एक बार मीडिया खबर डॉट कॉम से बात करते हुए प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा था कि आदमी को जलाकर उसकी खबर बनाना कभी पत्रकारिता नहीं हो सकती. यह तो स्कैंडल है.यह माफिया का काम है.
स्वर्गीय प्रभाष जोशी से शायद ही कोई असहमत हो. लेकिन भारतीय मीडिया में ऐसे कई मौके आए जब पत्रकारों ने इंसान की जान से ज्यादा ब्रेकिंग न्यूज़ को तवज्जो दी और कैमरे के सामने ही एक इंसान ख़ाक हो गया. लेकिन आज क्राइम रिपोर्टर ‘शंकर आनंद’ ने दिवाली के माहौल में पत्रकारिता की दुनिया में एक नई मिसाल पेश की और ख़बरों से ज्यादा संवेदना को तरजीह देते हुए एक जलते हुए इंसान की जान बचायी. खुद उनकी ज़ुबानी ही सुनिए पूरी कहानी –
शंकर आनंद,पत्रकार
अक्सर हम टीवी पत्रकारों पर सवाल उठता है कि हम बेहद असंवेदनशील होते है । कई बार हमारे मित्र ,परिवार के सदस्य ही मजाक में कह देते हैं कि – आप लोग मरते हुए इंसान या पानी में डूबते हुए इंसान से पूछते हो की -आप कैसा महसुस कर रहे हैं । मजाक के लिहाज से तो ठीक है । लेकिन वास्तविक जिंदगी में ऐसा नहीं होता है ।
मैं एक क्राइम रिपोर्टर हूं । बहुत सारे क्राइम की ख़बरों को पिछले कई सालों से कवर कर रहा हूं । आज शाम को संसद भवन के सामने मैं लाइव करने जा रहा है ।उससे पहले अपने प्रिय मित्र अरविंद सिंह (न्यूज़ नेशन ) और रवि राय (न्यूज़ नेशन ) के साथ बैठा हुआ था । तभी अचानक चीखने की आवाज आई । मैंने देखा एक युवक आग की लिपटों में जलता हुआ चीखता हुआ मेरी ओर दौड़ता आ रहा था । कुछ देर तो कुछ समझ में ही नहीं आया क्या करूं । लेकिन क्राइम रिपोर्टर होने के नाते मैं थोड़ा सा संयम से काम करते हुए युवक को रुकने बोला और पकड़कर हरी घांस में पलटने लगा । थोड़ा प्रयास करने के बाद आग बुझ गयी । बाद में पीसीआर कॉल हुई । मीडिया और पुलिस का जमावड़ा लगना शुरू हो गया ।।लेकिन मैंने एक मानव होने के नाते उसको बचाना सबसे बड़ा कर्तब्य समझा । बाद में अपने ड्यूटी के फर्ज को देखते हुए अपना काम भी किया । अभी उस शख्स की गंभीर हालत में इलाज चल रहा है । डॉक्टरों के मुताबिक खतरे के बाहर है वो शक्स ।
आज एक इंसान को बचाकर मैंने अपना नहीं बल्कि उस युवक के परिवार के बुझने वाले दीपक को बचाया । यकीन मानों दिल से बहुत अच्छा लग रहा । ये काम करके मुझे लग रहा है किसी के काम आना ही शुभ दीपावली भी है ।।