सैयद एस तौहीद @ passion4pearl@gmail.com
सुनहरे अवसर को न गंवाया होता तो हवाईजादा एक अच्छी फिल्म बनी होती
हवाई जहाज आविष्कार की मेक इन इण्डिया विचार को जीने वाली ‘हवाईजादा’ एक महत्वाकांक्षी फ़िल्म है. विभु पुरी ने शिवकर तलपडे के जीवन एवं अविष्कार संघर्ष को आधार कर यह बायोपिक बनाई. एक तथ्य को मानें तो हवाईजहाज के आविष्कारक राईट ब्रदर्स से आठ बरस पहले शिवकर तलपडे ने इसकी सफल पहल की थी. इस भारतीय युवक ने अपने द्वारा बनाए विमान का नाम मारुतसखा रखा. बताया जाता है कि विमान काफी उंचाई तक उड़ कर जमीन पर आ गिरा. हवाईजहाज बनाने में शिवकर को जो संघर्ष करना पड़ा उसको लेकर यह फिक्शनल बायोपिक बनाई गई. लेकिन वो बहुत ज्यादा विश्वसनीय नहीं बन सकी . क्योंकि शिवकर तलपडे पर रिसर्च उस किस्म का नजर नहीं आ रहा.
शिवकर के बारे में दर्शकों की जिज्ञासा के साथ विभु की टीम पूरा न्याय नहीं कर सकी. यह नहीं बताया गया कि आगे जाकर शिवकर की जिंदगी ने क्या मोड़ लिया ? आविष्कार का हक़दार उसे ना मानकर राईट बंधुओं को क्यों माना गया ? इन बातों का जवाब ठोस रूप में नहीं मिलेगा.फिक्शन का पहलू रिसर्च से प्रेरित होता तो शायद कहानी विश्वसनीय बन जाती ..शिवकर का हवाईजादा दिलों को जीत लेता. निस्संदेह आयुष्मान खुराना ने चरित्र के लिए जीतोड़ मेहनत की जोकि नजर भी आ रहा लेकिन क्या वो गलत दिशा में खर्च नहीं हो गई ? मिथुन एवं पल्लवी शारदा के किरदारों को थोडी अधिक गंभीरता से पेश करना चाहिए था
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शिवकर का मन पढ़ाई लिखाई में नहीं लगा क्योंकि वो जीनियस था. उसकी जिनियस बातों को किसी ने नहीं सीरियसली लिया सिवाय वेटरन साइंटिस्ट शास्त्री ने. शास्त्री में शिवकर को आदर्श गुरु मिल गया था क्योंकि शास्त्री जी भी बरसों से हवाईजहाज के लिए संघर्ष कर रहे थे. उन्हें शिवकर में मुस्तकबिल नजर आया .शिवकर को भी शास्त्री जी में एक बेहतरीन मार्गदर्शक मिला गया. दोनों उस मिशन पर मिलकर काम करने लगे. आविष्कार एक दिन का प्रयास तो होता नहीं.निरंतर प्रयोग करते रहना एक जरुरी पहलू होता है. उपयुक्त संशाधन पास होना चाहिए ताकि प्रक्रिया में बाधा पेश नहीं आए.लेकिन अक्सर लोगो का यह पक्ष कमजोर रहा इसलिए आविष्कार के भीतर नए आविष्कार करना पड़ता था. शास्त्री एवं शिवकर के सपनों दरम्यान भी यह बड़ी रुकावट थी. दोनों के पास पर्याप्त सुविधा नहीं थी खाली थी.फिरंगियों के शासन को एक बाधा के रूप में प्रोजेक्ट किया गया. संघर्ष के इस गाथा के समानांतर इश्क के जज्बात भी रचे गए. सितारा एवं शिवकर की नजदीकियों ने फ़िल्म को प्रेम कहानी से टेग कर दिया.
हवाईजादा को काल्पनिक करार देने में यह बातें पर्याप्त हैं. समुचित शोध का नहीं होना प्रस्तुती को फेरीटेल तक सीमित कर रहा. विभु पुरी ने शिवकर की जिंदगी को दूसरे नजरिए से देखने की पहल भी लेनी चाहिए थी ? पेश करने का नजरिया इतिहास को अमर बना नहीं देता ? जबरदस्त सेट्स ही किसी कहानी को पीरियड बना देंगे ? बड़े बजट की पीरियड फिल्मों को इस पर विचार करना चाहिए. विभु की नीयत में बेशक कोई कमी नहीं. फिर भी कहना चाहिए कि शिवकर तलपडे को जानने की उत्सुकता को ठीक से पहचाना गया होता तो शायद हवाईजादा की कुछ अलग कहानी होती! आप वास्तविक उपलब्धि एवं सुनी कथा की उलझनों में उलझ गए. विभु क्या आप शिवकर की स्टोरी को ठीक से बता पाएं ? हवाईजादा बहुत अच्छी फ़िल्म बनी होती काश आपने एक सुनहरे अवसर को यूं ना खोया होता !
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