पटना में सत्ता की निरंकुशता के खिलाफ सड़क पर पत्रकार

राज्य सरकार द्वारा बिहार के अखबारों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के विरोध में पटना में निकाले गये मार्च में स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के पत्रकारों, सामाजिक कार्य़कर्ता, विश्वविद्यालय के शिक्षक, वकील समेत अनेक मानवाधिकार कार्यकर्ता भी शामिल हुए. इस विरोध मार्च का आयोजन बिहार प्रेस फ्रीडम मूवमेंट ने किया था.

बिहार प्रेस फ्रीडम मूवमेंट ने प्रेस परिषद की जांच रिपोर्ट में बिहार की पत्रकारिता को खतरे में बताये जाने पर आज पटना में प्रेस फ्रीडम मार्च का आयोजन किया. राज्य सरकार द्वारा बिहार के ज्यादा तर अखबारों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के विरोध में पटना में निकाले गये इस मार्च में स्थानीय. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के पत्रकारों, सामाजिक कार्य़कर्ता, विश्वविद्यालय के शिक्षक, वकील समेत अनेक मानवाधिकार कार्यकर्ता भी शामिल हुए.

पत्रकारों ने इस विरोध मार्च में नीतीश सरकार द्वारा मीडिया को नियंत्रित करने के रवैये के खिलाफ नारे बाजी करते हुए मांग की कि सरकार विज्ञापन के के बदले पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की आजादी का गला न घोटे.. इस विरोध मार्च में वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर, इर्शादुल हक, निखिल आनंद, आनंद एचटी दास, रुपेश, अनीश अंकुर, मनीष शांडिल्य, नवल किशोर, विनीत कुमार, पटना विश्विविद्यालय के प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी, मानवाधिकार कार्यकर्ता कंचन बाला, रंजीव, उसमान हलालखोर, हिसामुद्दीन समेत दो दर्जन पत्रकार शामिल हुए.

इस विरोध मार्च के संयोजक इर्शादुल हक ने कहा कि सरकारी अंकुश और मीडिया घरानों की दहशत के बावजूद तमाम मीडिया हाउस के पत्रकारों ने इस विरोध मार्च के प्रति नैतिक रूप से समर्थन दिया.

इस अवसर पर पत्रकारों ने एक सभा का भी आयोजन किया जिसमें मांग की गई कि सरकार प्रेस को स्वतंत्र रूप से काम करने दे और इसपर विज्ञापन दे कर अपनी मनौजी करना छोड़े. पत्रकारों ने मांग की विज्ञापन के लिए एक स्वतंत्र निकाय गठित करे जो अखबारों को स्वतंत्र रूप से उनकी योग्यता के आधार पर विज्ञापन दे.

. प्रो एनके चौधरी ने कहा कि सभी अखबारों के पत्रकारों ने इस विरोध मार्च का नैतिक समर्थन देकर जहां यह साबित किया कि वह प्रेस पर अंकुश के चलते घुटन के शिकार हैं पर उनका इस मार्च में खुल कर न आना यह साबित करता है कि सरकार और मीडिया घरानों के आतंक का फंदा उनके गले में लटका हुआ है जिसके कारण उन्हें अपने करियर के खत्म होने का खतरा है.

प्रेस फ्रीडम मूवमेंट ने मांग की है कि पत्रकारों को स्वतंत्र रूप से काम करने की आजादी दी जाये क्योंकि पत्रकारिता का निष्पक्ष और स्वतंत्र नहीं होना लोकतंत्र के लिए खतरा है. बिहार प्रेस फ्रीडम मूवमेंट आने वाले दिनों में सरकार पर लगातार दबाव बढ़ाने की घोषणा की है. मूवमेंट के नेताओं ने कहा कि प्रेस परिषद की पूरी रिपोर्ट का अध्यन करने के बाद आंदोलन का स्वरूप तय किया जायेगा.

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