मनीष कुमार,पत्रकार
दिल्ली में आप का ड्रामा शुरु
दिल्ली में आज जनता द्वारा चुनी सरकार नहीं है. इसके लिए जिम्मेदार कौन है? पहली गलती दिल्ली की जनता ने की. चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं दिया था. सही सही कहा जाए कि केजरीवाल दिल्ली के लोगों झांसा देने में कामयाब रहा. जनता केजरीवाल के फरेब में आकर कन्फ्यूज हो गई. इसलिए किसी को बहुमत नहीं मिला. नतीजे के बाद बीजेपी ने कहा कि उनके पास बहुमत नहीं है वो विपक्ष में बैठेंगें. इसके बाद आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ अनैतिक गठबंधन किया. केजरीवाल ने रामलीला मैदान में मुख्यमंत्री की शपथ भी ली. शपथ के दौरान गाना भी सुनाया. सभी ने बंगला और गाड़ी भी लिया. रात में गुंडों की तरह आप के मंत्रियों और विधायकों ने छापा भी मारा. गणतंत्र दिवस परेड में विघ्न डालने की धमकी भी दी. और अराजकता को अपनी विचारधारा बताने में भी पीछे नहीं हटे.
विचारविहीन, योजनाविहीन ही सही, अराजक ही सही लेकिन दिल्ली में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार तो थी. फिर ऐसा क्या हुआ कि दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ गया. हुआ ये कि केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के कुछ शीर्ष नेताओं के मन में प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री बनने का लोभ पैदा हो गया. उनको यह भ्रम हो गया कि जिस तरह वो दिल्ली में खिचड़ी पका कर मुख्यमंत्री बन गए उसी तरह केंद्र में रायता फैला कर सरकार बना लेंगे. इसी लोभ की वजह से वो दिल्ली छोड़ कर लोकसभा चुनाव में कूद पड़े. एक चुनी हुई सरकार को खुद ही गिरा दिया लेकिन मजेदार बात यह है कि कई विश्लेषक यह कहते हैं कि चुनी हुई सरकार होना दिल्ली की जनता का हक है लेकिन इसके लिए जिम्मेदार केजरीवाल को नहीं मानते हैं. धन्य हैं ये महान महान पत्रकार और ये टीवी चैनल जो इनको बिठा कर अनर्गल बातें बोलने का मौका देते हैं. कहने का मतलब यह है कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार नहीं होने के लिए केजरीवाल जिम्मेदार हैं. उसका प्रधानमंत्री बनने का लोभ है.
खैर, दिल्ली में अब चुनाव होंगे और यह आप के नेताओं के बयान से प्रदर्शित हो गया. क्योंकि आम आदमी पार्टी ने वही पुराना झूठ और फरेब का ड्रामा शुरु कर दिया है. आज मनीष सिसोदिया ने मुंह खोलते ही झूठ की बौझार कर दी. पहला वाक्य ही झूठ का पुलिंदा था. सिसोदिया ने कहा कि पार्टी के स्टैंड में कोई बदलाव नहीं है.. हम पहले भी चुनाव चाहते थे और आज भी चुनाव चाहते हैं. यह ईमानदार पार्टी के ईमानदार नंबर दो नेता का सफदे झूठ है. जब केजरीवाल ने त्यागपत्र दिया तो उसने उस वक्त ये कहा कि विधानसभा को भंग कर दिया जाए और फिर से चुनाव हो. उनके दिमाग में ये था कि लोकसभा के साथ साथ विधानसभा का भी चुनाव हो जाए. लेकिन लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की फजीहत हो गई. दिल्ली में एक भी सीट नहीं जीत सकी और पूरे देश में कुल 421 आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. वाराणसी में केजरीवाल को शर्मनाक हार मिली.
लोकसभा चुनाव के बाद केजरीवाल न घर के रहे न घाट के… वो मुख्यमंत्री भी नही रहे और प्रधानमंत्री भी नहीं बन पाए. तो उनको लगा दिल्ली में फिर से सरकार बनाई जाए. कांग्रेस से फिर सांठगांठ की कोशिश की. सिसोदिया कांग्रेसी नेताओं से छिप छिप कर मिलने लगे. क्या यह सच नहीं है कि लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास जाकर केजरीवाल ने अर्जी दी थी कि विधानसभा भंग न किया जाए. वो पत्र आज भी लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास पड़ा है. जब कांग्रेस ने फिर से समर्थन देने से मना किया तो आम आदमी पार्टी का फिर से पैंतरा बदला. अब केजरीवाल चुनाव चाहते हैं. बीजेपी की गलती यही है कि यहां चुनाव पहले ही करवा देना चाहिए था. अबतक आम आदमी पार्टी कहानी खत्म भी हो गई होती. वैसे भी पार्टी कई महत्वपूर्ण नेता केजरीवाल के नाराज चल रहे हैं. सार्वजनिक रुप से बयान दे रहे हैं. चुनाव की घोषणा के साथ ही आम आदमी पार्टी के अंदर ही विस्फोट होगा. पार्टी में हंगामा होने की खबर है.
दरअसल, केजरीवाल सत्ता का भूखा है. वो बिना सत्ता के, बिना दिल्ली के मुख्यमंत्री बने राजनीति के मैदान में टिक ही नहीं सकता है. केजरीवाल की डिक्सनरी में विपक्ष की राजनीति नामक शब्द ही नहीं है. इसमें सत्ता की भूख इतनी है कि कई लालू, कई मायावती और कई मुलायम सिंह यादव बौने मालूम पड़ते हैं. इन नेताओं को देश ने यह कहते सुना है कि हमारे पास संख्या नहीं है हम विपक्ष में बैठेंगे. लेकिन अभी तक केजरीवाल के मुंह से एकबार भी ये वाक्य नहीं निकला है आम आदमी पार्टी के पास बहुमत नहीं है हम विपक्ष में रहेंगे.
(स्रोत-एफबी)