जस्टिस काटजू इंटरव्यू छोड़ उठ खड़े हुए. दीपक चौरसिया को बदतमीज कह डाला. सवाल को आरोप करार दिया और उससे भी मन नहीं भरा तो बेवकूफ कह डाला. लेकिन उसके बावजूद रोष कम नहीं हुआ तो जाते – जाते गेटआउट भी कह गए. इसी मुद्दे पर मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार की एक टिप्पणी :
जस्टिस काटजू और दीपक चौरसिया के जिस इंटरव्यू को लेकर न्यूज एक्स और इंडिया न्यूज सरफरोशी की तमन्ना,अब हमारे दिल में है टाइप का माहौल बनाने में जुटे हैं, आप भी इसे देखिए. जस्टिस काटजू अभी अपनी बात पूरी करते इससे पहले ही दीपक चौरसिया ने उनकी बात का आधा सच,आधा झूठ खेमे में बांट दिया. लगा वो इंटरव्यू नहीं सच का सामना शो होस्ट कर रहे हैं.
दीपक चौरसिया आइआइएमसी के प्रोडक्ट हैं और वहां की सिलेबस में हाउ टू डू इंटरव्यू बाकायदा शामिल है. मुझे इस पूरे प्रसंग में लगता है बल्कि काटजू को लेकर खास करके कि वो बात भले ही पीसीआइ चेयरमैन की हैसियत से करते हैं लेकिन सामनेवाले से उम्मीद करते हैं कि उन्हें जस्टिस की तरह ट्रीट किया जाए.
दीपक चौरसिया जैसे लोगों का गोबरपट्टी में इस तरह का हउआ रहा है, खासकर सिलेब्रेटी और नेताओं के बीच कि उनकी बदतमीजी ही उनकी स्टाइल बन गई है.ऐसे में जस्टिस काटजू का भड़कना स्वाभाविक है जबकि दीपक चौरसिया जैसे लोग इसी उम्मीद में उकसाते भी हैं कि अगर मामला बिगड़ गया तो दमभर सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है घिसने का मौका मिलेगा.
नया फैशन चला है कि जिस मीडिया संस्थान का अंग्रेजी चैनल है,कहानी तुरंत वहां शिफ्ट हो जाती है ताकि भाषा का आतंक अलग से पैदा किया जा सके. इंटरव्यू की इस कहासुनी के साथ-साथ न्यूज एक्स की पूरी पैकेज पर गौर कीजिए. जस्टिस काटजू को ऐसे गोला बना-बनाकर दिखाया जा रहा है कि जैसे वो मुजरिम हों, उन्होंने कोई भारी गुनाह किया है या फिर उन पर सरकार ने इनाम राशि तय कर दी हो. हद है
इसमें कोई दो-राय नहीं , कि, इलेक्ट्रौनिक मीडिया में दीपक चौरसिया बाजारू और बिकाऊ पत्रकार की श्रेणी में पहले नंबर पर है ! ये इंसान , पैसा लेकर किसी के भी पक्ष और विरोध में हवा बनाना शुरू कर देता है ! अफ़सोस इस बात कि , मीडिया हाउस वाले ऐसे बिकाऊ और बाजारू पत्रकार को खरीद लेते हैं और अपनी मर्जी के मुताबिक भाषा बुलवाते हैं ! दीपक जैसे पत्रकार , पैसा लेकर देश से ही गद्दारी ना कर बैठे , ईश्वर से बस यही प्रार्थना है ! आज दीपक जैसे पत्रकारों का हर तरफ से सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए , मगर अफ़सोस है कि बहिष्कृत होने की बजाय ऐसे एजेंट दिन-पर-दिन और ऊपर बढ़ते जा रहे हैं ! मीडिया हाउस चलाने वालों को अब आत्म-मंथन करना चाहिए कि लोकतंत्र का चौथा खम्बा माना जाने वाला मीडिया, दीपक जैसे बिकाऊ और बाजारू पत्रकारों की भेंट चढ़ जाएगा या बचा रहेगा ?