सुनील रावत,पत्रकार
सवाल इस दौर में सिर्फ राजदीप सरदेसाई के साथ बदसलूकी या मारपीट का नहीं है सवाल अभ्व्यक्ति की स्वतंत्रता का या मीडिया की आवाज को दबाने का भी है। जो हमारे हमारे प्रधान सेवक 2002 के गुजरात दंगो के बाद लगातार कर रहे हैं। उनके मीडिया को दिए कोई भी इंटरव्यू देख लीजिये कड़े सवाल पूछो तो उखड जाते हैं। जवाब तो देना पड़ेगा।
मीडिया अंतरिक्ष से आई कोई संस्था नहीं है मीडिया आम आदमी है और आम आदमी जब आपसे कोई सवाल पूछता है तो आप उस को लगातार विरोधी बताते हो। यानी हमारी गलतियों की बात करो ही मत। राजदीप की पूरी रिपोर्टिंग मेडिसन स्कवायर गार्डन की देख लीजिये उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा की जिससे अचानक कोई नारेबाजी और गलियां देने लगे। बल्कि जो गैंग अचानक उनकी और आया वो प्लान करके आया था कि यह मोदी जी से इतर बोल रहा है इसे मजा चखाओ।
और यही मानसिकता कुछ (bias) पूर्वाग्रही लोगों में इस देश में लगातार बढ़ रही है। इसका उदाहरण आपको सोशल मीडिया पर लिखी ऐसे लोगों की गलियो से पता चल जायेगा
एक पत्रकार को अधिकार है नकारात्मक और सकारात्मक पहलुओ को जानने का ये कहाँ की अभ्व्यक्ति की स्वतंत्रता है की आपको मोदी, मोदी बोलना पड़ेगा वरना गालिया दी जायेगी, मारपीट की जाएगी। आप सोशल मीडिया फेसबुक] ट्विटर पर देख लीजिये अगर मोदी के विपरीत कुछ लिख दो तो आपको अभद्र गालियां पद जाएँगी। आप किसी भी वरिष्ठ पत्रकार की लिखी किसी पोस्ट के कमेंट पढ़ लीजिये। चाहे वो फिर रवीश कुमार हो] प्रसून बाजपाई हो] या दीपक शर्मा हो।