हाल ही में पाकिस्तान ने अपना राष्ट्रीय दिवस मनाया. दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग ने भी एक जलसे का आयोजन किया जिसमें जम्मू कश्मीर के उन तमाम अलगाववादी नेताओं को भी बुलाया गया जो कि भारत विरोधी बातें करने के लिए जाने जाते हैं. इस कार्यक्रम में भारत के विदेश राज्य मंत्री वी.के. सिंह ने भी भारत सरकार का प्रतिनिधित्व किया.
ये कार्यक्रम उस वक्त चर्चित हुआ जब जनरल साहब ने समारोह से निकलने के बाद कुछ ट्वीट्स किए और उन ट्वीट्स में उस कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर अफसोस जताया साथ ये भी कहा कि उन्हें भारत सरकार की तरफ से उस कार्यक्रम में जाने के लिए कहा गया था इसलिए उन्हें जाना पड़ा अन्यथा वो ऐसा कभी नहीं करते. उन्होंने अपने ट्वीट में कर्तव्य की दुहाई दे दी.
इससे पहले पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित के इसी कार्यक्रम में दिए उस बयान पर भी सवाल खड़ा हो गया जिसमें उन्होने कहा कि भारत कश्मीरी अलगाववादी नेताओं से उनकी बातचीत के खिलाफ नहीं है. आपको याद होगा कि पीछे समय में जब अब्दुल बासित अलगाववादी नेताओं से मिले थे तब भारत की तरफ से कितनी तीखी प्रतिक्रिया सामने आई थी. मोदी सरकार ने ये साफ किया था कि कश्मीर मुद्दे पर वो किसी भी तीसरे पक्ष की भूमिका को कत्तई स्वीकार नहीं करेंगे. अभी हाल ही में घाटी में हुए दो आतंकी हमलों ने कहीं न कहीं भारत पाकिस्तान के बीच तनाव को बढ़ाने का काम किया है. पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने जिस तरह से अलगाववादी नेताओं के साथ मुलाकात की थी और अब उन्हें अपने राष्ट्रीय दिवस पर दिल्ली बुलाकर महिमामंडित करने का जो प्रयास किया है उससे पाकिस्तान की मंशा साफ झलकती है कि वो कश्मीर के मुद्दे पर तीसरे पक्ष को बार बार घसीटता रहेगा. इस कार्यक्रम से पहले हुर्रियत नेताओं के पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित से मिलने पर भारत-पाकिस्तान के बीच मतभेद सामने आया था और भारत सरकार ने स्पष्ट किया था कि कश्मीर मसले पर किसी तीसरे पक्ष के लिए कोई जगह नहीं है. हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज ने अब्दुल गनी भट, मौलाना अब्बास अंसारी, बिलाल गनी लोन, अगा सैयद हसन, मुसादीक आदिल और मुख्तार अहमद वाजा के साथ बासित ने कार्यक्रम से एक दिन पहले वार्ता की थी.
अब सवाल है कि अगर भारत को पाकिस्तानी उच्चायुक्त के इन नेताओं से वार्ता पर इतना एतराज था तो फिर उसे इस बात की क्या आन पड़ी थी कि अपने एक राज्य मंत्री को पाकिस्तानी उच्चायोग के उस कार्यक्रम में जाने का निर्देश देना पड़ा. इससे साफ झलकता है कि सरकार तय नहीं कर पा रही है कि इस गंभीर विषय पर क्या स्पष्ट नीति रखी जाए. सरकार ये तो मानती है कि कश्मीर के अलगाववादी नेता जिनका स्पष्ट ऱुख भारत के खिलाफ है, उनसे अगर पाकिस्तान वार्ता करता है तो ये गलत है और भारत उसे कत्तई मान्यता नहीं देगा, फिर ऐसे किसी भी कार्यक्रम में जहां उन नेताओं को बुलाकर सम्मानित किया जा रहा हो वहां अपना नुमाइंदा भेजना कौन सा उचित कदम है?
भारत बार बार दोनों देशों के बीच शांति को बढाने के मकसद से काम करने की कोशिश कर रहा है लेकिन वहीं पाकिस्तान दो मुंही बात हमेशा से करता रहा है और अब भी वो ऐसा करने से बाज नहीं आ रहा है. आपको याद होगा कि भारत और पाकिस्तान दोनों के बीच विदेश सचिव स्तर की वार्ता इसी महीने की शुरुआत में प्रारंभ हुई है जब विदेश सचिव एस. जयशंकर ने इस्लामाबाद का दौरा किया था. कश्मीर एक बेहद गंभीर और संवेदनशील मसला है और पाकिस्तान की हमेशा से कोशिश इस मसले पर तीसरे पक्ष के जरिए पंचायत कराने की रही है. ऐसे में भारत को भी कड़ा रुख अपनाते हुए पाकिस्तान को ये स्पष्ट संदेश देना होगा कि अगर उनके उच्चायुक्त इसी तरह से कश्मीरी अलगाववादियों से मिलते रहेंगे और उनको महिमामंडित करते रहेंगे तो शांति वार्ता खटाई में पड़ सकती है क्यों कि इन अलगाववादियों का कोई अस्तित्व वास्तव में कश्मीर में नहीं बचा है और वो केवल अपनी सस्ती लोकप्रियता और वार्ता को पटरी से उतारने के उद्देश्य से काम कर रहे हैं और पाकिस्तान उनसे मेलजोल बढ़ाकर भारत का बार बार अपमान कर रहा है. ऐसे में भारत सरकार अगर इस विषय पर किसी भी स्तर पर नरमी का रुख अपनाती है तो ग़लत संदेश जाएगा और देश समझ नहीं सकेगा कि आखिर सरकार की इस मसले पर स्पष्ट नीति क्या है. सरकार को स्पष्ट रणनीति अपनाते हुए पाकिस्तान को ये कड़ा संदेश देना चाहिए कि अगर वो वार्ता के लिए गंभीर है तो अपने उच्चायोग को स्पष्ट निर्देश दे कि वो कश्मीर के अलगाववादियों से इस विषय पर चर्चा बंद करे.
( लेखक पूर्व बीबीसी पत्रकार और स्तंभकार हैं )