प्रजातंत्र, सोशल मीडिया और मतदान

सरमन नगेले

mp vote persent“पांच राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग, राजनैतिक दलों ने सोशल मीडिया का उपयोग किया। इससे मतदान का प्रतिशत ऐतिहासिक रूप से बढ़ा। सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं ने सजगता के साथ मतदान में भागीदारी की।”

सोशल मीडिया आज एक शक्तिशाली विकल्प के रूप में ऐसे लोग की आवाज बन गया है जिनकी आवाज या तो नहीं थी या अनसुनी कर दी जाती थी। आज शक्तिशाली विचारों को व्यापक रूप से फैलाने के लिये सोशल मीडिया एक शक्तिशाली मंच के रूप में उपयोग हो रहा है। विचारों के फैलाव के साथ ही सोशल मीडिया बड़े सामाजिक परिवर्तनों और सोच में बदलाव का कारण बन रहा है। इस दृष्टि से सोशल मीडिया प्रजातंत्र का एक सर्वाधिक सक्रिय मित्र और प्रहरी बन गया है। सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं ने अपना अलग समुदाय और विशिष्ट नागरिकता की स्थिति बना दी है। सोशल मीडिया से जुड़े नागरिकों ने प्रजातांत्रिक प्रक्रिया में दबाव समूह के रूप में कार्य करने की संस्कृति भी विकसित कर ली है। वे न सिर्फ मत निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं बल्कि प्रजातंत्र को भी मजबूत करने का काम कर रहे हैं।

भारत में तेजी से इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ रही है। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर सक्रियता भी बढ़ रही है। जल्दी ही भारत अमेरिका से आगे निकल जायेगा। अमेरिका में अभी 260 मिलियन उपयोगकर्ता है और भारत में 198.30 मिलियन। गांव में भी इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ने लगी है। यहां करीब 72 मिलियन लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। विश्व बैंक के विश्व विकास संकेतक के अनुसार अमेरिका में इंटरनेट की घुसपैठ 81 प्रतिशत है। चीन में यह 43.3 प्रतिशत है और भारत में 13 प्रतिशत है जो तेजी से बढ़ रही है। सोशल मीडिया ने प्रजातंत्र की सेहत के लिये अपनी उपयोगिता सिद्ध कर दी है। हाल ही में सम्पन्न विधानसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत ऐतिहासिक रूप से बढ़ा है। इससे स्पष्ट है कि सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं ने सजगता के साथ मतदान में भागीदारी की।

आज सोशल मीडिया की कई साईट्स हैं। जिसके माध्यम से लाखों लोग आपस में जुड़े हैं। संवादहीनता की स्थिति समाप्त हो चुकी है। मुख्य रूप से फेसबुक, लिंक्डइंन, मायस्पेस, ट्वीटर, यू ट्यूब, फिलिकर, वर्डप्रेस, ब्लॉगर, टाईपेड, लाइव जर्नल, विकिपिडिया से लाखों लोग जुड़े हैं। फेसबुक पर 1.11 बिलियन लोग उपलब्ध हैं। ट्वीटर पर 200 मिलियन लोग सक्रिय हैं। गुगल प्लस पर करीब 350 मिलियन लोगों का समूह आपस में जुड़ा है। राजनैतिक वक्तव्यों और त्वरित टिप्पणियों की ट्वीटर पर धूम मची है। सरकारी और गैर-सरकारी मीडिया ने ट्वीटर पर विधानसभा चुनाव के सबसे तेज चुनाव नतीजे के ट्रेंड को बताया।
हाल ही में सम्पन्न पांच राज्यों के मतदान का प्रतिशत बढ़ना इस बात को सिद्ध करता है कि चुनाव आयोग ने भी स्वीप कार्यक्रम चलाया और मत के महत्व को समझाया इससे मतदाताओ में जागरूकता बढ़ी और बड़ी संख्या में मतदान हुये। सोशल मीडिया की स्वीप कार्यक्रम में भागीदारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। राज्य और जिला निर्वाचन अधिकारियों ने तो वाकायदा स्वीप के नाम से सोशल मीडिया पर अकाउंट खोले और मतदाताओं की चुनाव प्रक्रिया में भागीदारी व मतदाता जागरूकता कार्यक्रम चलाया।

