आज देश एक ऐसे मुहाने पर खड़ा है, जहां आर्थिक क्रांति धीरे-धीरे करवट ले रही है।हिन्दुस्तान धीरे-धीरे नया आकार ग्रहण करता जा रहा है। पहली बार ऐसी तस्वीर सामने आई है जहां सरकार के फैसले से आम जनता तो बेहद खुश है, लेकिन नेता बिलबिला रहे हैं।
हालत ये है कि सरकार के 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने से देश की सवा सौ करोड़ जनता पर असर हुआ है।पूरा देश लाइन में खड़ा है, लेकिन किसी ने उफ तक नहीं की। कहीं कोई झगड़ा-फसाद नहीं।
विपक्षी नेताओं के अलावा कुछ मोदी विरोधी पत्रकार भी लोगों को भड़काने में जुटे हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं। सबके मन में यही है कि अगर भविष्य सुंदर बनाना है, तो इस समय थोड़े कष्ट सहने ही होंगे।
सारे सर्वे भी लोगों की इन्हीं भावनाओं को दर्शा रहे हैं, लेकिन जिस तरीके से मुट्ठी भर नेताओं ने सिर आसमान पर उठा रखा है, ऐसा लगता है कि सबसे ज्यादा काला धन इन्हीं के पास छिपा है या फिर इन्हें ही सबसे ज्यादा परेशानी हुई है।
एक बात और अगर 200 सांसद विरोध करते हैं तो क्या माना जाए कि पूरे देश ने विरोध कर दिया। जरा खुद आंकड़ों पर नजर डालिए।
इस देश में कुल मिलाकर 793 सांसद हैं। अगर 200 सांसद विरोध भी कर रहे हैं तो इसका मतलब है कि 593 यानी करीब तीन गुना ज्यादा सांसद समर्थन कर रहे हैं। वो भी तब जबकि राज्यसभा में अब भी सरकार के पास बहुमत नहीं है।
ऐसे में हम जैसे आम लोग, जो भारत बंद का विरोध करते हैं, वो क्या करें। मेरे ख्याल में जो भी भारत बंद का विरोध करते हैं… वो निम्नलिखित तरीके से अपना विरोध कर सकते हैं।
1. 28 नवंबर को मैं अपने आम दिन से अलग दो घंटे ज्यादा काम करूंगा।
2. 28 नवंबर को मैं मोदी जी को अपना समर्थन जताने के लिए फेसबुक, ट्वीटर और व्हाट्स अप पर… अपने प्रोफाइल में हर जगह तिरंगा लगाऊंगा।
3. इस दिन मैं अपने सारे काम ऑन लाइन करूंगा। एक रुपया भी कैश में खर्च नहीं करूंगा।
4. 28 नवंबर को मैं एक जरूरतमंद शख्स की मदद करने की कोशिश करूंगा।
5. इस दिन मैं बैंक में नहीं जाऊंगा, ताकि अनावश्यक रूप से दबाव न बने।
6. चूंकि मैं पत्रकार हूं, तो इस दिन विरोध करने वाली पार्टियों के खिलाफ एक लेख लिखकर अपना विरोध जताऊंगा।
7. 28 नवंबर को नरेंद्र मोदी के समर्थन में मैं दाहिने हाथ में एक सफेद फीता बाधूंगा।
ये समझ लीजिए कि समाज जब बदल रहा होता है तो आपकी निष्क्रियता आपको गुनहगार बनाती है। समाज के सापेक्ष खड़ा होना जरूरी होता है। ये देश का दुर्भाग्य है कि कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ इस देश को उद्वेलित करने वाले नेता भी इस समय भ्रष्टाचारियों के साथ खड़े हो गए हैं। इतिहास इन्हें कभी माफ नहीं करेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
-हरीश चन्द्र बर्णवाल-