बिहार में मीडिया पर सेंसरशिप का सबसे बड़ा नमूना और सबूत यह है कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की जांच टीम की रिपोर्ट आ चुकी है, लेकिन बिहार के दो सबसे बड़े अखबारों ने, जिन्हें नीतीश कुमार की सरकार विज्ञापन के रूप में मोटा माल देती है, राज्य की इस सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण ख़बर की एक पंक्ति तक नहीं छापी।
तीसरे अखबार ने चौदहवें पेज पर इस तरह छापा, जहां किसी की निगाह भी शायद ही जाए।
अब काटजू साहब बिहार में मीडिया को सेंसरशिप से क्या मुक्त कराएंगे, यहां के अखबारों ने तो उन्हीं की ख़बर को सेंसर कर दिया।
बिहार में पत्रकारिता के इस काले दौर के लिए हम शर्मिंदा हैं और लोकतंत्र-विरोधी इस सरकार की तीव्र भर्त्सना करते हैं।
(अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से)