डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
केंद्र में #भाजपा के स्पष्ट बहुमत वाली सरकार के सत्तासीन होने के बाद #नेट के चार्जेज लगातार बढ़ रहे हैं! क्यों इस सवाल को कोई भी (यानी #मीडिया) किसी से भी (यानी #सरकार से) नहीं पूछ रहा! क्यों नहीं पूछ रहा इस बारे में हम आम लोग भी चुप हैं, क्योंकि शायद हम को भी कुछ पता नहीं!
मगर बहुतों को पता भी है-चुनाव में अनाप-सनाप विदेशी पैसा, देशी मीडिया को भेंट करके नए नए जुमलों और सपनों को बेचकर जनता को जमकर गुमराह किया गया। अब अपरोक्ष रूप से धन भेजने वाले विदेशियों द्वारा सरकार की मौन स्वीकृति से नेट दरें बढ़ा दी गई तो देशी मीडिया बदले में देशी-विदेशी सभी के प्रति अपना आपसी बन्दर बाँट का धर्म चुका कर मौन साधे हुए है!
इसका सीधा असर सरकारी खर्चे (जनता की कमाई) पर नेट चलाने वाले अफसरों, धनी लोगों और काले धन के मालिकों पर कुछ नहीं होगा, मगर #वंचित, #पिछड़े, #दलित, #आदिवासी वर्गों के जागरूक लोगों और विशेषकर #युवा पीढ़ी को सोशल मीडिया से दूर रखने का ये घुमा फिराकर एक उलटा-सीधा, गैर सरकारी, सरकारी #हथकंडा है।
मगर इन मूर्खों को नहीं पता कि ये अपनी अमानवीय #मनुवादी विचारधारा को भी तो इसी #सोशल मीडिया के मार्फ़त ही तो निम्न तबकों में फ़िर से फैला रहे हैं। यदि वंचित, पिछड़े, दलित, आदिवासी वर्गों को सोशल मीडिया से दूर रहने को मजबूर किया गया तो उस अमानवीय मनुवादी विचारधारा को चासनी में लपेटकर पिलाने वाली (कु) #नीति का क्या हश्र होगा?
ओहो सॉरी……. भूल हो गयी अब इन #भू-देवों को सोशल मीडिया की कहाँ जरूरत रह गयी है? अब तो ये देश के #मालिक हैं!
अब तो #पेड #इलेक्ट्रॉनिक और #प्रिंट मीडिया के मार्फ़त ही जनता के धन से अपनी विचारधारा आसानी से परोसी जा सकेगी।
जैसा कि पिछले दिनों मानवता के विरोधी #मनु की आदमकद मूर्ति की छत्र छाया में संचालित राजस्थान हाई कोर्ट परिसर में “#सामाजिक-न्याय” के नाम पर आयोजित #सेमीनार में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता #मंत्री की मौजूदगी में संविधान को धता बताते हुए असंवैधानिक #आर्थिक #आरक्षण को मंत्री सहित सभी ने सामाजिक न्याय की जरूरत और #समानता का आधार बताया गया। लच्छेदार भाषण दिए गए और आर्यों के मनुवादी मीडिया द्वारा इसे बेशर्मी से प्रकाशित किया गया! मगर किसी भी कथित बुद्धिजीवी (आर्य या #अनार्य) ने एक शब्द इस बारे में नहीं लिखा कि ये कौनसा सामाजिक न्याय है?
अब #राम-राज्य आने वाला है। बल्कि आ ही गया है!
अभी से ही अनेक उदाहरण दिख रहे है-
आर्य मनुवादियों के हजारों सालों के अन्याय, भेदभाव और शोषण से शोषित और वंचित अनार्यों (विशेषकर दलित, आदिवासी और पिछड़ों) को सामाजिक न्याय और संवैधानिक अधिकार देने की संवैधानिक जिम्मेदारी का नाटक करने को मजबूर राजस्थान सरकार में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का मंत्री एक ब्राह्मण आर्य को बना रखा है!
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के सचिव रघुवीर मीणा (आदिवासी) को समता आंदोलन समिति (जो संघ के निर्देश से काम करती है) की छोटी सी निराधार शंका पर राज्य सरकार (जो संघ के आशीर्वाद से काम करती है) ने तत्काल हटा दिया गया। आज वही अन्यायी लोग इस मंत्रालय को संचालित कर रहे हैं, जिनके अन्याय और विभेद से से बचने के लिए यह मंत्रालय संयुक्त राष्ट्र संघ से दबाव में तत्कालीन सरकार गठित किया गया था। मगर पूर्व में इस विभाग का मंत्री कोई दलित या आदिवासी ही हुआ करता था!
भाजपा सांसद साक्षी महाराज घोषणा कर चुके हैं कि-
“राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ” वर्तमान युग का #भगवान हैं।
#संघ के हिन्दू मुखोटे विश्व #हिन्दू परिषद के गिरिराज किशोर सिंघल (बनिया आर्य) नरेंद्र मोदी (बनिया आर्य) को आठ सौ साल के बाद में भारत का पहला स्वाभिमानी हिन्दू शासक प्रमाणित कर चुके हैं!
उनकी नजर में अटल बिहारी वाजपेयी स्वाभिमानी हिन्दू नहीं, क्योंकि (शायद) अटल खुलकर मनुवाद का समर्थन नहीं करता था ! या इसलिए कि अटल बिहारी वाजपेयी नरेंद्र मोदी (आठ सौ साल के बाद में भारत का पहला स्वाभिमानी हिन्दू शासक जो तब का गुतरात का मुख्यमंत्री था) को शासन धर्म निभाने में असफल बताने की गलती कर बैठा था?
जब आज के युग के भगवान संघ के आशीर्वाद से संचालित सरकार को संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों और मूल निवासियों के पक्ष में किये गए संवैधानिक प्रावधानों की तक परवाह नहीं तो उनके लिए नैट के दाम बढ़ाना कौनसी बड़ी बात है? आखिर-
आर्य श्रृष्टि के सर्वश्रेष्ठ मनुष्य हैं!
साक्षात ईश्वर के अवतार हैं!
कुछ भी कहने और करने को जन्मजातीय ईश्वरीय शक्ति से सम्पन्न हैं!
संविधान की क्या औकात जो वे इसका पालन करें?