हम वेद को जाते नहीं देख सकते, और आप..?
उमा
न्यूजमैनशिप के लिए ‘फायर ऑफ बेली’ (पेट की आग) जैसी तीव्रता और बेताबी की अपेक्षा करनेवाले कोयलांचल के पत्रकार वेद प्रकाश आज जिंदगी और मौत से जब जूझ रहे हैं तो कोयलांचल के बहुत कम साथी हैं जिन्हें वह याद आते हैं. करीब दो दशक पहले भारतीय खनि विद्यापीठ की निबंध प्रतियोगिता में उत्कृष्ट स्थान प्राप्त करने के बाद धनबाद के एक स्थानीय दैनिक ने अपने यहां काम करने का अवसर दिया. और यहीं से शुरू हुई उसकी पत्रकारिता.
दस साल पहले ‘प्रभात खबर’ के धनबाद संस्करण में काम करते हुए गिरिडीह राइफल लूट कांड, महेंद्र सिंह हत्याकांड और भेलवाघाटी उग्रवादी घटना की रिपोर्टिग के लिए काम निबटाकर रात तीन बजे धनबाद से गिरिडीह जाना हम साथी भूल नहीं सकते. नक्सली वारदात की रिपोर्टिग के लिए गिरिडीह कूच करते समय किसी अंदेशा की बजाय तीर्थ की अनुभूति और एडवेंटर (साहसिक अभियान) का रोमांच उसके चेहरे पर हम देखते थे. यह जज्बा और जुनून ही था कि घातक हादसे से उबरने के बाद वेद उसी पुराने जोशो-खरोश के साथ रिपोर्टिग के अपने पुराने काम में जुत गये थे. भीतर ही भीतर मधुमेह, गुरदा की परेशानी से टूट रहे वेद के चेहरे पर कभी किसी ने थकान या उदासी नहीं देखी. अपोलो और एम्स का चक्कर लगा रहा. गैंग्रीन ने पीछा भी नहीं छोड़ा था कि फिर आ गये काम पर यह उम्मीद जताते हुए कि काम करते-करते सामान्य हो जायेंगे. पैर के अंगूठे का घाव सूखा भी नहीं था कि पट्टी बंधे पांव के साथ लंगड़ाते-लंगड़ाते धमक गये काम पर. संपादक और दफ्तर के आग्रह के बावजूद यह हाल था. कभी हादसा तो कभी बीमारी के कारण बार-बार अस्पताल का चक्कर लगता रहा. हर बार थोड़ा ठीक होकर जिंदगी के लिए, हम सभी के लिए बची-खुची ऊर्जा जुटा कर और टूटती उम्मीद को छीन कर लाते रहे. लेकिन बार-बार किस्त-किस्त में बीमारियां भीतर ही भीतर उन्हें खाये जा रही थी. और हम थे कि खोखली होती उम्मीद से हौसला पा रहे थे कि हमारा वेद खुशी के सामानों के साथ लौट रहा है.
बिना किराये के कोई किसी मकान में कितने दिनों तक रह सकता है. लगभग यही हाल उसकी सेहत का होता रहा. शरीर अब सेहत का किराया देने में लगातार लाचार होता गया. कोयलांचल में जितनी मदद हो सकती थी मीडिया ने अलग-अलग क्षेत्रों से मदद जुटायी. उन्हें जिलाकर रखने में कोई कोताही नहीं की घर वालों ने. जहां इलाज में लाखों के मासिक खर्च आ रहे हों, वहां साजो-सामान जुटाने में उनके कुनबे, हमारे साथियों के दम टूटते जा रहे हैं. फिलहाल हमारा वेद कोलकाता के एक निजी अस्पताल सीएमआरआइ में जिंदगी और मौत से जूझ रहा है. फिर भी हमें उम्मीद है कि हमदर्द साथी उसे छोड़ना नहीं चाहेंगे. उस जिंदा दिल वेद को कौन यूं ही जाते देख सकता है. उम्मीद के जंगल में उस वेद को ढूंढ़ने की जी तोड़ कोशिश करें तो कुछ हो सकता है. वेद का हाल जानने के लिए उनकी पत्नी से 09431375334 पर संपर्क किया जा सकता है. अगर आप हमारे वेद प्रकाश के लिए कुछ करना चाहते हैं तो उनके लिए वेद के खाते का ब्योरा हम यहां दे रहे हैं :
खाता सं. : एसबीआइ/ 30030181623
आइएफएससी कोड : एसबीआइएन 0001641
एमआइसीआर कोड : 8260002006
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, आइएसएम, धनबाद ब्रांच कोड : 001641