खैर,सर,सर,सर,सर…एक फोटो प्लीज सर..इस वीडियो में मोदीवचन के अलावा जो सबसे साफ स्वर सुनाई दिया वो पत्रकारों की ओर से कहे गए यही शब्द हैं. पूरी वीडियो में आपको किसी भी पत्रकार की कोई आवाज सुनाई नहीं देती. मुझे नहीं पता कि जिस किसी ने भी ये वीडियो अपलोड की है, किस मंशा से मोदीवचन और इस सर-सर के अलावा बाकी पूरी ऑडियो म्यूट क्यों कर दी है ?
लेकिन इससे एक दर्शक जो समझ पा रहा है, वो साफ है कि टीवी स्क्रीन और अखबार के पन्ने पर ये संपादक, मीडियाकर्मी लोगों के बीच दहाड़ने का काम करते हैं..ऐसी रौब झाड़ते हैं कि जैसे उनके कुछ बोल-लिख देनेभर से कयामत आ जाएगी, वो कहां और कैसे अपनी इस दूकान की बिना बोली की निलामी कर आते हैं और तब मंडी में जातिवाचक संज्ञा बनकर लबडधो-धो करने लग जाते हैं..किसी के मुंह से बकार तक नहीं निकलता कि आपने हमें जो दीवाली मिलन पर बुलाया, अनौपचारिक बातचीत की घोषणा की थी, उसमे मंचासीन होकर भाषण पिलाने का प्रावधान कहां से आ गया ? हमारी कलम अगर झाड़ू हो गई तो आपको इस मेटाफर से कभी डर नहीं है कि झाड़ने-बुहारने का काम सड़क के कचरे के अलावा कहीं और भी होगा ? आप ये सब देखकर हताश हो सकते हैं.. लेकिन इन सबके बीच ये वीडियो उन तमाम मीडिया छात्रों के लिए एक जरूरी टेक्सट है, उन लाखों श्रद्धालु दर्शकों के लिए विजुअल दस्तावेज है कि हम जिन्हें तोप समझते हैं वो अपनी क्रेडिबिलिटी, गरिमा और आत्मसम्मान की तो छोड़ ही दीजिए, सार्वजनिक स्थलों पर व्यवहार को लेकर कितने फूहड़ हैं..दुनिया को क्लासरूम समझनेवाले ये मीडियाकर्मी अपनी पूरी प्रकृति में कितने लिजलिजे और बेगैरत हैं और तब समझ सकेंगे कि हमें इस इन्डस्ट्री में बने रहने के लिए मीडिया क्लासरूम को यज्ञशाला बना देनेवाले शिक्षकों से नहीं, इन हस्तियों से सीखने-समझने और उनके हिसाब से अपने को ढालने की जरूरत है..अभी तक मीडिया संस्थानों से जो भारी-भरकम बातें सुन,सीखकर ये छात्र न्यूजरूम में जाकर गड़बड़ा जाया करते हैं, वो बेहतर समझ सकेंगे कि हमें इस इन्डस्ट्री में कैसे सर्वाइव करना है..ये वीडियो उनके लिए सेल्फी पत्रकारिता की डमी है..नीरा राडिया टेप और वीडियो के बाद सबसे विश्वसनीय मीडिया पाठ सामग्री. सरोकार और कारोबार का रसायन, धारदार और चाटुकार के बीच की केमेस्ट्री घुलकर कैसे मीडिया कंटेंट बनते हैं, इसे समझने का बेजोड़ नुस्खा.