आज शैक्षणिक जगत में एक बड़ी घटना की शुरुआत कालीकट विश्वविद्यालय ने की है। यह हिंदुस्तान का पहला ऐसा विश्वविद्यालय बन गया है जहाँ छात्राओं को मैटरनिटी लीव दी जाएगी और उन्हें ईयर-आउट की तरह नहीं बल्कि नियमित विद्यार्थियों की तरह ही परीक्षा देने दिया जाएगा। यह सुविधा डॉक्टरी, इंजीनियरिंग की छात्राओं को भी दी जाएगी। यानि मातृत्व का एक वर्ष उनके लिए डिस्क्वालिफिकेशन की तरह नहीं होगा। न ही यह उनके व्यक्तित्व के विकास में पीछे ले जानेवाले समय की तरह होगा। यह बहुत ही सराहनीय कार्य हुआ है। अन्य विश्वविद्यालयों को भी इसका अनुकरण करना चाहिए।
मुझे एक घटना याद आ रही है। कलकत्ता विश्वविद्यालय में परीक्षाओं की हमेशा फ्लेक्सिबिलिटी रही है, विभिन्न राजनैतिक- शैक्षणिक कारणों से यहाँ परीक्षाओं को आगे-पीछे कर दिया जाता रहा है। एक बार एक लड़की ने तत्कालीन विभागाध्यक्ष से कहा कि परीक्षा अगर फलां महीने में हुई तो वह नहीं दे पाएगी, जबकि देना चाहती है। यदि परीक्षा की तिथि डेढ़ महीने आगे कर दी जाए तो वह दे सकेगी। अन्यथा उसे ड्रॉपआउट की तरह एक साल बाद परीक्षा देनी होगी और ससुरालवाले देने दें न दें, तय नहीं। कहाँ रहेगी उस वक्त यह भी तय नहीं।
विभागाध्यक्ष ने अपनी सहजबुद्धि से निर्णय लेते हुए परीक्षा की तिथि डेढ़ महीने बाद रखी और वह लड़की परीक्षा दे पाई। तत्कालीन विश्वविद्यालयी व्यवस्था में और कोई चारा नहीं था। यह संयोग मात्र था कि लड़की की बात मानवीय धरातल पर समझी गई, ऐसा नहीं भी हो सकता था। लेकिन कालीकट विश्वविद्यालय की इस शानदार पहलक़दमी से बहुत-सी लड़कियों को यह अधिकार मिल गया है।
(सुधा सिंह के फेसबुक वॉल से)