प्रेस विज्ञप्ति
हर शनिवार सुबह 10.30 बजे दूरदर्शन (डीडी-1) पर आप देख रहे हैं डॉयचे वेले का खास शो मंथन. हर हफ्ते हम आपको विज्ञान, पर्यावरण और तकनीक पर नई-नई जानकारियां देने की कोशिश करते हैं. इस हफ्ते हम आपके लिए ला रहे हैं :
हिन्दी सिनेमा ने एक शताब्दी का सफर पूरा कर लिया है. इन सौ सालों में जर्मन लोगों के बीच भी बॉलीवुड की लोकप्रियता बढ़ी है. यहां तक कि भारतीय फिल्मों को जर्मन भाषा में अनुवाद करके टेलीविजन पर भी दिखाया जाता है. जर्मन किसी तरह भारतीय संस्कृति और हिन्दी सिनेमा से जुड़े हैं, जानेगें आप कोलोन में एक डांस क्लब में जर्मन युवतियों की जुबानी. साथ ही देखेंगे आप बॉन यूनिवर्सिटी में हिन्दी भाषा सीखते हुए जर्मन.
इसके अलावा चर्चा होगी प्रोजेरिया व डाउन सिंड्रोम से प्रभावित बच्चों की. कई लोग उन्हें मंदबुद्धि भी कह देते हैं. डाउन सिंड्रोम से जूझ रहे लोगों को समाज के साथ मिलाने की कोशिश बरसों से हो रही है, लेकिन जर्मनी में इसके लिए कुछ खास पहल की गई है. क्या है डाउन्स सिंड्रोम, कितनी है इससे पीडित मरीजों की औसतन उम्र, के अलावा और जानकारियां देखेंगे आप मंथन के इस अंक में.
इसी से जुड़ी हमारी बातचीत भी होगी जर्मनी के कोलोन शहर में तीन साल से रह रहे भारतीय मूल के रिसर्चर गौरव आहूजा से, जो बताएंगे कि किस तरह इन बच्चों के लिए बेहतर माहौल बनाया जा सकता है. गौरव अहूजा इंस्टिट्यूट फॉर जेनेटिक्स में न्यूरोसाइंस में रिसर्च कर रहे हैं.
फिर जानेंगे एक नए शोध के बारे में. ताजा रिसर्च में पता चला है कि कांच से बनी इमारतों में प्रकाश की कई किरणें प्रवेश नहीं कर पाती हैं. इनको बेहतर बनाने के लिए क्या कोशिशें की जा रही हैं.
ऊर्जा को बचाने और ऊर्जा के नए नए स्रोतों पर मंथन में हम अक्सर आप तक जानकारी पहुंचाते हैं. पवनचक्कियों से जितनी ऊर्जा निकलती है, उतने पूरे का इस्तेमाल नहीं हो पाता है. जर्मनी में नई तकनीक तैयार की जा रही है जिसकी मदद से पवन चक्कियों से निकल कर बर्बाद होने वाली अतिरिक्त ऊर्जा को गैस के रूप में किस तरह संरक्षित किया जा सकता है, विस्तार से पाएगे जानकारी आप कल के एपिसोड में .
शनिवार सुबह 10.30 बजे डीडी-1 के अलावा आप हमारी वेबसाइट पर भी मंथन की रिपोर्टें देख सकेंगे. ये वीडियो यूट्यूब पर भी मौजूद हैं. कार्यक्रम के बारे में अपने सुझाव और अपनी प्रतिक्रियाएं आप हमें फेसबुक या ईमेल के जरिए भेज सकते हैं. हमसे नियमित जुडाव के लिए आपका आभार.
डॉयचे वेले हिंदी सेवा, बॉन, जर्मनी