महिला एंकरों से जब बार-बार सवाल किया गया कि आप और क्या-क्या कर सकती हैं?

लाइव इंडिया के तत्कालीन एडीटर इन चीफ और मौजूदा जी न्यूज के एडीटर इन चीफ सुधीर चौधरी की केबिन से साल 2007 में एक मीडियाकर्मी निकलती है..बाहर खबर ये थी कि सुधीर चौधरी उन्हें नौकरी से निकालने की धमकी देता रहा कि इधर मीडियाकर्मी पहले ही नौकरी को लात मारकर जाने का मन बना चुकी थी. सुधीर चौधरी ने उनके साथ क्या किया था, ठीक-ठीक किसी को मालूम नहीं लेकिन उस खबर में ये भी शामिल था कि मीडियाकर्मी ने उसे थप्पड़ तक जड़ दिए थे. अब जबकि जी न्यूज में कोयला आबंटन मामले और विज्ञापन को लेकर जो चैनल की साख मिट्टी में मिलती नजर आयी और रिब्रांडिंग का दौर शुरु हुआ, नई भर्तियां शुरु हुई तो महिला एंकरों से इनके अनुचरों ने लगातार सवाल किए- आप और क्या कर सकती हैं, आप और क्या कर सकती हैं..वे बताती रहीं कि चैनल के लिए क्या-क्या कर सकती हैं पर उनका सवाल जारी रहा…उनमे से एक ने बेहद ही तकलीफ में हमसे कहा कि मन तो किया कि कहूं, सो नहीं सकती हरामी..लेकिन ऐसा कहने के बजाय काफी-कुछ सुनाकर बाहर आ गयी.

तब बतौर एडीटर,( नेशनल, स्टार न्यूज) दीपक चौरसिया सायमा सहर के मामले को रफा-दफा करवाने चैनल के सीइओ वेंकट रमाणी के साथ राष्ट्रीय महिला आयोग के दफ्तर पहुंचे. समय-समय पर ये सायमा सहर से केस वापस लेने के लिए दवाब भी बनाते रहे.

रात के करीब साढ़े तीन बजे हेडलाइंस टुडे की सौम्या विश्वनाथन की संदेहास्पद स्थिति में मौत हो जाती है..सबसे तेज चैनल ने घंटों तक इस पर चुप्पी साधी रखी जबकि व्आइस ऑफ इंडिया पर चैनल के एडिटर राहुल कंवर श्रद्धांजलि देते नजर आए…

मीडिया की आदत में शुमार है कि जब भी कोई एक घटना होती है, वो उसकी सीरिज शुरु कर देता है, प्रिंस के गड्ढे में गिरने पर दर्जनों प्रिंस की खोज शुरु हो जाती है, गूगल ब्ऑय कौटिल्य के साथ दर्जनों जीनियस की लाइव टेस्ट शुरु हो जाती है..मीडिया की ये सारी चीजें अगर बुरी नहीं है तो इसका अनुपालन थोड़े वक्त के लिए हम भी करें तो आपको अधिकांश चैनलों में ऐसी घटनाओं की फेहरिस्त मिल जाएगी जिसने यौन उत्पीड़न मामले को, मौत को रफा-दफा करने की कोशिश की है. ये सब बताने से तरुण तेजपाल ने जो कुछ भी किया, उस पर पर्दा नहीं पड़ जाता और पड़े भी क्यों लेकिन ये सब करते हुए जो मीडिया संस्थान चरित्रवान के तमगे लिए घूम रहे हैं, उन पर तो बात होनी ही चाहिए. हमने वो दौर भी देखे और एक हद तक झेले हैं जब इन संस्थानों पर आप बात करें तो वही सब करना शुरु कर दिया जाता रहा जो काम मोहल्ले के छुटभैय्ये नेता करते हैं.

(स्रोत-एफबी)

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