नदीम एस.अख्तर
कल ही इस बात का जिक्र कर रहा था कि हिन्दी और अंग्रेजी के न्यूज चैनलों में कितना फर्क होता है. महाखजाने की महाकवरेज ने इस अंतर को और साफ कर दिया. अंग्रेजी न्यूज चैनलों ने देश को बता दिया कि उनकी सोच, उनका विजन, न्यूज सिलेक्शन, दर्शकों के प्रति जवाबदेही और अपने पेशे के प्रति ईमानदारी की भावना में वे हिन्दी न्यूज चैनलों से कहीं आगे हैं. दिनभर जब हिन्दी वाले महाखजाने की महाखोज को महाभारत के युद्ध में तब्दील कर चुके थे, तब भी अंग्रेजी के लगभग सभी चैनल इस स्टोरी को low tune में चला रहे थे. पैकेज के रूप में ही स्टोरी दिखा रहे थे. ‘अनवरत, लगातार, दिनभर महाकवरेज जारी है’ जैसे जुमले उनमें से कोई भी नहीं अलाप रहा था. दिन ढला और शाम हुई तो मैं ये जानने को और ज्यादा उत्सुक था कि आज रात (दिनांक- 18 सितंबर) प्राइम टाइम पर अंग्रेजी के चैनल इस खबर के बारे में क्या दिखाएंगे? -महाखजाने की महाकवरेज- पर उनका रुख क्या होगा और दिनभर गुल खिलाते आ रहे हिन्दी के न्यूज चैनल इसे सनसनी बनाकर रात में किस रूप में परोसेंगे. पैकेज-स्टोरी तो दिनभर हिन्दी चैनलों पर देखता रहा, रात में ये देखना चाहता था कि इनके नामी-गिरामी चेहरे जब -महाखजाने की खोज- मामले पर बहस का आगाज करेंगे तो क्या बोलते हैं. इस अंधविश्वास की हवा निकालेंगे या फिर तू-तू, मैं-मैं वाली पुरानी स्टाइल से स्टूडियो में सिर्फ शोर और ड्रामा होगा. या यूं कहें कि बहस किसी नतीजे पर नहीं पहुंचेगी और अंधविश्वास-विज्ञान के बीच का फर्क चंद तथाकथित बाबाओं-साधुओं के शोरगुल में दबकर रह जाएगा. डिबेट खत्म, पैसा हजम. दर्शक भयानक कन्फ्यूजन में. और आप देखिएगा कि हिन्दी चैनलों के डिबेट में यही सब हुआ. कई तरह के बाबा, उनके भक्त और शिष्ट आए, live बातचीत की, हल्ला-हंगामा मचाया और चल दिए. प्राइम टाइम डिबेट का समापन.
हिन्दी चैनलों पर क्या हुआ, इस पर बाद में आऊंगा. पहले बात अंग्रेजी चैनल की. मैंने Times Now पर पॉपुलर डिबेट प्रोग्राम Newshour ट्यून किया. अर्णव कई मुद्दों को लेकर डिबेट में बैठे थे लेकिन अपने प्रोग्राम की शुरुआत उन्होंने -महाखजाने की खोज- वाले विषय से नहीं की. कोल ब्लॉक आवंटन जैसे गंभीर विषयों से डिबेट का आगाज हुआ. मतलब साफ था. अर्णव के एजेंडे में महाखुदाई का तमाशा नहीं था. वे बहुत बाद में महाखजाने वाले विषय को डिबेट में लेकर आए और क्या बताऊं, जब आए तो सबकी हवा निकाल दी. क्या नजारा था. यह Newshour का क्लासिक एपिसोड था. All time hit. साधु, सपना और खुदाई विषय पर जब अर्णव ने डिबेट शुरू की तो इस दौरान वो खूब हंसे और सबको हंसाया. मुझे भी बहुत बार हंसी आई. चार चांद लगा दिया डेबेट में भाग ले रहे सुहैल सेठ ने. वो तो साधु के सपने और इस पर ASI-GSI के प्रयासों के तहत हो रही खुदाई पर इतना हंस रहे थे कि हंसते-हंसते लोट-पोट हो गए. एक बार तो अर्णव को उनको यह कहकर चुप कराना पड़ा कि सुहैल, मेरी बात सुनो. मैं गंभीर विषय पर बात कर रहा हूं. खुदाई पर. लेकिन इसके बाद भी कई बार अर्णव और खुद सुहैल कई बार डिबेट के दौरान हंसे. एक दफा तो साधु के सपने और खुदाई की मूर्खता पर अर्णव इतना हंस रहे थे कि उनको आन एयर चेहरा नीचे करके मुंह छुपाना पड़ा ताकि हंसते हुए ना दिखें. बतौर एक दर्शक मेरी भी हंसी नहीं रुक रही थी.
