टीवी पर वृंदा करात और डी.राजा को बहस करता देख वास्‍तव में बहुत अफ़सोस हुआ

अभिषेक श्रीवास्तव

आज टीवी पर वृंदा करात और डी.राजा को बहस करता देख वास्‍तव में बहुत अफ़सोस हुआ। दोनों अलग-अलग चैनलों पर चीख-चीख कर कॉरपोरेट को दी गई सब्सिडी की बात कह रहे थे। राजा को जवाब देते हुए पीयूष गोयल ने बड़ी विनम्रता से कहा, ”वामपंथियों का तो प्रिय शब्‍द ही है रेवेन्‍यू फोरगॉन…।” इस पर सब हंस दिए। वृंदा के सामने सुधांशु त्रिवेदी थे। वे बोले, ”आप बजट को पढि़ए, सब समझ में आ जाएगा।” फिर सब हंस दिए। इस तरह कॉरपोरेट को सौंपी जा रही जनता की गाढ़ी कमाई का मसला हंसी में उड़ा दिया गया।

क्‍या यह वास्‍तव में इतनी हास्‍यास्‍पद बात है? अगर नहीं, तो सिर्फ इसलिए हंसा जाए कि कोई वामपंथी (या समाजवादी) यह कह रहा है? अगर कॉरपोरेट सब्सिडी एक तथ्‍य है, तो इसे कोई और क्‍यों नहीं उठाता? कहने का मतलब, क्‍या अलग सोचने वाले को आप हंसी में उड़ा देंगे? या फिर सिर्फ इसलिए हंस देंगे कि एक वामपंथी ऐसा कह रहा है? आप क्‍या चाहते हैं कि समाज का विवेक एकदम सपाट और चौरस हो जाए? कोई अलग बोलेगा तो आप उसका मुंह नोंच लेंगे?

कसम कलकत्‍ते की, जूता सस्‍ता हो गया है और मेरे दिमाग में काफी तेज़ी से उसके उपयोग की नई-नई तरकीबें घुमड़ रही हैं।

(स्रोत-एफबी)

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