सुयश सुप्रभ
हर दिन हिंदी को घायल करने वाले अख़बार और चैनल आज हिंदी को सम्मानित करने का पाखंड कर रहे हैं। हिंदी अफ़्रीका और एशिया की उन भाषाओं में शामिल है जिन्हें अपने ही अख़बारों और चैनलों से ख़तरा है।
मीडिया में अपनी भाषा या नौकरी में से किसी एक को बचाने की बात फ़ेसबुक पर ही किसी साथी ने कही थी। इस दबाव को समझे बिना या इस बात को लेकर अख़बारों या चैनलों पर हमलावर हुए बिना हिंदी की तरफ़दारी में कही गई हर बात को पाखंड ही माना जाएगा।
जिन लोगों को हिंदी पर कोई ख़तरा नज़र नहीं आता, वे इसे केवल मनोरंजन या साहित्य की भाषा के रूप में देखते हैं। इसे आम जनता के बीच ज्ञान और विमर्श की भाषा के रूप में देखिए तो इसकी ग़रीबी आपको भी दिखेगी। इस ग़रीबी के ज़िम्मेदार वही सेठ हैं जो हिंदी दिवस के दिन बुद्धिजीवियों और लेखकों को पुरस्कृत करते हैं और बाकी दिन हिंदी को चोट पहुँचाते रहते हैं।
(स्रोत-एफबी)