दरअसल हंसने-हंसाने की इतनी सारी बात इसलिए कि अर्णव ने Newshour में इस साधु के सपने और उस पर होने वाली खुदाई की धज्जियां उड़ा कर रख दीं. इस घटना पर बतौर एक पत्रकार उनका हावभाव, रिएक्शन और बतौर पैनलिस्ट सुहैल सेठ की जो प्रतिक्रिया थी, वह पीपली लाइव-2 में भाग लेने के लिए जुटे पत्रकारों, पब्लिक और पूरे सिस्टम का माखौल उड़ा रही थी. साथ में थे मशहूर कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग, जिन्होंने भी जमकर इस पूरे घटनाक्रम का मजाक बनाया. पैनल में दो और लोग थे. एक सनातन संस्था के कोई प्रतिनिधि, जो अकेले सपना और खुदाई को जायज बता रहे थे लेकिन तर्कों के आगे उनकी बोलती बंद हो गई. आंय-आंय करने लगे. चुप हो गए. बेइज्जत हो गए.
अर्णव के तर्कपूर्ण सवालों का कोई जवाब नहीं था उनके पास. यानी महासपना और महाखुदाई की थ्योरी ध्वस्त.
लेकिन बहस में जिस शख्स से सवाल पूछकर अर्णव सबसे ज्यादा हंसे, वह थे यूपी के किसी विभाग के कर्ताधर्ता जिन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है. काफी सजधज करके आए थे महाशय लेकिन अर्णव ने उनकी और यूपी सरकार की खूब बखिया उधेड़ी. पूछ डाला कि ये क्या मजाक है, एक साधु सपना देखता है और आपके मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एक मंत्री सुनील यादव को साधु शोभन सरकार से भेंट करने भेज देते हैं कि खजाना कैसे निकाला जाए और राज्या का हिस्सा क्या होगा उसमें. क्या मजाक बना रखा है आप लोगों ने. यूपी सरकार के उस नुमाइंदे का चेहरा देखने लायक था. मुंह सूख गया. जवाब देते नहीं बन रहा था. जिस भाव-भंगिमा के साथ अर्णव ने सपना और उस पर यूपी सरकार की पहल पर सवाल पूछा था, सुहैल सैठ खूब हंस रहे थे. फिर सुहैल हंसते हुए बोले- क्या तमाशा है. आप बता रहे हैं कि ये सुनील यादव डेरी विभाग का मंत्री है और उन्हें भेजा गया सोने के खजाने का पता लगाने. क्या तालमेल है उनके विभाग डेयरी का और सोने का. फिर सब लोग खूब हंसे.
