बताया ऐसे जा रहा है जैसे पहली बार दिल्ली पुलिस बेहाया हरकतों के लिए विवादों में है। दिल्ली पुलिस लोगों के लिए है-यह बात वे भी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं जिनका आज तक उससे कोई सबाका नहीं पड़ा है। दिल्ली पुलिस सरकार की सुरक्षा कवच है और इसे बंेध पाना आसान कतई नहीं। दिल्ली पुलिस के पास आपकी सुरक्षा में सेंध लगाने के लिए कई कानूनी पेंच है और अगर एक बार वह आपको चुभो दिया गया तो आपको सांस लेने में तकलीफ होनी शुरू हो जाएगी।
कांस्टेबल स्तर के पुलिसकर्मी अधिकारियों के प्रति जिम्मेदार होते हैं और इसीलिए उनके आदेशों पर अमल करना उनकी जवाबदेही बनती है। इसलिए आगे बढ़ने से पहले गैंगरेप के खिलाफ प्रदर्शनकारियों पर लाठी चलाने के लिए मजबूर किए गए दिल्ली पुलिसकर्मी सुभाष तोमर की मौत पर शोकसंवेद श्रद्धांजली। उनकी कर्तव्यपरायणता को सलाम। बावजूद इसके कि उन्होंने निहत्थे और निर्दोष लोगों को जख्मी करने की गै़र जिम्मेदाराना जवाबदेही को निभाने से मना नहीं कर सके।
मगर हमारा मुद्दा यहां पर एक सिपाही की शहादत नहीं है। मुद्दा दिल्ली पुलिस का वह चरित्र है जो हम बार बार देखते हैं, समझते हैं फिर भी कभी 100 नंबर तो कभी 181 नंबर को आपकी सुरक्षा की गारंटी बताया जाता है और मजे़ की बात यह भी है कि इसके बाद भी हम उस पर भरोसा भी करते हैं। मगर वही दिल्ली पुलिस हमारे भरोसे को किस तरह से तार-तार करती है। उसका एक उदाहरण सुभाष तोमर की असामयिक मौत पर उसके पर्दा डालने के तरीकों से साफ हो जाता है। जो फुटेज हमारे सामने है और जो गवाह चीख-चीख कर इस बात की जानकारी दे रहा है कि तोमर अपनी मौत मरे हैं, को दिल्ली पुलिस प्रदर्शनकारियों को उनकी मौत का जिम्मेदार बता रही है। हद तो तब हो गई जब बिना किसी सबूत और बिना किसी गवाह के दिल्ली पुलिस नवनिर्मित राजनीतिक पार्टी आप के आठ कार्यकर्ताओं को गिरतार भी कर ली।
आप इस बात को जरूर मानेंगे कि दिल्ली या फिर देश के किसी भी हिस्से में अपराध का ग्राफ अगर बढ़ रहा है तो उसकी जद में प्रशासन है। आज देश का कोई भी नागरिक किसी भी अपराध का प्रत्यक्षदर्शी नहीं होता तो उसकी वज़ह पुलिस है। अगर कोई अपराध का गवाह नहीं बनना चाहता तो उसकी वज़ह भी पुलिस है। पुलिस यानी वर्दी वाला गुंडा। एक ऐसा गिरोह जिसके पास ज़ोर जबर्दस्ती करने का सरकारी प्रमाणपत्र है। लोग अपराधियों से ज्यादा पुलिस वाले से ख़ौफज़दा हैं तो इसलिए क्योंकि प्रशासन गुंडों और मवालियों का सुरक्षाकवच बना हुआ है। अपराधियों से उसके पास पूछने के लिए कोई सवाल नहीं होता मगर, आपसे पूछे जाने वाले सवालों की पूरी सूची पुलिस के पास मौजूद है। पुलिस के पास किसी गुनाह को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं होता मगर आपको परेशान करने के लिए उसके पास कई तरह के कानूनी अधिकार हैं। और जब अधिकारों का बेज़ा इस्तेमाल करने की छूट भी उसे मिली हुई हो तो फिर आप कैसे उस पर भरोसा कर सकते हैं।
आपने सुना नहीं। गृह सचिव ने कहा कि किस तरह से दिल्ली पुलिस अपनी जान पर खेल कर बलत्कारियों को रिकाॅर्ड समय में सलाखों के पीछे पहंुचा दिया। अपने गृह मंत्री ने भी तो सही ही कहा कि पुतिन देश के दौरे पर हैं और लोगों की भीड़ देख कर वे क्या समझेंगे। देश की छवि को बेहतर बना कर पेश करना हम सबकी जिम्मेदारी है और इसके लिए अगर एकाध सिपाही की मौत हो जाती है या फिर कोई चोटिल हो जाता है तो इसमें गलत क्या है? प्रशासन ने जो किया, सही किया। सरकार पुलिस की पीठ थपथपा रही है और हम हैं कि इसमें भी नफे नुकसान का आंकलन करने में जुटे हैं। दिल्ली पुलिस आपके लिए, आपके साथ, सदैव-लेकिन, खयाल रहे यह महज़ एक नारा है, ध्येय कतई नहीं।
(लेखक पत्रकार हैं)