राजा, प्रजा और भारत रत्न
नदीम एस.अख्तर
कांग्रेस-बीजेपी-लेफ्ट-राइट-समाजवाद-जनतावाद-आमवाद और सारे वाद वाली पार्टियों ! जिस तरह भगवान, इंसान के चढ़ावे का मोहताज नहीं, आपके शिरनी-लड्डू-सोने के आभूषण-हलवे और फलों के प्रसाद का इच्छुक नहीं, उन्हें इसकी चाह नहीं-परवाह नहीं, ठीक उसी तरह हमारे देश की महान विभूतियां तुम्हारे यानी राजसत्ता (जब तुम लोग इस पर काबिज होते हो) द्वारा प्रदत्त सम्मानों-पुरस्कारों-अलंकरणों की भूखी नहीं, उन्हें इसकी दरकार नहीं, जरूरत नहीं. वे जनता के दिल में हैं. वे देश के इतिहास में हैं. इतिहास लिखा जाएगा, फिर मिटा दिया जाएगा. फिर लिखा जाएगा और फिर बदल दिया जाएगा. फिर लिखा जाएगा और फिर ऐसी ही कोई कोशिश होगी लेकिन वक्त इतिहास के कुछ पन्ने अपनी कांख में दबाकर छुपा लेता है. उसे कोई नहीं बदल पाता. आने वाली नस्ल फिर पीछे नजर डालती है. कुछ पुराने पन्ने खंगालती है, कुछ टुकड़ों को समेटती है और फिर पूरा अध्याय लिख देती है. दूध का दूध और पानी का पानी, कर देती है. वह अपने नायकों और खलनायकों को पहचान जाती है. सबका बराबर आंकलन करती है और फिर खुद से पूछती है कि आज हम जहां खड़े हैं, वहां तक हमें लाने में इनमें से कौन-कौन साधुवाद के लायक हैं और कौन-कौन ऐसे हैं, जिनसे हमारी वर्तमान पीढ़ी आज भी सबक लेकर भविष्य में ऐसी गलती नहीं दोहराने की कसम खा सकती है.
सो आतुर ना हों भारत भाग्य विधाता के राजनीतिक कर्णधारों ! सड़क-शहर-संस्थान वहीं हैं, सिर्फ उनके नाम बदल जाते हैं, जब आप में से हर एक बारी-बारी से सत्ता में आते हैं. हां, कुछ अलंकरणों-सम्मानों-पुरस्कारों के नाम आप नहीं बदल पा रहे….ठंड रखिए. वो भी जल्द ही आप कर लेंगे. अपनी पार्टी के -भीष्म पितामहों- के नाम पर जल्द ही उनका भी नामकरण करने का रास्ता तो आप लोग जरूर ही तलाश रहे होंगे.
एक खबर पढ़ी थी कि सेना के जिस बहादुर सैनिक को देश ने परमवीर चक्र दिया था, अपनी गुरबत और गरीबी से परेशान होकर उसी मेडल को बेचकर वह अपने परिवार का पेट भरना चाहता था. जिस शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को आपने भारत रत्न से नवाजा था, वह अपनी जिंदगी में एक-एक रुपये को तरसता रहा और चिंता करता रहा कि उनके परिवार का पेट कैसे भरेगा ??!!
सरकार ने पद्म सम्मानों से लेकर भारत रत्न तक, सब कुछ उनको दे दिया लेकिन वो इज्जत नहीं दे पाई, जिसका भारत का एक आम नागरिक अधिकारी होता है. उस भारत रत्न ने एक दफा कहा था कि मुझे सरकार ने इंडिया गेट पर शहनाई बजाने का मौका आज तक नहीं दिया, इसका उन्हें बहुत दुख है. मुझे पता नहीं कि बाद में उन्हें ये मौका मिला या नहीं, लेकिन ये क्या है !! जिस व्यक्ति को आप देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाज रहे हो, उसकी भावनाओं का आदर करते हुए क्या आप एक बार इंडिया गेट पर उनके लिए शहनाई वादन का प्रोग्राम आयोजित नहीं कर सकते हैं ??!! कैसा देश है ये …??!!
अरे, यहां तो प्राइवेट टीवी न्यूज चैनल वाले अपने दफ्तर के रोजाना खर्चों में से पैसे निकालकर सड़े-गले मुद्दों पर पॉलिटिकल बहस, इंडिया गेट पर आयोजित करवा लेते हैं. फिर आप तो सरकार हो ना !! भारत की राजसत्ता के मालिक. तो क्या आप अपने देश के भारत रत्न का इतना भी सम्मान नहीं कर सकते थे. क्या उन्हें इतना भी पैसा नहीं दे सकते थे कि वो इज्जत से अपना और अपने परिवार का पेट भर सके !!
तो फिर आज अटल बिहारी वाजपेयी और पंडित मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न दिए जाने का हर्ष-उल्लास क्यों मना रहे हैं आप लोग??!!! फिर इस भारत रत्न का मतलब क्या हुआ ??!!
एक और भारत रत्न हैं आपके. सचिन तेंडुलकर, जो कहने को तो सांसद हैं लेकिन देश की संसद में बैठने का वक्त नहीं है उनके पास. हां, फेरारी कार की कोई रेस हो, तो उसे देखने का वक्त जरूर होता है उनके पास. ये कैसी नजीर बना रहे हैं आप लोग??!! ये कैसी नजीर बनाई है भूत में. और कैसी नजीर बनाएंगे भविष्य में..??!!
सो हे भारत की राजनीतिक पार्टियों ! सत्ता के सरमायेदारों. राजसत्ता के प्रतीकों ! आपके अलंकरण अब दिलों की शोभा नहीं बढ़ाते. वे रस्मअदायगी भर बनकर रह गए हैं. आप अलंकृत कर देंगे, फोटो छप जाएगी, चर्चा होगी, खबर बनेगी, फिर सब भूल जाएंगे. हां, इतिहास भारत रत्न की विभूतियों में कुछ और नए नाम शामिल कर लेगा और ये भी दर्ज कर लेगा कि जब फलां की सरकार थी, तो इनको-इनको मिला था. और जब ढिमका की सरकार थी, तो इन्हें दिया गया. पूरे हिसाब-किताब के साथ. आप सब की कारगुजारियों समय की रेत पर नन्हे पदचिह्न बना रही हैं. आप बढ़ते जाइए. आप लोग राजा है. साथ में घिसटते हुए हम देश की प्रजा भी बढ़ चलेंगे…एक सुनहरे और अच्छे भविष्य की कामना के साथ. हमारी शुभकामनाएं आप सब के साथ हैं. जय हे !
http://nchro.org/index.php?option=com_content&view=article&id=637:usthad-bismillah-khan-seeks-govt-help&catid=9:minorities&Itemid=19
Usthad Bismillah Khan seeks Govt. help
nchro.org