मध्यप्रदेश का उदाहरण देखें तो पाते हैं कि अब तक सर्वाधिक मतदान प्रतिशत 72.52 रहा। वर्ष 1951 से 70 के दशक तक मतदान का प्रतिशत 55 से ऊपर नहीं गया। बहुत खींचतान कर विगत चार चुनावों में 1993, 1998, 2003 और 2008 में मतदान 60 प्रतिशत से बढ़ा और 2008 में 69 तक पहुंचा लेकिन 2013 में 72.52 तक पहुंचा। जिन चुनावों में मतदान का प्रतिशत कम रहा उन वर्षों में सोशल मीडिया के आगमन की शुरूआत हो रही थी। अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में सोशल मीडिया की नई भूमिका सामने आई। जब भारत में सोशल मीडिया के उपयोग की समझ बढ़ रही है तब चार राज्यों के चुनाव हो गये हैं। इनमें मतदान का प्रतिशत बढ़ा और सोशल मीडिया की सक्रिय भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार युवा मतदाताओं की संख्या भी बढ़ी जो सोशल मीडिया से गहरे जुड़े हैं।

चुनाव आयोग का स्वीप कार्यक्रम
अब तक यह कहा जा रहा था कि मतदाताओं की बड़ी संख्या चुनाव प्रक्रिया में भाग नहीं लेती। प्रजातंत्र की प्रक्रियाओं में भाग नहीं लेना और मताधिकार का उपयोग नहीं करना प्रजातंत्र के स्वास्थ्य के लिये ठीक नहीं है। सरकार बनाने और चुनने में हर मतदाता की भागीदारी जरूरी है। इसी विचार को ध्यान में रखते हुये चुनाव आयोग ने व्यवस्थित तरीके से मतदाताओं को शिक्षित और प्रेरित करने के लिये मतदाता जागरूकता अभियान चलाया। इस अभियान में स्वैच्छिक संगठनों, बुद्धिजीवियों, सोशल मीडिया से जुड़े संस्थाओं ने भी सक्रिय भागीदारी की। इसका व्यापक प्रभाव हुआ। यह कार्यक्रम जारी रहना चाहिये। राज्य में तीन संस्थाओं की चुनाव महत्वपूर्ण होते हैं – पंचायत, स्थानीय निकाय और सहकारी संस्थाएं। मतदान में भागीदारी करने का संस्कार डालने के लिये इस अभियान की निरंतरता जरूरी है।

सूचना का अधिकार
सोशल मीडिया के उपयोग से सूचनाओं को नया मंत्र मिल गया है जिससे सूचना के अधिकार कानून पर अमल करना आसान हो गया है। मतदान प्रक्रिया से संबंधित सूचनाएं सोशल मीडिया पर जितनी आसानी से उपलब्ध हैं उसका प्रभाव मतदाताओं पर पडा। मतदान के संवैधानिक महत्व को स्वीकार किया गया । जानकारी की उपलब्धता और उसका उपायोग दोनों जरूरी हैं। आज सोशल मीडिया सबसे प्रभावी माध्यम है सूचना के अधिकार को क्रियान्वित करने और उसकी पहुंच बढाने का।


लोक सभा चुनाव से पहले स्वीप कार्यक्रम को तेज करने की जरूरत

सरमन नगेले
सरमन नगेले

अब भविष्य में लोक सभा चुनाव है। मतदाताओं तक पहुंचने का प्रयास फिर से तेज करना होगा। भारत की सरकार बनाने में हर मतदाता को वोट डालने के लिये प्रेरित करना होगा। विधान सभा चुनाओं में सोशल मीडिया की उपयोगिता को परखा जा चुका है। चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया की भूमिका और सकारात्मक भागीदारी की सराहना की है। लोक सभा चुनाओं से पहले स्वीप कार्यक्रम को भी तेज करने की जरूरत होगी। प्रजातंत्र में मतदान प्रक्रिया एक यज्ञ की तरह है। हर पात्र नागरिक की इसमें भागीदारी अनिवार्य है।

(लेखक एमपी पोस्ट डॉट कॉम के संपादक हैं।)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.