जब थू-थू होने लगी तो अखिलेश सरकार का कारिंदा कहने लगा कि नहीं, हमारी सरकार ने उनको यानी सुनील यादव को साधु से मिलने वहां नहीं भेजा था. वह अपने मन से गए होंगे. अर्णव ने फिर सवाल दागा, अगर अखिलेश की सरकार का सोने की खुदाई से कोई लेना-देना नहीं तो फिर आपके नरेश अग्रवाल खजाने से हिस्सा क्यों मांग रहे हैं. टीवी पर बाइट देकर. सब लोग फिर हंसने लगे. और सपना-खुदाई को सच मानने का दावा करने वाला सनातन संस्था का स्टूडियो में मौजूद प्राणी तो यही खैर मना रहा था कि अर्णव उनके पास जवाब मांगने ना आ जाएं. यूपी सरकार के प्रतिनिधि की फजीहत देखकर बेचारा चुपचाप ही बैठा रहा.
अर्णव ने केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत की कारस्तानी पर भी सवाल उठाया और साधु का सपना तथा उस पर होने वाली खुदाई- इसमें सरकार की भागीदारी को कटघरे में खड़ा किया. पूरी डिबेट का टोन महाखजाने की खुदाई की धज्जियां उड़ाने वाला था. जो इसके समर्थन में बोलता, वह बुरी तरह बेइज्जत होता. अर्णव ने इस डिबेट में तार्किक बाते कहीं और ये स्थापित किया कि आज के भारत में ऐसी बेहूदी बातों और अतार्किक सोच के लिए कोई जगह नहीं. छा गए अर्णव. और जिस तरह अर्णव, सुहैल सेठ व सुधीर तैलंग इस महाड्रामे के किए जाने पर हंस रहे थे, उनकी बॉडी लैंग्वेज टीवी के स्क्रीन के जरिए दर्शकों तक इस घटना के हास्यास्पद होने का अद्भुत संदेश भेज रहा था. कुछ कहने की जरूरत ही नहीं थी वहां.
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि महाखजाने की महाखुदाई और साधु के सपने पर अर्णव ने जो बहस की, उसके पैनल में किसी भी धर्माचार्य, धर्म सचेतक, साध्वी, संत और तथाकथित साधु शोभन सरकार के शिष्य ओम या उसके किसी भी चेले को शामिल नहीं किया. सुहैल सेठ, सुधीर तैलंग जैसे लोग शामिल थे जो ये कुतर्क नहीं करते कि किले के राजा की आत्मा ने खुद आकर शोभन सरकार से खजाना निकालने का आग्रह किया वगैरह वगैरह. यानी पूरी बहस तार्किक, साइंस के पैमान पर कसी और नियंत्रित थी. हिंदी न्यूज चैनलों की तरह नहीं, जहां 90 फीसदी पैनल साधु-सन्यासियों से अटा पड़ा होता है और जो आन एयर भूत-प्रेत-तंत्र-मंत्र-जंत्र विद्या के सच होने का दावा करते रहते हैं और एंकर असहाय सा ये सब देखता है और पब्लिक में जाने-अनजाने अघोड़-तंत्र-मंत्र विद्या के सच होने मैसेज चला जाता है.
अर्णव ने जिस तरह साधु के सपने और खुदाई का चीरहरण किया, वह देखकर दिल गार्डन-गार्डन हो गया. मुझे तो लगता है कि अर्णव की इस बहस को सारे पत्रकारों को एक बार जरूर देखना चाहिए. साथ ही इसे एक केस स्टडी के रूप में भी लेना चाहिए और पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे बच्चों को इस बहस को दिखाकर ये बताना चाहिए कि जब देशभर में सपना और खजाने की खोज का उन्माद कुछ टीवी चैनल फैला रहे थे, तब कैसे एक संजीदा न्यूज चैनल ने लीक से हटकर इस सारे मुद्दे की हवा निकाल दी. पब्लिक को एजुकेट किया और अंधविश्वास फैलाने वालों को जलील.
हिन्दी चैनलों पर भी नामी-गिरामी एंकरों की मौजूदगी में साधु के सपने पर बहस हुई. क्या और कैसी थी ये बहस, इस पर भी लिखूंगा. अगली कड़ी में.
(लेखक आईआईएमसी से जुडे हैं. स्रोत – एफबी)