दुबई में दाऊद इब्राहिम के दफ्तर और ठिकाने पर पहुंचना आसान था। एक वक़्त के ताकतवर मंत्री सलमान खुर्शीद से भिड़ना भी आसान था। केपीएस गिल जैसे सुपरकॉप को कुर्सी से उतारना भी कुछ सीमा तक मेरे लिए आसान था….लेकिन देश के अर्थतंत्र और देश के कैपिटल मार्किट को भीतर से समझना आसान नहीं है। ये एक ऐसी दुनिया है जिसका हर विषय एक समंदर है और हर समंदर में कई समंदर समाये हुए हैं।
शायद इसीलिए जनता, क्राइम की स्टोरी समझती है, बॉर्डर पर सेना की हलचल को समझती है और राजनीति पर तो ज्ञान बाँट सकती है। शायद इसलिए इस देश में 10 वीं पास लोग विधायक और 12 वीं फेल लोग मंत्री बन जाते हैं।जिन्होंने कामर्स की कभी किताब नहीं खोली वे संसद में बजट समझाते है। सच है, अर्थ जैसे विषय को समझाने में सरकार को अगर परहेज है तो उसे समझने में जनता को भी रूचि नहीं। शायद इसलिए सदियों में कोई कौटिल्य, कोई विक्रमादित्य पैदा होतें है। और शायद इसलिए देश के हज़ारों साल के इतिहास में स्वर्णिम दौर बार बार नहीं आता ।स्वर्णिम दौर का आधार संस्कृति या शक्ति नही, आर्थिक संपनता और समृद्धि है ..जो भारत ने चंद्रगुप्त और समुद्रगुप्त के दौर में देखी थी ।
अरुण शोरी पिछले पांच दशकों में देश के सबसे मेधावी पत्रकार इसलिए माने गए क्यूंकि बुनियादी तौर पर वे अर्थशास्त्री हैं। शौरी ने रिलायंस की नींव, या फिर बोफोर्स पर कांग्रेस की नीँव इसलिए हिला दी थी क्यूंकि वे कैपिटल मार्किट या बिज़्नेस कॉंट्रैक्ट बारीकी से समझते थे। शौरी की बात फिर कभी …. आज आप किसी बुद्धजीवी से अगर ये पूछेंगे कि भारत को अंतराष्ट्रीय बाजार में मज़बूती के साथ किसने आगे किया तो जवाब में आप नरसिम्हा राव का ही नाम सुनेंगे। देश में लाइसेंस राज को समाप्त कर, राव ने आर्थिक बदलाव की जो शुरुआत की थी उन्ही नीतियों पर आधुनिक भारत आगे बढ़ा… जिसे बाद में वाजपेयी, मनमोहन और मोदी तक ने फॉलो किया। टेक्नोलॉजी और औद्योगिक उत्पादन को, राव ने ही रफ़्तार दी थी। 17 भाषाएँ धाराप्रवाह बोलने वाले राव, सचमुच जीनियस थे। एक जीनियस ही इस देश में अर्थ को तंत्र में बदल सकता है ।
दो दशक से अधिक की पत्रकारिता के सफर में मुझे बेहद कम लोग ऐसे दिखे जो वाकई देश की समस्याओं को, खासकर आर्थिक चुनौतियों को भीतर तक जानते थे। अधिकतर लोगों से जब मैंने बाजार, व्यापार, बजट, शेयर मार्किट, उत्पादन और करेंसी पर बात की तो उनमे मुझे दक्षता का आभाव दिखा। कई ब्यूरो चीफ, कई संपादक ऐसे मिले जो सालाना बजट में देश के खर्च और आमदनी को नहीं समझते थे।टीवी चैनल के ज्यादातर साथियों का हाल तो और भी बदतर था।
मैं भी स्वीकार करता हूँ कि पिछले 6-7 वर्षों के निरंतर अध्यन के बाद भी मेरे लिए देश के कैपिटल मार्किट, ट्रेड और वित्तीय व्यवस्था को भीतर तक समझना एक चुनौती है। समझ जितनी गहरी होगी उतनी ही सहजता से पाठकों को अर्थ तंत्र और धन तंत्र समझा सकूंगा।
देश को बदलना है तो देश की मुख्यधारा की मीडिया को अर्थ को अहमियत देनी होगी, सिर्फ इकनोमिक टाइम्स या CNBC (बिज़नेस) चैनल के प्रसार से स्थिति बदलने वाली नहीं। वैसे भी बिज़नेस चैनल और बिज़नेस अख़बार की भाषा ठेठ बिज़नेस वाली है जो जनता को समझ नहीं आती। बिज़नेस में सामान्य जन की अज्ञानता के कारण आज देश के स्टॉक मार्किट में गिनती के लोग ही निवेश करते है।
एक ताज़ा आंकड़े के मुताबिक 2020 में अमेरिका में 55 प्रतिशत नागरिक स्टॉक मार्किट में निवेश कर रहे हैं जबकि भारत में 1.5 प्रतिशत से भी कम जनता स्टॉक में निवेश करती है। गूगल, एप्पल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट या अमेज़न का जबरदस्त विस्तार, अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज की ही देन है। इसलिए अमेरिका के सुपर पावर बनने के पीछे वहां की पब्लिक लिस्टेड कंपनियों और जनता की उसमे भागीदारी का बड़ा रोल है। जापान भी जनता के निवेश से ही टोयोटा, हौंडा, सुजुकी,सोनी,हिताची और पैनासोनिक जैसी ग्लोबल कम्पनी खड़ा कर सका।
देश को आगे बढ़ाना है तो सचमुच में बाजार को सरल और सहज करना होगा। दुर्भाग्य ये है कि जो स्टॉक मार्किट, मिडिल क्लास का जीवन बदल सकता है उस स्टॉक मार्किट को भारत में आम आदमी, हर्षद मेहता के नाम से जानता है। बाजार में निवेश को यहां बदनाम कर दिया गया है और कुछ स्टॉक ब्रोकर्स के कार्टेल ने भी रातोरात करोड़पति बनने की फ़िराक में कैपिटल मार्किट की छवि को ख़राब किया।
बहरहाल मेरी कोशिश रहेगी कि स्टॉक मार्किट को सहजता से आपको समझा सकूं जिससे आपका जीवन भी बेहतर हो सके और देश का उत्पादन भी। आप भी बढ़े, फैक्टरियां भी बढ़े, निर्यात भी बढ़े और देश भी।
और ये लक्ष्य बिना मज़बूत, पारदर्शी और सहज कैपिटल मार्किट के संभव नहीं। हमें आर्थिक सुपर पावर बनना हैं तो इसका रास्ता जन निवेश से ही निकलेगा। इसलिए आनेवाले दिनों में आप मेरे कुछ शो पर नज़र रखियेगा जहाँ में एक्सपर्ट्स की मदद से आपको बाजार के हर पहलू को बेहद आसानी से समझाने की कोशिश करूँगा