही की-बोर्ड खटखटाकर आखिरी लौ की तरह फड़फड़ा रहे हैं। मुझे तो सच में मजा आ रहा है।